Monday, 19 November 2018

भारत में आगामी चुनाव - जवाबों से अधिक हैं सवाल



भाजपा ने बेल्लारी में एक और सीट खो दी है और काँग्रेस ने अविश्वसनीय नेतृत्व की विजयी तुरही को पहले ही बजा दिया है, जिसे उनके "युवा" नेता देश को उपलब्ध करा रहे हैं!

जब भाजपा में "चिंतन बैठकें" चलेंगी तब भाजपा के विचारक (थिंक) टैंक को इस पर भी विचार करना चाहिए कि असल में मतदाताओं के दिमाग में क्या चल रहा है और क्यों ऐसा लग रहा है कि उनके अपने निर्वाचन क्षेत्रों के हाल उनके कानों तक नहीं पहुँच पा रहे हैं।

स्पष्ट रूप से कथित भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर निरंतर हमले की विपक्षी रणनीति मतदाताओं के दिमाग को प्रभावित करने लगी है, मतदाताओं की बहुत ही आम प्रतिक्रिया है कि "बिना आग के धुआँ नहीं उठता"। प्रधानमंत्री मोदी पर बार-बार चलकर जाने की विपक्षी रणनीति भाजपा को चोट पहुँचाने लगी है।

तमाम राजनीतिक तफ़सीलों को हवाओं में उड़ा दिया गया है और विपक्ष के लिए प्रधानमंत्री मोदी मतलब "अर्जुन के लिए मछली की आँख" की तरह है। उन्हें भ्रष्ट से लेकर बिच्छू और हिटलर से लेकर एनाकोंडा तक न जाने क्या-क्या कहकर बुलाया जा चुका है और विपक्ष ने उनके लिए किताब का कोई नकारात्मक विशेषण बकाया नहीं रखा है।

अधिकांश विपक्षी नेता अभी भी यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या प्रधानमंत्री पर हमला बोलने का इरादा योग्य है, जिन्हें वर्तमान समय के सबसे कद्दावर नेता के रूप में देखा जा रहा है। वे इसे लेकर भी निश्चिंत नहीं हैं कि वे किस विषय का आधार लेकर हमले कर सकते हैं।

तथाकथित महागठबंधन अपने तरीके से चलते हुए लगता है अपने पागलपन की कगार तक पहुँच गया है। हालाँकि उनके द्वारा बार-बार किए जाने वाले हमले मतदाताओं तक पहुँच रहे हैं, तथापि मतदाता इस कथा को स्वीकार करेंगे या नहीं, यह अब भी काफ़ी अस्पष्ट है।

हालाँकि, क्या असल में कोई महागठबंधन है?

क्या सीपीआई (एम) और तृणमूल काँग्रेस या समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे पूरी तरह से भिन्न विचारधारा वाले राजनीतिक दल वास्तव में किसी साझा मंच पर आ सकते हैं? क्या वे कभी भी आम आर्थिक एजेंडे और शासन की भ्रष्टाचार मुक्त प्रणाली पर सहमत हो पाएँगे?

भारत के चतुर मतदाता पहचानते हैं कि उनके सामने ऐसी स्थिति नहीं हो सकती जब राजनेता भारत के प्रधानमंत्री की कुर्सी के साथ संगीत कुर्सी का खेल खेलें और जिसके प्रमुख खिलाड़ी मायावती, ममता बनर्जी, राहुल गाँधी, अखिलेश यादव और चंद्रबाबू नायडू हो।

हर कोई स्वीकार कर रहा है कि अगर मोदी को दूसरा कार्यकाल नहीं मिलता है तो वह बड़ी आपदा होगी क्योंकि राजनीतिक दलों की भीड़ में नियमित आवर्तन पर हर साल एक नया प्रधानमंत्री मिलने के विकल्प की डरावनी आशंका है। हर 12 महीने में नया प्रधानमंत्री और संभावित रूप से पूरी तरह फिर नए संशोधित मंत्रिमंडल की कल्पना तक करना भयानक है!

काँग्रेस जानती है कि अगले चुनावों के बाद तक जीवित बने रहने के लिए उनका एकमात्र आसरा आक्रामक होना है। भाजपा पर हमला करने के लिए मंदिर दर्शन और नर्म हिंदुत्व के अलावा राहुल गाँधी छत्तीसगढ़ में शराब पर प्रतिबंध लगाने के लिए ऋण छूट देने का वादा करने तक कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।

उनके हमले आम तौर पर आरएसएस, राफेल, विमुद्रीकरण, घोर पूंजीवाद, जीएसटी और गैर-निष्पादित संपत्ति के आसपास केंद्रित होते हैं। आरएसएस पर हमला हास्यास्पद है। आरएसएस से जुड़े तमाम लोग राहुल गाँधी जो भी आरोप लगाते हैं, उनमें से किसी पर विश्वास नहीं करते हैं। वे जो आरएसएस से न भी जुड़े हैं, वे भी इस बात से सहमत हैं कि हिंदू कभी भी आतंकवादी नहीं हो सकते हैं। क्या आम मतदाता को पता भी है कि राफेल सौदा है क्या?

क्या कोई भी वास्तव में राहुल गाँधी द्वारा उठाए गए भ्रष्टाचार के मामलों पर विश्वास करता है, क्योंकि वे अपने भाषणों में अपनी सहूलियत से एक बार एक बात कहते हैं फिर ठोकर लगने पर दूसरी गलती करते हैं। क्या यह ऐसा ही नहीं कि कोयले की कोठरी में रहने वाला कहे कि काजल काला है? चुनावों को लेकर काँग्रेस की रणनीति क्या है सिवाय मोदी को गाली देने और भ्रष्टाचार के ढेरों अस्तित्वहीन आरोप लगाने के?

क्या राहुल गाँधी अब न केवल काँग्रेस की बल्कि महागठबंधन की भी बड़ी देयता नहीं बन गए हैं? क्या काँग्रेस के भीतर का असंतोष उसके नेताओं को एक दिशा में एक साथ खींचने में सक्षम होगा? क्या राहुल गाँधी की सावधानीपूर्वक बनाई गई योजनाएँ तेजी से अलग-थलग हो रही हैं क्योंकि वास्तव में कोई भी उन पर या उनकी क्षमताओं पर भरोसा नहीं कर रहा है।

क्या राहुल गाँधी चुनावी खेल में बहुत जल्दी "मुरझा" रहे हैं और क्या उनके तरकश वर्ष 2019 की पहली तिमाही के अंत तक कमान पर चढ़े तीरों से भरे होंगे या वे पहले से चलाए गए या बोथरे तीरों का इस्तेमाल करेंगे?
                                                 
सरकार द्वारा लिए गए हर निर्णय की काँग्रेस के नेताओं और उनसे जुड़े उन पत्रकारों द्वारा बार-बार पड़ताल की जाती है जिन पत्रकारों को भाजपा ने पिछले 4 सालों में छोड़ दिया है। जैसे-जैसे चुनाव पास आएँगे यह चढ़ाई और जोर पकड़ेगी। यह स्थिति लगभग इस तरह दिखती है जहाँ राहुल गाँधी और उनकी टीम हर दिन अख़बारों के पन्ने पलटती है और "चटपटे जायके" की तरह मसाला खोजती है कि कैसे हमला किया जा सकता है।

भाजपा प्रवक्ताओं का इन हमलों पर कोई जवाब सुनने में नहीं आता है गोयाकि वे अपने डेसीबल स्तर और तिज़ारती हमले को बढ़ाने की कोशिश करें और उससे भी बढ़कर यह कह दें कि, "ठीक है, पर वे भी तब ऐसा कर सकते थे, जब वे सत्ता में थे"

भाजपा मोदी के मजबूत नेतृत्व तले विकास करने और भ्रष्टाचार को हटाने के मंच पर सत्ता में आई। पिछले 54 महीनों में कई ठोस विकास कार्य हुए हैं और बचाव करने के बजाय सफलताओं पर जोर देना अधिक महत्वपूर्ण है।

ऐसे में यह सवाल पूछा जाना लाज़मी है कि क्या यह सारा मोदी विरोधी प्रचार और शोर भाजपा के पीछे खड़े हिंदू वोट को मजबूत करने के लिए हैं क्योंकि कोई भी मोदी के खिलाफ लगाए जाने वाले भ्रष्टाचार के आरोपों पर वास्तव में विश्वास नहीं कर रहा है?

तब भी, भाजपा इससे जुड़े सभी सकारात्मक पहलुओं का लाभ उठाने में सक्षम नहीं दिख रही है और विपक्षी नेताओं के गिरोह द्वारा बनाए झमेलों में उलझी हुई है, जिनका एकमात्र लक्ष्य है- हर कीमत पर जीत हासिल करना, फिर परिणाम भले ही कुछ भी हो। 

भाजपा केवल यह उम्मीद कर सकती है कि विपक्षी रणनीति की धार बहुत जल्दी ख़त्म हो जाएगी क्योंकि ख़ुद के कहे का विरोधाभास न करते हुए बार-बार झूठ बोलते रहना काफी कठिन होता है।
                                                                             
राजनीति और चुनाव महज़ धारणाओं के खेल हैं।

भ्रष्टाचार वह विषय है जिसे भारतीय मतदाता समझते हैं और तुच्छ मानते हैं। भाजपा ने स्थापित किया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने देश में भ्रष्टाचार को काफी कम कर दिया है।

राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के चुनाव क्या वास्तव में वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में क्या हो सकता है उस संभावना की ओर इशारा करते हैं? लोकसभा चुनाव अभी 6 महीने दूर हैं। विभिन्न समाचार चैनलों द्वारा की जा रही मतदाताओं की गणना के बहुत ही विविध परिणाम आ रहे हैं और हम जानते हैं कि ये परिणाम अगले कुछ महीनों में बदलते रहेंगे।

जैसा कि कहा जा रहा है, देश को विकास की आवश्यकता है और मतदाताओं की उनके नेताओं से यही उम्मीद है। लेकिन 5 साल की अवधि में जो विकास हुआ है वह चुनाव में जीत नहीं दिलवा पाता है। पिछले कुछ दिनों में चुनाव में जीत या हार इस पर निर्भर हो रही है कि सीमांत मतदाता क्या तय कर रहे हैं।

धारणाएँ, झूठ और भ्रष्टाचार के आरोप मतदाताओं के दिमाग में संदेह पैदा करते हैं और उसका तुरंत जवाब देने और बड़े पुरज़ोर तरीके से जवाब देने की आवश्यकता होती है जैसे कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने व्यापमं मामले में किया था, जिसके बाद राहुल गाँधी को अपना बयान वापस लेना पड़ा था।

भ्रष्टाचार के आरोपों पर चुप रहना या जवाब देने के लिए उचित समय की प्रतीक्षा करना झूठ को मजबूत करता है और मतदाता मौन के कारण पर सवाल पूछने लगते हैं।

अगले कुछ महीनों में भाजपा की किस्मत अच्छी नज़र आ रही है, जो तेल की कीमतों में गिरावट के साथ शुरू हो रही है। अच्छी बारिश और किसानों के हाथों में अधिक पैसा कहानी को अचानक भाजपा के पक्ष में कर देगा। भाजपा को अब यह भी करना होगा कि उसके नेताओं को शहरों, स्थानों और तत्सम विषयों के नाम बदलने जैसे विविधीय विषयों की बात करना बंद करना होगा, जिससे कहानी में भटकाव आए और उसे विकास और भ्रष्टाचार के मुद्दे से दूर ले जाएँ।

सत्तारूढ़ दल को हमेशा विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और विपक्ष जानता है कि हवा उसी दिशा में बह रही है, जिस ओर उसकी नाव जा रही है। इस पड़ाव पर अब उत्तरों से अधिक प्रश्न हैं।

हालाँकि स्पष्ट है कि भाजपा को अपनी कथा बदलने की और शीघ्रताशीघ्र बदलने की जरूरत है। जो भी मौलिक परिवर्तन किए गए हैं, उन सभी के परिणाम अगले पाँच वर्षों में देखे जा सकेंगे।

भाजपा के लिए यह चुनाव काफ़ी महत्वपूर्ण " जीतना ही होगा" जैसा है।

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लेखक कार्यकारी कोच और एंजेल निवेशक हैं। राजनीतिक समीक्षक के साथ वे गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। वे 6 बेस्ट सेलर पुस्तकों – रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and द बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम अ मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं।

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