Monday, 24 June 2019

चिकनगुनिया, डेंगू - क्या हम तैयार हैं?


 

बिहार में चमकी बुखार (इंसेफेलाइटिस) पर फौरी तरीके से काम हुआ, इसे सभी ने देखा है। हमारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में इस तरह की उदासीनता होना दुखद और भयावह है।
मानसून आने वाला है।
मलेरिया, जो माना जाता था कि दिल्ली से लगभग गायब हो गया है, वह विकराल रुप धरकर वापस आ गया है। चिकनगुनिया मच्छर से उत्पन्न एक उभरती हुई बीमारी है जो अल्फावायरस, चिकनगुनिया विषाणु के कारण होती है। यह बीमारी मुख्य रूप से एडीज इजिप्ती और ए अल्बोपिक्टस मच्छरों द्वारा प्रेरित है, इसी प्रजाति के मच्छरों से डेंगू का संचरण होता है।  
हमने देखा है कि चिकनगुनिया के परिणामस्वरूप तेज़ बुखार आता है, जिसमें बेहद कमज़ोरी लाने वाला दर्द होता है, खासकर जोड़ों में। गंभीर मामलों में चकत्ते भी देखे जा सकते हैं। कमजोरी, चक्कर आना, निरंतर होने वाली उल्टी की वजह से निर्जलीकरण, मुँह का स्वाद बहुत खराब हो जाना और खून निकलना इसके खतरनाक लक्षण होते हैं। हमें कितनी ही बार बताया गया है कि हमें कहीं भी पानी इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए और पानी के प्रबंधन के गलत तरीकों की वजह से बहुत से लोगों का चालान भी काटा जा चुका है!
जब कभी किसी महामारी से सामना हुआ है, राजनेताओं ने नौकरशाहों को दोषी ठहराया, नौकरशाहों  ने दिल्ली नगर निगम को दोषी ठहराया और नगर निगम ने फिर राजनेताओं को दोषी बताया। मंत्रीगण इसके औचित्य को सही ठहराते हुए उन कारणों की बात करते हैं, जिसकी वजह से यह हर साल होता है और अन्य सरकारों के समय भी यह कैसे होता रहा है, यह बताने लग जाते हैं। टीवी एन्कर्स गला फाड़ कर चिल्लाते हुए जवाबदेही ठहराते हैं और समाचार पत्र इन कहानियों को अपनी सुर्खियाँ बनाते हैं, पर धीरे-धीरे वे अंदर के पन्नों में चली जाती हैं।
गरीब मरीज़ों को अपने प्रियजनों के साथ रोते-बिलखते एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में दौड़ना पड़ा।
लेकिन जीवन का अद्भुत चक्र जारी रहेगा। मानसून आता रहेगा और लौट जाएगा, सैलाब कम होता जाएगा और एक दिन सूख जाएगा, और अस्पतालों में रोगियों की संख्या कम हो जाएगी, समाचार चैनलों से ये ख़बरें ग़ायब हो जाएँगी और उम्मीद रहेगी कि अगले वर्ष तक फिर मच्छर जनित बीमारियाँ नहीं दिखेंगी। हर कोई फिर राहत की साँस लेगा और हमारे देश में जैसा कि हर महामारी या आपातकाल के बाद हमेशा होता है, उस साल की समस्या का "प्रबंध" कर लिया जाता है और जैसे कि लोगों की याददाश्त बहुत कम होती है, सो इस साल की चुनौतियां जल्द ही भुला दी जाती है।
स्वास्थ्य की डरा देने वाली बातों पर बिना सोचे प्रतिक्रियाएँ दे देना हमारे लिए अपवाद के बजाय आदर्श हैं।
मानसून, मच्छर और बीमारियाँ हर साल आती हैं। हम जानते हैं कि इस समस्या की हर साल पुनरावृत्ति होती है और जब तक हम इस रोग का उन्मूलन करने में सक्षम नहीं हो जाते है, तब तक सालों-साल यह जारी रहेगी। तो ऐसा क्यों है कि हम पहले ही योजना नहीं बना पाते और इन मच्छरों से उत्पन्न बीमारी के प्रभाव की गंभीरता को कम नहीं कर पाते? हमारी सरकारें क्यों ऐसा कोई कर्मी दल नहीं बनाती, जो केवल आने वाले वर्ष की योजना पर ध्यान केंद्रित करें?
सरकार के लिए मानसून से पहले निम्न कदम उठाना काफी सरल होगा (हालाँकि इस वर्ष के लिए पहले ही बहुत देर हो जाने की आशंका है):
  1. पहचान क्षेत्रों का नक्शा उतारना- उम्मीद है, पिछले वर्षों के अनुभव के बाद, हमारे शहरों के अधिकारियों ने उन सभी क्षेत्रों का नक्शा उतारा होगा, जिसे उन्होंने जल संग्रहण के प्रवण के रूप में पहचाना है। उचित नियोजन के साथ, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि मानसून की शुरुआत से पहले ऐसे सभी क्षेत्रों में सुधार लाने के लिए कदम उठाए गए हैं।
  2. महामारी संबंधी सबूत- चालू वर्ष के अभिलेखों के आधार पर हमारे स्वास्थ्य शोधकर्ता इस वायरस से संबंधित गंभीरता को जानते होंगे और इसे काबू में लाने की चिकित्सकीय आवश्यकता को पहचानते होंगे।
  3. प्रकोप की त्वरित रपट करना आवश्यक है- इसका मतलब होगा कि जिन क्षेत्रों में समस्या देखी गई, वहाँ के हालात का जायजा लेने के लिए कक्ष/ निगरानी और मूल्यांकन केंद्र स्थापित करने होंगे। जिनका पूरे उत्तरदायित्व और जिम्मेदारी के साथ स्पष्ट रूप से दस्तावेजीकरण कर उसका संचारण करने की आवश्यकता है।
  4. प्रयोगशालाएँ- यह हर साल की बड़ी बाधा बन चुकी है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रयोगशालाएँ ज्ञात हो और नागरिकों तक उनकी जानकारी पहुँचे। और निश्चित रूप से, हमें आवश्यक जाँचों के लिए शुल्क सूची की ज़रूरत है और उसकी अग्रिम घोषणा करनी होगी।
  5. प्रतिक्रिया- प्रयोगशालाओं से हर घंटे डेटा एकत्रित करने की आवश्यकता है और अध्ययन सुधार के लिए विश्लेषण करना होगा। कुछ रोगियों के लिए देरी घातक साबित हो सकती है। पहले से तैयार समूहों से डेटा और अध्ययन सुधार को तेजी से करने में मदद मिलेगी।
  6. अनुदान- महामारी से निपटने की तमाम कार्रवाई के लिए अनुदान पहले से ही अलग रखा होना चाहिए, जिसे अब निकाला होगा। बजट और तदर्थ स्वीकृतियों के लिए हाथ-पैर मारने में समय बर्बाद होता है और तब तो यह अस्वीकार्य है, जब वह समय नष्ट हो जाता है जिसमें मनुष्य के जीवन को बचाया जा सकता है।
  7. अस्पताल, क्लीनिक, नर्सिंग होम और डॉक्टरों को पहचानकर उन्हें सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। संपर्क दूरभाष क्रमांक और परीक्षण तथा उपचार के लिए पूर्व निर्धारित कीमतों की जानकारी को व्यापक रूप से विज्ञापित किया जाना चाहिए।
नागरिकों की शिक्षा एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है और इसे स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना चाहिए न कि तब तक राह देखनी चाहिए जब तक समस्या सिर न उठा लें। इन क्षेत्रों में शिक्षित करने की आवश्यकता है, जैसे किस बात पर गौर करें और बीमारी की रपट कहाँ करें। लोगों को साथ ही शिक्षित करना होगा कि वे अपने घरों को मच्छर मुक्त रखें। घर के सभी कमरों में  सुरक्षित एयरोसोल का स्प्रे करें, मच्छरदानी का उपयोग करें, पानी के बर्तनों को ढाँक कर रखें, पानी के टैंक, पालतू जानवर के कटोरे और गमलों के नीचे रखी प्लेटों को सूखी रखें और पानी को जमा न रहने दें तथा  इस तरह के अन्य निवारक कदम उठाएँ।
एक बार स्पष्ट रूप से प्रलेखित योजना पर सहमती बन गई,तो इसे सक्रिय रूप से क्रियान्वित करना अपेक्षाकृत आसान और तेज़ हो जाएगा।
यदि श्रीलंका, मलेरिया के सबसे बुरे शिकारों में से एक, मलेरिया मुक्त हो सकता है, जैसा कि सितंबर 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रमाणित किया गया है, तो क्या यह आशा करना बहुत कठिन है कि भारत भी स्वच्छता के स्तर तक पहुंच सकता है, जहाँ मलेरिया और अन्य मच्छरों की वजह से होने वाली अन्य बीमारियाँ हमारे नागरिकों को प्रताड़ित नहीं करेंगी?
अंत में, बड़े पैमाने पर कोई स्वास्थ्य कार्यक्रम तब तक काम नहीं कर सकता जब तक कि स्पष्ट उत्तरदायित्व स्थापित न हो। किसी राजनेता, नौकरशाह या स्वास्थ्य कर्मचारी को अपने हाथ खड़े कर देने या कंधे झटकने की अनुमति नहीं मिल सकती है।
स्वास्थ्य किसी एक राज्य का विषय हो सकता है, लेकिन भारत की नागरिकता किसी राज्य भर की बात नहीं है।
अगर महामारी पर नियंत्रण पाना है तो केंद्र और राज्य के बीच सहयोग जरूरी है।
आरोप-प्रत्यारोप का खेल तुरंत रोकना होगा।
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लेखक कार्यकारी कोच, कथा वाचक (स्टोरी टेलर) और एंजेल निवेशक हैं। वे अत्यधिक सफल पॉडकास्ट के मेजबान हैं जिसका शीर्षक है - द ब्रांड कॉल्ड यू- The Brand Called You, राजनीतिक समीक्षक और टीकाकार के साथ वे गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। वे 6 बेस्ट सेलर पुस्तकों के लेखक हैं और कई ऑनलाइन समाचार पत्रों के लिए लिखते हैं।
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  • अनुवादक- स्वरांगी साने – अनुवादक होने के साथ कवि, पत्रकार, कथक नृत्यांगना, साहित्य-संस्कृति-कला समीक्षक, भारतीय भाषाओं के काव्य के ऑनलाइन विश्वकोष-कविता कोश में रचनाएँ शामिल। दो काव्य संग्रह- काव्य संग्रह “शहर की छोटी-सी छत पर” मध्य प्रदेश साहित्य परिषद, भोपाल द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित और काव्य संग्रह “वह हँसती बहुत है” महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित।

Sunday, 23 June 2019

Chikungunya, Dengue – Are we prepared?


The inept handling of Encephalitis in Bihar is there for everyone to see. It is sad and appalling to see the apathy in our health care system.
The monsoons are around the corner.
Malaria, which was supposed to have almost disappeared from Delhi is back with a vengeance. Chikungunya is an emerging, mosquito-borne disease caused by an alphavirus, Chikungunya virus. The disease is transmitted predominantly by Aedes aegypti and Ae. Albopictus mosquitoes, the same species involved in the transmission of dengue.
Over the years, we have learned that Chikungunya results in high fever accompanied with severe debilitating pain, especially in joints.  Rashes can also be seen in severe cases. Weakness, dizziness, continuous vomiting leading to dehydration, very poor oral intake and bleeding are dangerous signs. We have been told that we must not let water collect anywhere and many people have been challaned because of their errant ways in managing water!
When confronted with an epidemic, politicians will blame bureaucrats who will blame the Municipal Corporation of Delhi who in turn will blame the politicians. Ministers will justify and find reasons on how this happens every year and happened under other Governments. TV anchors will scream at the top of their voices about accountability and newspapers will give these stories headlines, gradually relegating them to inside pages.
The poor patients will be left running from one hospital to another, crying for their loved ones.
The wonderful cycle of life will continue. Monsoons will retreat, water logging will dry up, hospitals will see lesser patients, the subject of ill patients will disappear from the news channels and hopefully, mosquito borne diseases will disappear for one more year. Everyone will heave a collective sigh of relief and as always happens in our country after every epidemic or emergency, the problem of this year would have been “managed” and given the short public memory, this year’s challenges would soon be forgotten.
Knee jerk reactions to a health scare seems to be the norm rather than the exception with us.
The monsoons, the mosquitos and the diseases come every year. We know that this problem recurs every year and will continue to recur in the years ahead till we are able to eradicate the disease. So why is it that we are not able to plan earlier and reduce the severity of the impact of these mosquito borne disease? Why don’t our Governments have a task force that will focus on planning for the coming year?
It would be fairly simple for the Government to take the following steps before the monsoons (though this may already be too late for this year):
  1. Identify and map the areas - Hopefully, after last years’ experience, the authorities would have mapped all the areas in our cities which they have identified as prone to collection of water. With proper planning, we can ensure that steps are taken to rectify all such areas well before the onset of the monsoons.
  1. Epidemiological evidence – Based on the records for the current year our health researchers would be aware of the strain of the virus and medication needed to handle this.
  1. Quick reporting of the outbreak is essential – this would mean setting up situation rooms / monitoring and evaluation centres in areas where we have seen the problem. These need to be manned and monitored with clear accountability and responsibility documents and communicated.
  1. Laboratories - These become a huge bottleneck every year. We should ensure that laboratories are identified and communication sent to the citizens. And of course, we need the tariffs for tests agreed and announced in advance.
  1. Feedback from laboratories needs to be collected on an hourly basis and analysed for course correction. Delays can prove to be fatal for some patients. The teams that should collect feedback should be ready now rather than hurriedly put together before the mosquitos strike.
  1. Funding for the epidemic needs to be set aside for all the actions that need to be taken now. Scrambling for budgets and ad hoc approvals is time consuming and unacceptable when the time lost can save lives of human beings.
  1. Hospitals, clinics, nursing homes and doctors should be identified and numbers and prices need to be widely advertised well before the outbreak.
  1. Education of the citizens is an ongoing matter and should become a part of the curriculum of schools rather than delay action till the problem strikes. Education should be in the areas of what to watch out for and where to report the disease. In addition, people need to be educated on making homes mosquito free; spraying all rooms with safe aerosols; using mosquito nets; covering water containers; drying water tanks, pets’ bowls and potted plant plates; not letting water stagnate and other such preventive steps.
Once a clearly documented plan is agreed and in place, getting it activated will be quick.
If Sri Lanka, one of the worst victims of malaria, can become malaria free, as certified by the World Health Organisation in September 2016, is it too difficult to hope that India too can reach levels of cleanliness where malaria and other mosquito borne diseases will no longer plague our citizens?
Finally, no mass health programme can work unless there is clear accountability established. No politician, bureaucrat or health worker can be permitted to throw up their hands and shrug their shoulders.
Health is a state subject, but citizenship of India is not.
Collaboration between the centre and the state is essential if epidemics need to be handled.
The blame game needs to stop immediately.
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The author is an Executive Coach, a Storyteller and an Angel Investor. He hosts the highly successful podcast titled The Brand Called You. A keen political observer and commentator, he is also the founder Chairman of Guardian Pharmacies. He is the author of 6 best-selling books and writes for several online newspapers. 
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