शब्दकोश में इच्छा रहते हुए अपनी वसीयत कर जाने को इस तरह से परिभाषित किया गया है कि "एक व्यक्ति की इच्छाओं के ब्योरे का लिखित कथन, जो भविष्य के चिकित्सा उपचार की परिस्थितियों के बारे में सूचित कर दें, विशेष रूप से एक अग्रिम निर्देश तब के लिए जब वे सहमति व्यक्त करने में सक्षम नहीं होंगे।”
इच्छामृत्यु (लिविंग विल) और उससे जुड़े मुद्दों पर बहस बीच-बीच में होती रहती है और वह भी केवल सतही तौर पर और फिर उस पर बाद में फिर कभी चर्चा के लिए कहकर विषय पर “मिट्टी डाल” दी जाती है मानो किसी दिन सारे तर्क या प्रभावित परिवारों की ज़रूरतें अपने आप किसी अधिक स्वीकार्य कथा में बदल जाएंगी। भारत में लगभग छह साल पूर्व ही उन लोगों के जीवन को खत्म करने के एक वैधानिक विकल्प के रूप में निष्क्रिय हो जाने पर इच्छामृत्यु को स्वीकार किया गया था जो मृतप्राय स्थिति में पहुंच गए हो।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 अक्टूबर 2017 को इच्छामृत्यु की अवधारणा की जाँच करने का फैसला किया। सरकार का कहना है कि अभी तक इच्छामृत्यु के फायदे और नुकसान की जाँच होना शेष है, क्योंकि ऐसा लगता है कि भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और कानूनी व्यवस्था को देखते हुए इच्छामृत्यु का यह मामला बहुत जटिल है। इसलिए, पिछली कई सरकारों की तरह, इस सरकार को भी इस विषय पर लगता है कि तूफ़ान आने पर "शुतुरमुर्ग की तरह" दृष्टिकोण अपना लेना आज की वास्तविकता के लिए सबसे उपयुक्त है।
यदि सबसे अच्छे कानूनी दिग्गज इस मुद्दे की लाभ-हानि पर बहस करेंगे तो उन सभी परिवारों की समस्या का समाधान दे सकेंगे, जिनके पास ऐसे हालात में अपने प्रियजनों का साथ देते रहने के लिए पर्याप्त वित्तीय साधन नहीं होते हैं, आइए हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक सोच को देखते हुए एक भावनात्मक परिप्रेक्ष्य से इच्छामृत्यु की अवधारणा की जाँच करें। इसके अलावा, यह भी देखना होगा कि परिवार के सदस्यों को भारी चिकित्सा लागतों को सहन करना पड़ता है। साथ ही, उन्हें निश्चित कानूनी लागतों का भुगतान भी करना होगा और तो और पहले से ही काम का अधिक बोझ झेल रही अदालतों से अनुमोदन प्राप्त करने का प्रयास करना होगा।
जब किसी परिवार का सदस्य कोमा में चला जाता है तो उन परिवारों की अधिकांश बचत खर्च हो जाती है और कई मामलों में जीवन रक्षक उपकरणों से इलाज को जारी रखने के लिए उन्हें अपनी परिसंपत्तियों को बेचना पड़ता है। वे समझ जाते हैं कि उनके प्रियजनों के बचने की कोई उम्मीद नहीं है, लेकिन चिकित्सा सहायता न देने के सामाजिक कलंक से बचने का रास्ता उन्हें वित्तीय विनाश की ओर लेता चला जाता है। क्या अस्वस्थ रोगी, जवान या बूढ़ा, चाहता है कि परिवार के सभी सदस्य अपनी सारी जमा-पूँजी ख़त्म कर दें और अपनी संपत्ति बेच दें? सरकारी स्वामित्व वाले चिकित्सा महाविद्यालयों के बाहर दवा बेचने वाले अनैतिक दुकानदारों के हजारों उदाहरण होंगे जिनका पूरा ध्यान इस ओर होता है कि कैसे रोगियों के लिए बहुत आवश्यक लेकिन व्यर्थ दवा की बदौलत उन रिश्तेदारों की संपत्ति प्राप्त कर सकें। वित्तीय हानि के अतिरिक्त, हमें परिवार के सदस्यों की महत्वपूर्ण समय प्रतिबद्धता और प्रभावित परिवार के सदस्यों पर उससे होने वाले भावनात्मक प्रभाव को भी देखना चाहिए।
यदि डॉक्टरों का एक समूह प्रमाणित करता है कि, उस व्यक्ति के ठीक होने और कोमा से बाहर आने की संभावना नहीं है, तो क्या उस व्यक्ति को पीड़ा से और परिवार को वित्तीय बर्बाद होने से मुक्त करने के लिए यह स्वीकार्य नहीं होना चाहिए?
जब हम इच्छामृत्यु की योग्यता पर बहस करेंगे, हमें इच्छामृत्यु के दस्तावेज को निर्देशों के एक संच के रूप में भी देखना चाहिए, जिसे हम हमारे प्रियजनों के लिए अपने पीछे छोड़ना चाहते हैं। हमारे कानूनी दिग्गजों और हमारी सरकार के हित के लिए, हम अपनी इच्छामृत्यु को इस तरह भी परिभाषित कर सकते हैं कि यह हमारी “स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए अग्रिम निर्देश और स्वास्थ्य सुरक्षा प्रतिनिधि की नियुक्ति" की तरह है। इस दस्तावेज को तब लागू किया जाएगा जब हम में से कोई मृत्यु शैया पर होगा या लाइलाज चोट या बीमारी हो या यदि हम में से कोई स्थायी रूप से अवचेतन में चला जाए, जिसे कि दो चिकित्सकों द्वारा प्रमाणित किया गया हो।
हम अपने इस स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए अग्रिम निर्देश और स्वास्थ्य सुरक्षा प्रतिनिधि के नियुक्ति दस्तावेज को हमारे सामान्य वसीयतनामे से जोड़ सकते हैं और दस्तावेज की एक प्रतिलिपि अपने बेटों को उनके ज्ञान और अभिलेख के लिए भेज दें।
यह दस्तावेज़ हमारे परिवार के सदस्यों को हमारा स्वास्थ्य देखभाल प्रतिनिधि बनने के लिए अधिकृत करता है और निम्नलिखित बिंदुओं की रूपरेखा करता है:
1. अधिकांश भारतीय परिवार मौत के मामले पर अपने बुजुर्गों के साथ बैठकर बात नहीं करते हैं। इस तरह की बात करना अच्छा नहीं माना जाता है। इसलिए, जब कोई व्यक्ति गुज़र जाता है, तो कोई भी नहीं जानता कि अंतिम संस्कार कैसे किया जाना चाहिए। कैसे उन लोगों का अंतिम संस्कार किया जा सकता है, परिवार के सदस्यों को अब कुछ-कुछ जानकारी हो रही है कि क्या अंतिम संस्कार पारंपरिक लकड़ी की चिता दहन से किया जाए या बिजली के श्मशान का उपयोग करना चाहिए। इच्छामृत्यु यह परिभाषित कर सकती है कि मैं अपने पर कैसे संस्कार करना चाहता/ चाहती हूँ और मेरी राख के साथ क्या करना चाहिए।
2. अंग और नेत्र दान को अब हमारे देश में स्वीकृति प्राप्त हो रही है। दान प्रारूपों पर हस्ताक्षर ले लिए जाते हैं लेकिन परिवारों को संप्रेषित नहीं किया जाता है। कई बार ऐसा होता है कि मृतक के रिश्तेदारों को पता नहीं होता और इसलिए समय पर कार्रवाई नहीं हो पाती है। इच्छामृत्यु में इन निर्देशों को सावधानीपूर्वक परिभाषित किया जा सकता है।
3. यह दस्तावेज चिकित्सा व्ययों को कैसे पूरा किया जा सकता है, उसके धन स्रोतों को भी परिभाषित कर सकता है। आईटी वाले स्पष्ट रूप से बता सकता हैं कि हमारी बचत और धन का उपयोग किया जाएँ बजाए कि परिवार के सदस्यों को बोझ होने के।
इच्छामृत्यु के मामले में त्वरित निर्णय लेने ज़रूरत है और इन शर्तों को एक कानून में बाँधना महत्वपूर्ण है। हालाँकि " दुष्प्रयोग और दुरुपयोग" के बहाने निर्णय लेने में देरी करना आसान है। क़ानून बनाने वालों को उन परिवारों की ओर देखना चाहिए जिसका कोई रिश्तेदार बीमार है और उन पर भारी वित्तीय और भावनात्मक बोझ पड़ रहा है। प्रणाली का दुरुपयोग न हो सकें इसके प्रबंधन पर कानून को ध्यान केंद्रित करना चाहिए न कि खुद प्रणाली पर। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि मंजूरी और अनुमोदन देने की अनुचित शक्ति नौकरशाहों या न्यायपालिका को न मिल सकें, जो इसे पीड़ित परिवारों की तकलीफ़ को बढ़ाने के लिए एक और शक्ति केंद्र में बदल सकती हैं।
हाँ, चमत्कार होते हैं। एक चमत्कार "एक असाधारण और स्वागत योग्य घटना के रूप में परिभाषित किया जाता है उसे प्राकृतिक या वैज्ञानिक नियमों द्वारा स्पष्ट नहीं किया जा सकता है और इसलिए उसे ईश्वरीय ताकत पर छोड़ दिया जाता है।"
लेकिन ऐसे चमत्कारों की प्रतीक्षा के लिए कितनी कीमत चुकानी है?
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लेखक गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष हैं। वे 5 बेस्ट सेलर पुस्तकों – रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and द बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम अ मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं।
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