Thursday 20 July 2017

उभर रहा है बाघ, गिर रहा है ड्रैगन




विश्व को धमकाने वाला दबाव में है और उसे यह पसंद नहीं है।                           

राष्ट्रपति शी जिनपिंग को विशाल चीनी सेना और पॉलिट ब्यूरो द्वारा उन्हें व्यापक शक्तियाँ देते हुए उनका शक्तिशाली माओ और डेन्ग के साथ, चीन के तीन "कोर" नेताओं में से एक ने अभिषेक किया है। विश्व राजनीति की प्रमुख तालिका के केंद्र से राष्ट्रपति ट्रम्प ने गद्दी खाली करवाना शुरू कर दी है, जैसे कि वह अमेरिका पर ध्यान केंद्रित करता है, चीन को पीछे छोड़ते हुए, ताकि चीन यह मान सके कि वे इस गद्दी के प्राकृतिक उत्तराधिकारी हैं और इसलिए विश्व के नेता हैं।

चीनी प्रवक्ताओं या उनका राज्य चलाने वाले माध्यमों ने दलाई लामा से मिलने वाले दुनिया के हर "दुस्साहसी" वाले नेता को धमकी दी है। वे ऐसे किसी को भी पसंद नहीं करते जो ताईवान के साथ व्यापार करने की कोशिश करता है। हांगकांग की 20 वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रपति शी की हालिया धमकी, "लाल रेखा को पार नहीं करना", खतरे का इशारा कर रही थी लेकिन हांगकांग निवासी जानते थे कि परिणाम क्या होगा और इसलिए उन्होंने उसे, चुपचाप स्वीकार कर लिया। चीन ने दक्षिण चीन के समुद्र में अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया है और उन द्वीपों पर दावा किया है जो उससे संबंधित नहीं हैं। वे सही मायने में यह मानते हैं कि जो कुछ भी उन्हें पसंद नहीं है उनके पास उन सबके खिलाफ विरोध करने का अधिकार है, लेकिन वे अपने कार्यों के खिलाफ किसी भी किस्म के विरोध को स्वीकार करना नहीं चाहते हैं।

चीन ने यह सब बिना इसकी चिंता किए किया कि दूसरों को क्या महसूस हो सकता है। लेकिन अब ये धमकियाँ खोखली लगने लगी है। तेजस्वी तलवार लहराती और थकी हुई लग रही है।
                                                              
"या तो आप हमारे साथ हैं या हमारे खिलाफ हैं" चीन ने इस नीति को अपनाया और पिछले दो दशकों में अधिकांश देशों, ने इस बड़े बाजार के साथ व्यापार करने की उत्सुकता दर्शाई या उनके निवेश पाने की कामना की, और उदासीन चुप्पी ओढ़े हुए उसका अनुपालन किया है।

लेकिन चीन के साथ सब ठीक नहीं है। चीनी अर्थव्यवस्था, अपने नेताओं और उनके प्रवक्ताओं के अहंकार के कारण, स्प्ष्टर और नाटकीय रूप से धीमी हो रही है। श्रमिक अस्थिरता हर जगह है, जो या तो मजदूरी मिल पाने से, रिकॉर्ड संख्या में छंटनी या पर्याप्त नई नौकरियाँ पैदा नहीं होने से हो रहा है। आबादी की उम्र बढ़ रही है और अक्सर यह कहा जाता है कि, चीन समृद्ध होने से पहले, बूढ़ा हो जाएगा।

देश पर कर्ज 25.6 खरब डॉलर (एक खरब , 1000 अरब डॉलर के बराबर) है जो सकल घरेलू उत्पाद के 250% तक बढ़ गया है, जिस पर अधिकांश अर्थशास्त्रियों ने चिंताजनक आवाज़ उठाई है कि यह एक एक आसन्न बुलबुला है जो कभी भी फट सकता है और कर्ज की सूनामी तरंगों को दुनिया भर में महसूस किया जाने वाला है। सरकारी आँकड़ों के आधार पर बेरोजगारी 4% पर आँकी गई है, माना जा रहा है कि फाथॉम परामर्श का आँकड़ा इससे कम से कम तीन गुना अधिक होगा। विदेशी मुद्रा भंडार सन् 2014 की शुरुआत में 4 खरब डॉलर से घटकर सन् 2017 में यूएस $ 3 खरब से कुछ अधिक ही रह गया है। कोई नहीं पूछ रहा कि इन तीन सालों में 1 खरब डॉलर कहाँ खर्च हो गए। विदेशी मुद्रा भंडार 2014 के शुरुआती 4 खरब डॉलर से घटाकर 2017 में 3 खरब डॉलर के पार हो गया है।
                                                               
चीन को 7.4% की न्यूनतम वृद्धि दर की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि चीनी नागरिक लाभप्रद रूप से कार्यरत हैं। एक पारभासीय समाज में, जहाँ वित्तीय संख्याएँ संदिग्ध होती हैं और आँकड़े अपने हिसाब से "प्रबंधित" होते हैं, कोई भी नहीं जानता कि चीन में सही स्थिति क्या है, और हर कोई अटकलें लगा रहा है। विशाल ढाँचागत संरचनाओं की परियोजनाएँ  बेकार पड़ी  हैं और शहरों को भूतों के शहर की तरह देखा जा सकता है।

दुनिया भर में चीनी निवेश गंभीर चुनौतियों से जूझ रहे हैं। श्रीलंका के बंदरगाह श्रीलंका के लिए एक वित्तीय आपदा है और चीन 80% इक्विटी ले रहा है और इसलिए नौसैनिक आधार स्थापित करने का अवसर खोल दिया है। केन्या में पुल टूट रहे हैं और अफ्रीका में बुनियादी ढाँचागत परियोजनाएँ या तो उप मानक की हैं या निर्धारित समय से पीछे चल रही हैं। पाकिस्तानियों ने चीनी-पाकिस्तानी के आर्थिक आर्थिक गलियारे पर सवाल दागे हैं क्योंकि उन्हें यह लगने लगा है कि चीन ने जिन नौकरियों का वादा किया था, उन्हें हटा दिया है और जिन ऊर्जा संयंत्रों का वादा किया था, वे  वास्तव में चीन के वापरे हुए पुराने ताप विद्युत संयंत्र हैं। अब पाकिस्तानियों को डर है कि कहीं वे चीन का ही कोई दूसरा प्रांत बन जाएँगे, लेकिन वे डटा हुए हैं क्योंकि उन्हें लगता है चीन के रूप में उनके पास केवल वही "सभी मौसम मित्र" है।

राजनीतिक मोर्चे पर, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ चीन के प्रेम संबंध खत्म हो गए हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प ने ताइवान को हथियार बेचे हैं, चीन की स्व-घोषित "एक चीन नीति" का उल्लंघन किया है और उसने चीन की खोखली धमकियों को सुनने से इनकार कर दिया है। अगर वह आगे बढ़ता है और चीनी उत्पादों पर शुल्क लगाता है, तो चीन की प्रसिद्ध मिठाई की दुकानें गोते लगाने लगेंगी। दक्षिण पूर्व एशियाई देश, जो चीन की वित्तीय शक्ति से अभिभूत थे, अब चीन की धमकी को समझने लगे हैं और वे चीन के तथाकथित बड़े पैमाने को पीछे धकेलने से पहले कोई और बाजार खोजने की उम्मीद कर रहे हैं।

भारत में जो कुछ हो रहा है, इसके विपरीत है, भारत की जनसंख्या का दो तिहाई 35 वर्ष से कम आयु का है। भारतीयों के पास अब एक मजबूत लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित नेता है जिसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है।

प्रधान मंत्री मोदी ने संसद में बहुमत से जीत हासिल की है और कुछ राज्यों के चुनावों को छोड़कर, व्यापक संख्या से लगातार जीत दर्ज की है। उन्होंने भारत के कुछ तेजतर्रार पड़ोसियों के साथ बहुत सावधानी से मुश्किल निर्णय लेने में संकोच नहीं किया है। पाकिस्तान के खिलाफ उनका कड़ा रुख और भारत के सर्जिकल हमलों को सम्मान के साथ स्वीकार किया गया है।
                                                               
चीनी एक संकोची भारतीय नेतृत्व के आदी हैं, जो आम तौर पर पीठ पर होते चीनी आघातों के खिलाफ मध्य मार्ग लेने की कोशिश करता है। भूतान सीमा पर डॉकलाम में हाल ही में चीनी घुसपैठ और चीन की बयानबाजी के बावजूद मोदी की पीछे हटने की अनिच्छा ने उन्हें भारत और भारत के बाहर दोनों स्थानों पर और भी अधिक प्रशंसकों की जीत हासिल करवाई है। चीनी, जिस तरह से हर जगह अपने लिए रास्ता बनाते थे, अनिश्चित हैं और अर्थहीन खतरे खड़े कर रहे हैं।

भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश अब तक के समय का सर्वाधिक है। विमुद्रीकरण और जीएसटी की शुरुआत ने सत्तारूढ़ दल को मजबूत बना दिया है। स्टॉक बाज़ार अब तक के समय के उच्चतम पर है। अब भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली है और कम से कम अगले दशक तक यह गति जारी रखेगी। और, प्रधान मंत्री मोदी की यह तो शुरुआत है। सन् 2019 के संसदीय चुनावों में वे अपनी पार्टी को आसानी से भारी बहुमत से दिलवा देंगे।

पिछले तीन सालों में मोदी की चक्रवात कूटनीति ने उनके लिए कई मित्रों और प्रशंसकों को जीता है। अपने चीनी समकक्ष के विपरीत, मोदी जानते हैं कि धनी भारतीय प्रवासी से कैसे जुड़ना है। दुनिया भर के विरोधी समूहों को संतुलित करने की उनकी क्षमता ने भारत के बाहर भारतीय व्यवसायों के लिए और भारत में विदेशी व्यापार के लिए आर्थिक अवसर खोल दिए हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल के साथ मजबूत बंधन भारत को केवल अधिक निवेश पाने में ही मदद नहीं करेंगे बल्कि हमारी पहले से ही मजबूत रक्षा क्षमता को भी मजबूत करने में मदद करेंगे।

अस्सी के शुरुआती तीन दशक चीन के थे। सन् 2014 से शुरू अगले तीन दशक, निश्चित रूप से भारत के हैं, अब दुनिया में एक शक्तिशाली के रूप में स्वीकार किए जाने की शुरुआत है।
                                                               
चीन अपने कदमों को पीछे लेना पसंद नहीं करता है, लेकिन क्या विश्व को वास्तव में उसकी परवाह है?
  

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लेखक गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष हैं. वे बेस्ट सेलर पुस्तकों रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं.

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3 comments:

  1. No doubt it is very enthusiastic article but we only after 2014 become to counter chaina. It is the combine efforts of previous government and the present.I really appreciate our PM for this courage

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  2. आपका यह लेख सराहनीय है कुछ नया ग्यान मिला dhanyawad

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  3. Chinese leaders
    should read about Hitler before going to war.

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