गुजरात में शीघ्र ही वर्ष
2017 के चुनाव होने वाले हैं। मतदान के पहले दौर के लिए आठ दिन से भी कम समय है और
चुनाव प्रचार का बिगुल थमने में सप्ताह भर से भी कम समय है।
यदि वर्ष 2012 को देखें तो भाजपा
ने 182 में से 116 सीटें जीती थीं जबकि काँग्रेस ने 60 सीटों पर कब्जा किया था। प्रदेश
में रिकॉर्ड तोड 71.32 % मतदान हुआ था। भाजपा को मिलने वाले मतों की हिस्सेदारी
47.9 % थी जबकि काँग्रेस के हिस्से केवल 38.9 % मत थे। भाजपा और काँग्रेस के बीच मतदाताओं
के हिस्से का अंतर वर्ष 2007 में 9.49 % से घटकर वर्ष 2012 में 9 % रह गया था इसकी
प्राथमिक वजह काँग्रेस के पुराने जुझारू कार्यकर्ता केशुभाई पटेल द्वारा नए दल का निर्माण
था जिससे मतदाताओं का 3.6% हिस्सा उनके पास चला गया था।
जीडीपी विकास दर के
संदर्भ में गुजरात ने लगातार कई राज्यों से बेहतर प्रदर्शन किया है। राज्य का बुनियादी
ढाँचा पूरे देश में सबसे अच्छा है। गुजरात के 18,066 गाँवों में से 17,856 गाँवों की
98.84 % जनता के पास पक्की सड़क है। आँकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि हमारे देश
के अन्य राज्यों की तुलना में गुजरात में कानून और व्यवस्था की स्थिति अधिक बेहतर है।
शिक्षा और स्वास्थ्य-सुरक्षा के क्षेत्र में अधिक निवेश की आवश्यकता हो सकती है, बावज़ूद
यह तो मानना होगा कि भारत के अन्य राज्यों की तुलना में यहाँ के हालात काफी अच्छे हैं।
आपको भारत में अहमदाबाद और सूरत के अलावा और कहाँ रोशनी से जगमगाते ऐसे प्रशस्त नदी
पाट दिखाई देते हैं?
दोनों प्रमुख दल, चाहे भाजपा
हो या काँग्रेस, मतदाओं का ध्यान खींचने के लिए अलग से कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं
क्योंकि उनके राजनीतिक कार्यकर्ताओं और प्रेस ने “पंच वार्षिकी” तर्ज पर पहले से ही
यह काम कर रखा है। भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री ने नेतृत्व संभाल लिया है। ज़ाहिरन वे
अपने गृह राज्य से जीत सुनिश्चित करना चाहेंगे।
राहुल गाँधी अपने ऊपर लगे सारे
आरोपों को फेंकने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं, कई बार इसके लिए वे बेतुके सवाल तक
पूछ बैठते हैं, इस तरह के सवाल पूछना गुजरात के मतदाओं के औसत ज्ञान पर प्रश्नचिन्ह
लगाने जैसा है। उन्होंने वादा किया है कि वे सत्ता में आने के दस दिनों के भीतर ही
सारे ऋण माफ़ कर देंगे (मैं हैरान हूँ कि चुनाव आयोग इसे मतदाओं को पैसे का लालच देने
के रूप में क्यों नहीं देख पा रहा)
काँग्रेस के नव अध्यक्ष ने कोई
भी ‘पत्थर’ ऐसा नहीं छोड़ा है, जिसके आगे सिर न झुकाया हो और वे हर हिंदू भगवान् से
आशीर्वाद माँग रहे हैं। पिछले कुछ महीनों या कि कुछ सालों या किसी भी राज्य के चुनाव
से पहले तक उन्होंने इतने मंदिरों के दर्शन नहीं किए होंगे जितने इन दिनों वे गुजरात
के मंदिरों में जा रहे हैं। आखिर हो भी क्यों न, गुजरात चुनावों के ठीक पहले काँग्रेस
पार्टी के अध्यक्ष होने का ताज जो उन्हें मिला है!
एक ओर जहाँ भाजपा प्रश्न पूछ
रही है कि राहुल गाँधी के कर्मचारियों ने सोमनाथ मंदिर में उनका नाम गैर-हिंदूओं के
रजिस्टर में क्यों लिखा, वहीं कपिल सिब्बल और भी ‘हास्यास्पद’ बात कर रहे हैं, जब श्री
सिब्बल प्रधानमंत्री को ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्गीकृत करते हैं जो हिंदू नहीं है!!
दूसरी ओर, काँग्रेस के प्रवक्ता पुरानी तस्वीरों को दिखाकर एक-दूसरे पर ही हल्ला बोल
कर यह सिद्ध कर रहे हैं कि उनके नेता ब्राह्मण और तो और शैव हैं!
इसी के साथ पाटीदारों के लिए
आरक्षण लाने (इसे भले ही अनुमति न मिली हो) वाला हार्दिक पटेल है, जो यह अच्छी तरह
से जानता है कि आरक्षण चाहने वाले स्वार्थी मतदाता बहुत कम है पर मीडिया में अपने दोस्तों
की वजह से इसी बात का बहुत शोर करता है। अंतत: ‘आप-आम आदमी पार्टी’ भी एक तरफ बैठी
है यह सोचकर की वह चुनाव के खेल को बिगाड़ सकती है जबकि उनके नेता खुद जानते हैं कि
वे एक सीट जीतने तक की उम्मीद नहीं कर सकते हैं।
जैसे कि हर चुनाव के समय होता
है छोटे पर्दे पर इस तरह बहस चल रही है जैसे हारने वाले के लिए मौत की घंटा हो, जबकि
एक बार परिणाम आ जाने के बाद वे भी भूल जाएँगे कि उन्होंने क्या कहा था।
इन सबके बीच निश्चित ही मतदाता
भी है जो जानता है कि मतपत्र के माध्यम से वह अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकता है। बिल्कुल,
मतदाता, जो विमुद्रीकरण (नोट बंदी) से आहत हुआ है लेकिन जो प्रधानमंत्री द्वारा उठाए
गए महत्वपूर्ण कदम की आवश्यकता को पहचानता है और उनका समर्थन भी करता है। बिल्कुल,वही
मतदाता जिसने जीएसटी लागू होने के दर्द को झेला है पर देश में इस एकल कर के दीर्घकालिक
लाभों को भी वह जानता है। और बिल्कुल, साथ ही प्रदेश में विरोधी लहर का भी असर है।
तो गुजरात के मतदाताओं की क्या
प्रतिक्रिया होगी?
क्या वे भाजपा के लिए मतदान करेंगे
और प्रधानमंत्री मोदी के प्रति भरोसा जताएँगे जैसे वे सालों से करते आए हैं? या वे
काँग्रेस को मत देंगे और उम्मीद करेंगे कि पूरी तरह से नावाकिफ़ राहुल गाँधी जादू की
कोई छड़ी घूमाकर गुजरात राज्य के लिए ऐसा कुछ कर दें जिसे वे अपने निर्वाचन क्षेत्र
अमेठी के लिए कर पाने में असमर्थ रहे? या वे मतदान करने के अपने अधिकार का प्रयोग करते
हुए “नोटा- उपरोक्त में से कोई नहीं” के लिए मत डालेंगे? हार्दिक पटेल, आम आदमी पार्टी
और अन्य दलों के प्रभाव को भी नाकारा नहीं जा सकता लेकिन उनमें से किसी का भी बहुत
ज़्यादा प्रभाव भाजपा पर नहीं पड़ेगा।
मेरा
मानना है कि गुजरात के मतदाता भले ही समर्थन देते हो पर विमुद्रीकरण और जीएसटी से परेशान
हैं और भाजपा को परेशानी में डाले बिना वह अपनी नाराज़गी प्रकट करना चाहेंगे। जीएसटी
दाखिले से जिस तरह सारे व्यवसाय सार्वजनिक तौर पर लोगों के सामने आ रहे है इस विचार
से हो सकता है मतदाता नाख़ुश हो। तब भी वे पहचानता हैं कि भारत और गुजरात के लिए एक
स्थायी उम्मीद भाजपा और मोदी है। निश्चित ही काँग्रेस और राहुल गाँधी नहीं।
भाजपा
से नाराज़ मतदाता हो सकता है अपना विरोध प्रकट करने के लिए मतदान के लिए न जाएँ। मतदाताओं
का यह तरीका हो सकता है भाजपा को दंडित करने और अपना क्रोध दर्शाने का। इस वजह से इन
चुनावों में हमें मतदान में गिरावट दिखाई देगी। भाजपा और काँग्रेस के बीच का फासला
शायद और कम नज़र आए, अगरचे यह 2022 को ध्यान में रख बहसों और लेखों का विषय भी हो सकता
है।
यद्यपि
भाजपा की झोली में आने वाले मतों की संख्या कम हो सकती है, पर भाजपा को मिलने वाली
सीटों में वृद्धि होगी। हमारे लोकतंत्र की प्रणाली यही है कि "सबसे अधिक मत पाने वाला प्रत्याशी ही चुनाव में विजयी होता है" और इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व
वाली भाजपा होगी।
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लेखक गार्डियन
फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष हैं। वे ५ बेस्ट सेलर पुस्तकों – रीबूट- Reboot.
रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन,
Managing Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन
आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here –
लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and
द बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम अ मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops
Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं।
ट्विटर : @gargashutosh
इंस्टाग्राम : ashutoshgarg56
ब्लॉग : ashutoshgargin.wordpress.com |
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