निजी क्षेत्र के एक बड़े कॉर्पोरेशन ने जब भारत में आयोजन किया, तब मैं वहाँ सेवानिवृत्ति पर वक्तव्य दे रहा था, मुझे यह देख सुखद आश्चर्य हुआ कि अध्यक्ष और निदेशकों की पूरी समिति वहाँ सेवानिवृत्तों को प्रोत्साहित करने और उनको सहयोग देने के लिए मौजूद थी। अध्यक्ष को सुनने और समिति के कई सदस्यों से गहराई से बात करने तथा सेवानिवृत्त कर्मचारियों की अगली पीढ़ी के साथ रहने के बाद मैं बहुत सकारात्मक प्रभाव लेकर लौटा…मुझे लगा कि यह संगठन भविष्य को ध्यान में रखकर, सेवानिवृत्तों की देखभाल करने वाला है, जो आमतौर पर नहीं दिखाई देता।
अधिकांश संगठन सेवानिवृत्तों के लिए छोटी-सी विभागीय पार्टी रख देते हैं और उस व्यक्ति के डूबते सूरज के घोड़े की लगाम कस देते हैं। केवल कंपनी का अध्यक्ष जिसने संगठन को बहुत ऊँचाइयाँ दी हो, उसे छोड़ दे तो पूरे देश या विश्व में सबके साथ यही होता है कि उन्हें सूर्यास्त की दिशा में अकेले उड़ान भरनी पड़ती है। सबका अंत लगभग एक समान होता है- कोई संगठन किसी को सेवानिवृत्ति के लिए तैयार होने में मदद नहीं करता। यह सरकारी कर्मचारियों, सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों, साथ ही साथ निजी क्षेत्र के कर्मचारियों, सब पर लागू होता है।
खेल का अंत एक समान होता है, कितनी पार्टियाँ दी जाती हैं और कितने उपहार दिए जाते हैं यह केवल इस पर निर्भर करता है कि कोई सेवानिवृत्त कितना वरिष्ठ या कनिष्ठ था। संगठन के नज़रिए से देखें तो, वे अपने सहकर्मी को जोशीली बिदाई दे रहे होते हैं, लेकिन जैसे ही उसका कद कम होता है और आखिरी दिन आता है, उसकी ज़िंदगानी बदल जाती है।
नियोक्ताओं को यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि इन सेवानिवृत्त लोगों के पास संगठनात्मक ज्ञान की प्रचूर संपदा है और उनसे जुड़े रहना संगठन और भावी कर्मचारियों के लिए लंबे समय तक लाभदायी रहेगा।
विकसित देशों के कुछ आँकड़ों के अनुसार बमुश्किल 15% सेवानिवृत्त अपने बाद के जीवन को लेकर योजनाएँ बना पाते हैं, सेवानिवृत्त का मन-मस्तिष्क इसके लिए पूरी तरह तैयार नहीं होता। वे अपने-आपको संतुलित रखना चाहते हैं, लेकिन सेवानिवृत्ति के पहले ही दिन जीवन की यह अवस्था उन पर वार कर देती है।
नए प्रक्षिशुओं और कनिष्ठों तथा वरिष्ठता क्रम के मध्य में स्थित प्रबंधन के लोगों के प्रशिक्षण पर संगठन लाखों रुपए खर्च कर देते हैं। प्रशिक्षण पर इतनी राशि इसलिए खर्च की जाती है ताकि कंपनी की ‘निचली रेखा’ में इज़ाफ़ा हो और शेयरहोल्डर को दिए जाने वाले लाभांश में वृद्धि हो सके। इसमें से कुछ राशि बड़ी आसानी से अलग रखी जा सकती है जिन्होंने अपना पूरा जीवन संस्थान को दिया था। इस राशि से उन्हें पुन: तैयार किया जा सकता है और हो सकें तो कार्यकुशल भी बनाया जा सकता है।
हालाँकि सरकारी और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों और कुछ-एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सेवानिवृत्ति के लिए योजनाएँ होती हैं लेकिन अधिकांश सेवानिवृत्त उन सेवानिवृत्ति लाभ को नहीं उठा पाते। सेवानिवृत्तों के सामने आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी दो बड़ी महत्वपूर्ण चुनौतयाँ होती है जिनका उन्हें सामना करना पड़ता है। सेवानिवृत्ति की तारीख के तीन साल पहले से सेवानिवृत्ति की तैयारियाँ शुरू की जाना चाहिए। वरिष्ठों के नेतृत्व में मानव संसाधन विभाग को इस योजना हेतु पहल करनी चाहिए।
तो, कोई संगठन किस तरह सेवानिवृत्तों को सेवानिवृत्ति के बाद के जीवन के लिए तैयार करने में मदद और सहयोग कर सकता है?
सेवानिवृत्ति के बाद का समय प्रबंधन समायोजन की प्रक्रिया है
अधिकांश सेवानिवृत्त लोगों ने दो से तीन दशक, कंपनी के लिए जी-तोड़ मेहनत कर गुज़ारे होते हैं, तब अपनी छुट्टियों और पारिवारिक समय से समझौता करते हुए उन्होंने अपने निजी जीवन का विचार तक नहीं किया होता और हर हफ़्ते बिना रुके 60 घंटे काम किया होता है। इस तरह के लोग सेवानिवृत्त व्यक्ति का श्रेष्ठ उदाहरण होते हैं, जिनके सामने सबसे गंभीर कठिनाई होती है कि काम रुक जाने पर अब पूरे खाली पड़े समय का क्या किया जाए?
कुछ संवेदनशील और प्रगतिशील नियोक्ता, कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति की आयु तक पहुँचने में मददगार होते हैं। वे अपने कर्मचारियों को इस बारे में सचेत कराते रहते हैं कि उनके आगे के जीवन की गति किस तरह धीरे-धीरे धीमी होती चली जाएगी।
मुझे यह देखककर खुशी हुई कि इन कंपनियों में सेवानिवृत्त होने से तीन साल पहले से अलग तरह की सुविधाएँ देने का दौर शुरू हो जाता है,
वहाँ ऐसे कर्मचारियों के सालाना अर्जित अवकाश में हर साल एक तिहाई की वृद्धि की जाती है। इस तरह यदि सेवानिवृत्ति से तीन साल पहले किसी कर्मचारी को चार सप्ताह का अर्जित अवकाश मिल सकता है तो वे उसे पाँच सप्ताह के लिए योग्य बना देते हैं, फिर सेवानिवृत्ति से दो साल पहले उस कर्मचारी को पाँच सप्ताह का अवकाश मिलने लगता है और सेवानिवृत्ति वाले वर्ष में वह सात सप्ताह का हो जाता है। इससे सेवानिवृत्त होने वाले व्यक्ति को अवसर मिलता है कि वह खाली समय क्या करेगा, इस बारे में सोच सकता है और धीरे-धीरे अपने नए जीवन के लिए खुद को तैयार करता चलता है।
कुछ कंपनियाँ अपने सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों के लिए सेवानिवृत्ति से दो साल पहले लचीले समय की व्यवस्था कर देती है।
कुछ अन्य कंपनियाँ अपने सेवानिवृत्त कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति से छह महीने पहले अपने हिसाब से समय चुनने की छूट देती हैं ताकि वे अपने निजी कामों को अपने हिसाब से कर सके।
ज़ाहिरन, अतिरिक्त छुट्टी लेने या लचीले समय का विकल्प पूरी तरह से सेवानिवृत्तों के लिए खुला विकल्प होता है। मुझे आश्चर्य इस बात का हुआ कि बहुत कम सेवानिवृत्त इस अवसर को उठाते हैं, इसकी वजह या तो उनके मन में अपनी नौकरी को लेकर असुरक्षा का भाव होता है या उनकी इच्छा अपनी होने वाली सेवानिवृत्ति से सामना करने की नहीं होती और जो अवश्यंभावी है उसे अंतिम दिवस तक स्वीकारना टालते रहते हैं।
आर्थिक और सांपत्तिक प्रबंधन
सेवानिवृत्तों की सारी चिंताओं की एकमेव सबसे बड़ी वजह यह होती है कि क्या उनकी बचत, सेवानिवृत्ति के बाद की उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी। इतना ही कहना काफ़ी नहीं होगा कि उन्हें और बेहतर तरीके से योजना बनानी चाहिए या वे जानते हैं कि उनकी सेवानिवृत्ति अपरिहार्य है।
विभिन्न कर्मचारियों को अलग-अलग तरीके से योजना बनानी चाहिए। मैं ऐसे कई सेवानिवृत्त लोगों से मिला हूँ जो अपनी बड़ी पूंजी संपत्ति खरीदने में लगा देते हैं, उनका विश्वास होता है कि वे उतार-चढ़ाव से खुद को बचा रहे हैं। वे संपत्ति के मामले में तो अमीर होते हैं पर नकदी में वे ग़रीब होते हैं। उसी तरह दूसरे लोग भी होते हैं वे अपना पैसा बचाते हैं और अपना खुद का घर भी नहीं खरीदते इस ग़लतफ़हमी में कि वे सेवानिवृत्ति के बाद खरीद लेंगे और जब वह क्षण आता है, अचानक उन्हें लगता है यदि घर में पैसा लगाया तो उनकी बचत का एक बड़ा हिस्सा अटक जाएगा।
नियोक्ता अपने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की यात्रा में उनकी वित्तीय योजनाओं में मददगार होने में एक बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। जब कर्मचारी अपनी सेवानिवृत्ति से पाँच वर्ष दूर होते हैं तभी कंपनियों को इस बारे में प्रकाश डालना शुरू कर देना चाहिए। वित्त प्रबंधन के लिए व्यावसायिक मार्गदर्शन दिलवाकर नियोक्ता अपने सेवानिवृत्तों की सेवा में काफ़ी मददगार हो सकते हैं।
कर्मचारी कितना भी वरिष्ठ या कनिष्ठ क्यों न हो, उन्हें अपनी सेवानिवृत्ति के बाद की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए योजनाएँ बनाने में मदद की आवश्यकता होती है, ख़ासकर उनके जीवनसाथी इसे लेकर जागरूक नहीं होते कि उन्हें अब क्या सोचना चाहिए क्योंकि उन्हें तो अपने मासिक चेक मिलने की आदत होती है। भविष्य में सेवानिवृत्त होने वालों में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की होती है जो इस बात की चिंता नहीं करते कि वे थोड़ा रुककर योजनाएँ बनाएँ और अपने संचित कोष में देखें कि कितना पैसा है और न ही वे इस बात के प्रति जागरूक होते हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें मासिक खर्चों को पूरा करने के लिए कितने पैसों की ज़रूरत होगी। नियोक्ता नामी विश्वसनीय वित्तीय सलाहकारों का चयन कर सकते हैं और उनसे कार्यकालीन समय में शिविर लगाने के लिए कह सकते हैं ताकि भविष्य में सेवानिवृत्त होने वाले उनसे वे सवाल पूछ सकें, जिन्हें वे अब तक नहीं पूछ पाए थे। इससे सेवानिवृत्तों को योजना बनाने की प्रक्रिया शुरू करने में बेहतर सहायता मिल सकेगी।
अधिकांश सेवानिवृत्त, जिन्होंने अपना घर खरीदने में पैसा निवेश नहीं किया होता है, उन्हें यह तय करने में मदद की ज़रूरत होती है कि उन्हें किस तरह का घर खरीदना चाहिए जो उनके वर्तमान और भावी नकदी तरलता के दायरे में हो। वे सेवानिवृत्त जिन्होंने अपना खुद का घर खरीद लिया है, उन्हें विस्तार से यह बताना बहुत ज़रूरी होता है कि उन्हें घर अपने या जीवनसाथी के ही नाम पर रहने देना चाहिए और उसे तब तक बच्चों के नाम पर हस्तांतरित नहीं होने देना चाहिए जब तक कि उन दोनों में से कोई एक भी ज़िंदा हो। इस तरह के कई मामले देखे गए हैं जहाँ बूढ़े माता-पिता को उनके ही बच्चों ने घर से निकाल फेंका हो।
अधिकांश लोग शांति से बैठकर अपनी वसीयत बनाने की चिंता नहीं करते। यह एक और क्षेत्र है जिसके बारे में योजना बनाना और इस प्रक्रिया में कर्मचारियों की मदद करना बहुत ज़रूरी है। हममें से अधिकांश यह मानकर चलते हैं कि जीविका कमाने वाले मुख्य व्यक्ति के गुज़र जाने के बाद संपत्ति अपने आप उनके जीवनसाथी को मिल जाएगी। जबकी ज़रूरी नहीं कि ऐसा ही हो और अदालत में ऐसे हज़ारों मामले केवल इतनी सी बात पर चल रहे हैं कि वसीयत नहीं बनी थी। दोनों जीवनसाथी के लिए अच्छा होगा कि वे अपनी वसीयत लिखें और बैंक लॉकर में जाकर रख आए।
सेवानिवृत्ति के बाद की कुशलता
जागरूक नियोक्ता अपने सेवानिवृत्त कर्मचारियों का कौशल बनाए रखने के लिए कई कदम उठाकर उनकी मदद कर सकते हैं।
कंपनी में पुन: रोजगार – कंपनियों को उन कर्मचारियों को सहयोग देना चाहिए जो पुन: रोजगार योजना के अंतर्गत और काम करने की इच्छा रखते हो। इसे सलाहकार सहयोग या सावधि करार की तरह किया जा सकता है। इस तरह के विकल्प कभी-कभी काम कर जाते हैं, पर हमेशा यह होता है कि जो उनके अधीन काम कर रहे होते हैं वे अब वरिष्ठ हो गए होते हैं और इससे टकराव बढ़ता है।
कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (CSR) - कई संगठनों के पास भरपूर CSR बजट होता है और वे अपने सेवानिवृत्त कर्मचारियों से कह सकते हैं कि वे इन विभागों को देखें क्योंकि इन सेवानिवृत्तों को संगठन का पूरा ज्ञान होता है और वे संगठन के हितों के मद्देनज़र काम कर सकते हैं।
गैस सरकारी संगठन (एनजीओ) – कई कंपनियाँ अपने वार्षिक बजट का एक हिस्स एनजीओ की मदद का रखती है। सेवानिवृत्तों को इस तरह के एनजीओ के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। यह प्रक्रिया सेवानिवृत्त की रूचि के स्तर पर हो सकती है, जिसे कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के कुछ साल पहले से शुरू किया जा सकता है और सेवानिवृत्ति के बाद जारी रखा जा सकता है।
साथ ही, सेवानिवृत्तों से कहा जा सकता है कि वे अपने से बाद के लोगों का मार्गदर्शन करें, केवल काम सौंपने की औपचारिकता से अधिक, जो लगभग हर संगठन में होता है।
स्वास्थ्य
सेहत की चिंता हमेशा अधिकांश सेवानिवृत्तों को होती है, भले ही उनके पास पर्याप्त पैसा हो। सेहत का ध्यान रखने में भी उनका बहुत सारा पैसा चला जाता है, इतना कि कई बार उन्हें लगता है क्या उन्हें आपातकालीन चिकित्सा व्यवस्था के लिए अलग से इंतजाम करना चाहिए। स्वास्थ्य की यह चिंता तब और भी बढ़ जाती है जब सेवानिवृत्तों को उनके नियोक्ताओं की ओर से स्वास्थ्य सेवा का लाभ नहीं मिला होता है जैसा कि सरकारी या निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को मिलता है।
नियोक्ता इस तरह के स्वास्थ्य संबंधी भय दूर करने में महती भूमिका निभा सकते हैं। हर कर्मचारी को रोजगार मिलने से पहले विस्तृत चिकित्सकीय जाँच से गुज़रना पड़ता है ताकि वह कंपनी के साथ अपने रोजगार जीवन में प्रभावी योगदान दे सकें। तब क्या यह अपेक्षा करना बहुत ग़लत होगा कि सेवानिवृत्ति से पहले भी उसकी विस्तृत चिकित्सकीय जाँच हो जाए ताकि वह सेवानिवृत्त व्यक्ति और उसका जीवनसाथी सेवानिवृत्त जीवन के लिए तैयार हो सके?
आज बहुत ही किफ़ायती दाम पर कई स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ उपलब्ध है लेकिन अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि उसका लाभ कब लिया जाए या उन्हें उनके और अपने जीवनसाथी के लिए किस तरह की योजना लेनी चाहिए।
कई नियोक्ताओं के मानव संसाधन विभागों को सेवानिवृत्ति से बहुत पहले अपने कर्मचारियों को स्वास्थ्य लाभ सेवाओं के बारे में बताना चाहिए। यदि यह समय पर कर दिया गया तो उसकी भुगतान राशि चुकाना आसान होता है और उन सारे ख़तरों को उसमें समाहित किया जा सकता है, जो बीमारी अभी गंभीर या जटिल नहीं हुई है। कार्यरत रहते हुए स्वास्थ्य बीमा कराने की सलाह अधिक मानी और अधिक आसान है बनिस्बत इसके कि उसे सेवानिवृत्ति के बाद के लिए छोड़ दिया जाए।
परामर्श
इसलिए, नियोक्ताओं को इस बात की ज़रूरत है कि वे बैठे और उन चुनौतियों के बारे में सोचे जिनका सामना उनके कर्मचारियों को करना पड़ सकता है, जिनसे वे नए सामान्य जीवन को जीते हुए दो-चार होने वाले होंगे, जिसे सेवानिवृत्ति या ढलान की अवस्था कहते हैं। अधिकांश कर्मचारी उनके जीवन के इस निर्वाण के नए चरण में पहुँचते हैं और उन्हें पता ही नहीं होता कि उससे कैसे जूझा जाए। उन्हें आगे क्या होने वाला है, इसकी कोई कल्पना नहीं होती। और सबसे बड़ी बात, उन्हें नहीं पता होता है कि उनके जीवन के आने वाले तीन दशकों में उन्हें चिंता करने या भयभीत होने की कोई ज़रूरत नहीं है।
वे सेवानिवृत्त जो अपनी सेवानिवृत्ति को ठीक मुँह बायें खड़ा पाते हैं, उन्हें घर पर अकेले बैठे रहने की भी चिंता सताती है, उन्हें लगता है वे घर की चार दीवारी में अपने जीवनसाथी के साथ कैद हो जाएँगे। उन्हें इस बारे में परामर्श लेना चाहिए कि वे अपने जीवनसाथी के साथ इस तरह रिश्ते को नए सिरे से अगले तीन दशकों तक कैसे संभाल पाएँगे और समायोजन की यह प्रक्रिया लगभग उसी तरह होगी जैसी उन्होंने नई-नवेली शादी होने पर आजमाई थी। ऐसे सेवानिवृत्त जिनके बच्चे अभी भी उसी घर में रहते हैं, उन्हें समझना होगा कि नई पीढ़ी के इन लोगों की उनके घर बैठने पर क्या प्रतिक्रिया होगी कि दो कमाने वाले अब एक साथ इतना समय घर पर रहेंगे।
सेवानिवृत्तों को सेवानिवृत्ति के बाद के उनके जीवन के प्रति उन्हें औपचारिक वातावरण में अच्छे से समझाकर विश्वास दिलाना होगा और उसके लिए उन्हें यह भी कहना होगा कि केवल सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना करने और पूरे दिन भजन-कीर्तन कर अंतिम दिन की प्रतीक्षा करने के अलावा भी जीवन में बहुत कुछ है।
नियोक्ता अपने सेवानिवृत्त लोगों के जीवन की चुनौतियों को अच्छे से समझकर उनकी मदद कर सकते हैं और उन्हें करनी भी चाहिए और उन्हें वित्तीय सुयोजनाओं का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित कर उन्हें शामिल करवाना चाहिए। निश्चित ही, सेवानिवृत्त लोगों से भी यह उम्मीद है कि वे सेवानिवृत्त के रूप में अपनी योजनाओं को खुद बनाने में भागीदारी दिखाएँ।
भारत में हमारे सामने सेवानिवृत्ति की चुनौतियाँ अधिक गंभीर हैं। कामकाजी जीवन से सेवानिवृत्त जीवन बिताना कठिन है और नियोक्ता को अपने वफ़ादार सेवानिवृत्तों के जीवन के नए चरण में सहायता करनी चाहिए। भारत जैसे-जैसे वृद्ध हो रहा है, भले ही यह दुनिया का सबसे युवा देश हो, हमें सेवानिवृत्ति के बारे में बात करना शुरू कर देना चाहिए और इस विषय को इस बिंदू पर नहीं छोड़ना चाहिए कि – जब होगा तब देखा जाएगा।
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लेखक गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष हैं. वे ५ बेस्ट सेलर पुस्तकों – रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing
Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हीयर- The Buck
Stops Here – लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup
Entrepreneur and द बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम अ मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager
to an Entrepreneur. के लेखक हैं.
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