Friday 3 March 2017

स्टार्ट अप्स की शैशव काल में ही मौत - स्टार्ट अप्स विफल क्यों हो जाते हैं



  

एक एकदम नया-नवेला स्टार्टअप है जिसका बीज उसके संस्थापक ने लगाया और इसके अंकुरित होने से पहले ही उसे बार-बार ज़मीन से खोदकर निकालता रहा और दूसरी ओर एक ओर स्टार्टअप है जिसे सूरज की आँच में तपने दिया गया और वह पूरी चमक के साथ पनपा और शाम ढलने तक शांति से अपनी मंज़िल पर पहुँच गया।  

हर उम्र के सभी लोग कुछ नया स्टार्टअप करना चाहते हैं या किसी और को कुछ शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं या किसी नए विचार के लिए ऐंजल निवेश करते हैं। संस्थापक निर्धारित करते हैं कि उनके विचार का व्यवसायीकरण दुनिया बदल देगा। वे ऐसा कुछ करना चाहते हैं जैसा इससे पहले किसी ने किया हो या कुछ ऐसा क्रियान्वित करना चाहते हैं जो हर किसी से बेहतर हो। कुछ स्टार्टअप इसेयुनिकॉर्नकी हैसियत प्रदान करते हैं।

स्टार्टअप की दुनिया में सन् 2015 में अनुमानत: 125 अमेरिकन डॉलर निजी ईक्विटी का  निवेश हुआ था। इसमें बिलियन डॉलर की राशि शामिल नहीं है, जिसका निवेश संस्थापकों, उनके दोस्तों और परिवार के साथ-साथ ऐंजल निवेशकों द्वारा किया गया। इसमें बिलियन डॉलर की आपूर्ति करने वालों उन निवेशकों का निवेशभी शामिल नहीं है जिन्होंने डूबी कंपनी से अपना पैसा वापिस नहीं मिला। ही इसमें वह सारा पैसा शामिल है जिसे कर्मचारियों ने अपने सारे वेतन और मज़दूरी को जोड़कर निवेश किया था और जो उन्हें वापिस नहीं मिला था। यदि ये सारा आँकड़ा मिल जाए तो कुल राशि बहुत बड़ी हो सकती है। हर साल इस उम्मीद में इससे भी अधिक निवेश होगा कि कुछ युनिकार्न वो सारा पैसा दिलवा देंगे जो दूसरों में निवेश किया गया था।

माना जाता है कि लगभग 90 प्रतिशत स्टार्टअप विफल हो जाते हैं। नए उद्यम सफल होने के बदले विफल ही अधिक होते हैं। तब भी इन विफल स्टार्टअप के लिए कोई स्मृतिलेख नहीं लिखा जाता। निजी ईक्विटी निवेशक, आपूर्तिकर्ता, कर्मचारी आदि उसेहारी हुई बाजीकहते हैं और इसे बिना किसी चर्चा के दफ़ना कर भुला दिया जाता है। बेहतर होता अगर उस पर कोई सार्थक चर्चा होती ताकि भावी पीढ़ियाँ/ आने आने वाले स्टार्टअप उससे कुछ सबक लेकर नये स्टार्टअप शुरू करते समय इस अनुभव का लाभ उठा पाते। 

स्टार्टअप का वातावरण भी बहुत-कुछ बदल रहा है। यदि अतिरिक्त पैसा लगाना हो तो व्यावसायिक योजनाओं को निर्धारित समयावधि में अधिक वास्तविक और लाभदायी होना होगा। मार्केट शेयर, टॉप लाइन और उपभोक्ता सेवा काफ़ी महत्वपूर्ण हो सकती है लेकिन इन दिक्कतों के बने रहने का एक ही कारण है कि पैसा मिलना। तो स्टार्टअप विफल क्यों होते हैं? वे संस्थापक के लक्ष्य तक क्यों नहीं पहुँच पाते? यह समझना बहुत ज़रूरी है कि स्टार्टअप के विफल होने का क्या कारण हो सकता है ताकि समय रहते सुधार किया जा सके, कि मरीज़ के गुज़र जाने के बाद उसकी चीर-फाड़ कर कारण खोजे जाएँ।

इस लेख में ऐसे कुछ कारणों की चर्चा की जा रही है कि आख़िर स्टार्टअप क्यों चल नहीं पाते।             

कारोबारी योजना में दोष है

व्यवसाय की मूलभूत योजना में दोष पाए जाने के कई कारण हो सकते हैं। जो योजना बहुत ग़ज़ब की लगती है, जरूरी नहीं कि उसका राजस्व मॉडल सशक्त हो। सरकारी नीति में परिवर्तन पर निर्भर रहने वाले स्टार्टअप की शुरुआत ही कई लोगों के लिए ग़लत हो सकती है। उदाहरण के लिए भारत में किसी को विचार आया कि दवाइयों की बिक्री के लिए -कॉमर्स मंच का प्रयोग किया जाए या अमेरिका कीफ़्लाटनाऊनामक उस कंपनी की तरह प्रयास किया जाए, जो चाहती थी कि उड्डयन प्रेमियों को ऐसा अवसर प्रदान किया जाए कि वे पायलटों से मिल सकें और उनके साथ उड़ने के आनंद को साझा कर सकें। पुराने उदाहरणों में संगीत और वीडियो की चोरी के आधार पर व्यवसाय खड़ा करने की योजना को देखा जा सकता है।

हो सकता है कि ये विचार अपने समय से कहीं आगे हों और बाज़ार उसके लिए तैयार हो या हो सकता है ये विचार बाज़ार से एक कदम पीछे हों। यदि कारोबार में ही संदेह हो तो स्टार्टअप के लिए वास्तव में कोई उम्मीद नज़र नहीं आती। यदि उपभोक्ता आपकी योजना को नहीं खरीदते तो क्या फ़ायदा आपकी योजना कितनी ही अच्छी या स्मार्ट क्यों हो, स्टार्टअप सिरे से नकार दिया जाता है।

हज़ारों लोग ऐप्पल या ऐन्ड्रॉइड मंच के लिए अपना ऐप बनाते हैं और उनमें से अधिकांश कुछ समय बाद ग़ायब हो जाते हैं क्योंकि वे लोगों की जटिल आवश्यकताएँ पूरी नहीं कर पाते जो उनके बने रहने के लिए ज़रूरी हैं।

याद रखिए डी- शब्द से मिलने वाला डिस्काउंट या मिलने वालीछूटपहले-पहल बाज़ार को अपनी ओर खींच सकती है लेकिन मध्यावधि में उसके दम पर टिक नहीं सकती।

पैसा पर्याप्त नहीं है

बहुत से स्टार्टअप शुरुआती महीनों/ सालों में कमर कस कर खड़े होते हैं, जब तक कि वे पैसा जूटाने में सक्षम नहीं हो जाते। जैसे ही पैसा आना शुरू होता है, आम तौर पर देखा गया है कि तब तक संस्थान की ज़रूरतें कंपनी के व्यवसाय के अनुपात में कई गुना बढ़ चुकी होती हैं। एक बार व्यवसाय का गुबंद बनने लगा, तो पीछे लौटना बहुत मुश्किल होता है।

बहुत सारा समय व्यवसाय शुरू रखने के लिए धन जुटाने की मशक्कत में ही ज़ाया हो जाता है। जब पैसा ख़त्म होने लगता है, कारोबार भी डगमगाने लगता है। कारोबार पर ताला डालने की एक आम वजह यही होती है किहमारे पास बैंक में पर्याप्त पैसा ही नहीं था!’

बर्न रेट बहुत ज्यादा है

अधिकांश संस्थापक अपनी बर्न रेट को कम आँक लेते हैं। बर्न,  मतलब वह राशि जो आपको हर महीने अपने हाथों में खर्च करने के लिए तैयार रखनी होती है। एक बार कंपनी अपने व्यवसाय से धन कमाने लगे तो बर्न को वर्गीकृत किया जा सकता है और कमाई से ही खर्च निकाला जा सकता है। इस वजह से यदि स्टार्टअप में लगातार बर्न हो, तो ईक्विटी से पैसे आते रहना ज़रूरी है ताकि नकदी का बहाव ज़रूरतों के हिसाब से बना रहे। बर्न की समायावधि जितनी लंबी होगी, नया वित्तपोषण उतना ही कठिन होगा।

याद रखिए उपभोक्ता को जुटाने की एक कीमत है लेकिन उस उपभोक्ता को आजीवन अपने साथ रखने की कीमत उससे कहीं ज़्यादा है। अधिकांश स्टार्टअप को लगता है कि समीकरण धीरे-धीरे उनके पक्ष में हो जाएँगे। उनका यह सोचना भी ग़लत है कि आजीवन उपभोक्ता ही सबसे कीमती होता है और उसे हासिल करना ही सर्वोच्च है और राजस्व से लाभ उठाना नहीं। 

प्रतिस्पर्धी वातावरण

इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आपकी स्टार्टअप की कल्पना कितनी उम्दा है, टिके रहने के लिए प्रतिस्पर्धी वातावरण को समझना बहुत महत्वपूर्ण है। प्रतिस्पर्धी क्या कर रहे हैं इस पर निगाह बनाए रखना कारोबार में बने रहने के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है।

-कॉमर्स, म्यूज़िक स्ट्रीमिंग, लॉजेस्टिक्स बूम..की धूम पूरे विश्व में है, दर्जनों खिलाड़ी एक ही समय में रहे हैं, हर कोई बेहतर तकनीक या अच्छी सेवा का मंच देने का दावा कर रहा है। जब तक उनके पास पैसा होता है वे टिके रहते हैं, अधिक से अधिक छूट देते हैं। उसके बाद उनके पास कोई विकल्प नहीं रह जाता- या तो वे किसी बड़े प्रतिस्पर्धी के हाथों बिक जाते हैं या अपनी दुकान पर ताला लगा देते हैं।
        
कमज़ोर प्रबंधन टीम

कई प्रमोटर मज़बूत प्रबंधन टीम के बजाय अपनी मित्र-मंडली के साथ काम शुरू कर देते हैं। कमज़ोर या गैर-अनुशासित प्रबंधन टीम का कार्यपालन भी क़मज़ोर होता है और अपनी लगातार असुरक्षा की भावना की वजह से स्टार्टअप के लिए वे चुनौती बन जाते हैं क्योंकि वे अपने नीचे एक कमज़ोर टीम खड़ी कर देते हैं, जिसके कारण नये स्टार्टअप को भारी क्षति का सामना करना पड़ता है।
                                                  
क्रमिक रूप से आगे बढ़ना

घाटे का एक बहुत बड़ा कारण होता है जब उद्यमी (स्टार्टअप) छोटे स्तर पर और बेहतर नियंत्रण के वातावरण में अपनी व्यावसायिक योजनाएँ स्थापित करते हुए सीधे आगे बढ़ने लगता है। इसके विपरीत इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि स्टार्टअप इसलिए विफल होते हैं क्योंकि वे उतनी तेज़ी से क्रमिक रूप में आगे नहीं बढ़ पाते। जब बात स्टार्टअप खड़ा करने की आती है तब वास्तव में सही या ग़लत जैसा कुछ नहीं होता।

एक समाधान जिसे बहुत सकारात्मक रूप से स्टार्टअप संस्थापकों और स्टार्टअप में निवेश करने वालों को सोचना चाहिए वह है स्टार्टअप के लिए बढ़िया सलाहकारों का चयन। युवा और अनगढ़ ऊर्जा वाले स्टार्टअप संस्थापक को बुज़ुर्ग प्रबंधक की संयत सोच की ज़रूरत है। स्टार्टअप उद्यम की दृष्टि और बुज़ुर्ग प्रबंधकीय अनुभव होने से निर्बाध प्रगति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। साथ ही ऐसे स्टार्टअप उद्यम पिछले अनुभव के साथ-साथ आने वाली कठिन परिस्थितियों को भी पहले से ही भाँप सकते हैं और जब भी जहाज पानी में डगमगाने लगे, वे उन्हें मार्गदर्शन दे सकते हैं। इन लोगों के साथ उनके विषय का पूरा ज्ञान और उनके क्षेत्र में उनका एकाधिकार भी चला आता है।

स्टार्टअप की विफलता के उपर्युक्त मुद्दों के अलावा ऐसे भी बेशकीमती उपाय हैं जिनमें जबर्दस्त कल्पना और तकनीक होती है लेकिन वे अपने उपभोक्ता तक किस तरह पहुँचा जाए इसे समझने में अधिक समय नहीं लगाते और इसके लिए कोशिश भी नहीं करते। उपभोक्ता पर ध्यान दिए बिना कोई कारोबार तो सफ़ल हो सकता है और ही उसे अच्छा उपभोक्ता मिल सकता है और ही ऐसे उपभोक्ता उसके साथ टिके रह सकते हैं और ही बार-बार खरीद की उसकी ज़रूरतों को समझा जा सकता है। इसलिए बढ़िया कारोबार का विचार होना या खूब पैसा होना ही काफ़ी नहीं है।

तब स्टार्टअप के लिए स्मृति लेख लिखने की ज़रूरत नहीं होगी यदि संस्थापक के पास वह विवेक होगा कि स्टार्टअप को मज़बूत नैतिकता और मूल्यों के साथ एक संस्थान के रूप में खड़ा कर सके, कि महज़ बड़ी लागत वाली कोई कंपनी बना सके!
                            

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लेखक गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष और बिज़डोम सलाहकार मंडल के सभापति हैं, आईआईएम रोहतक के इन्क्यूबेटर हैं. वे ५ बेस्ट सेलर पुस्तकों रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हियर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and द बक स्टॉप्स हियर- माई जर्नी फ़्रॉम अ मैनेजर टु ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं.



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