Thursday 7 February 2019

राहुल गाँधी - झूठे या केवल भ्रम?




काँग्रेस पार्टी के अध्यक्ष नामित होने के बाद लगता है कि राहुल गाँधी को अचानक अपनी आवाज़ मिल गई है, जो तब से खो गई थी, जब उनकी सरकार सत्ता में थी और संसद के अपने पहले 10 वर्षों में वे लगभग चुप या अनुपस्थित थे।
यह एक ऐसा व्यक्ति है, जिसे वास्तव में ऐसा लगता है कि राष्ट्र उसके पूर्वजों की वजह से उसके प्रति निष्ठा रखता है और वह हर चीज का हकदार है। 
अपने परिवार के नाम के चलते वे पार्टी में शीर्ष स्थान के हक़दार हो गए। अपने पूर्वजों द्वारा किए गए त्याग और बलिदानों के कारण वे सत्ता के माया जाल और उससे जुड़ी अतिरिक्त सुविधाओं से घिरने के हक़दार बन गए। इसी वजह से वे कुछ भी कहने के हक़दार हो गए क्योंकि वे जानते हैं कि वरिष्ठ नेताओं की बड़ी टुकड़ी उनके बचाव में कूद जाएगी। इतना ही नहीं, बिना किसी जवाबदेही के देश का नेतृत्व करने की महत्त्वाकांक्षा रखने के भी हक़दार बन बैठे।
श्री गाँधी का विश्वास निश्चित रूप से इस दर्शन पर हैं कि वे यदि कोई आरोप लगाकर लंबे समय तक रोना-गाना करते हैं, कीचड़ उछालते हैं तो थोड़ा-बहुत कीचड़ तो ज़रूर चिपकेगा। उनका मानना है कि उनके अपने परिवार और पार्टी की ख़राब आर्थिक ख़्याति के चलते जहाँ उनका हर कदम कीचड़ में धँसा है, प्रधानमंत्री मोदी भी ऐसे बेतुके आरोपों से कलंकित हो सकते हैं। वे पहचानते हैं कि उनके और उनके परिवार को मुक्ति केवल तभी मिल सकती है, जब वे किसी भी तरह मतदाताओं को यह मनवा देते हैं कि मोदी और सत्तारूढ़ दल भी "भ्रष्ट" है!
अपने मन के गहरे भीतर वे भी जानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि इस सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं है।
अत: उन्होंने झूठ की पूरी गठरी तैयार करने का फैसला किया है। यदि बार-बार और दृढ़तापूर्वक कहा जाए, तो झूठ और असत्य निश्चित ही श्रोताओं के मन में सीमित अवधि के लिए संदेह के बीज बो सकते हैं।
आइए हम उनके कुछ और हालिया झूठों और उसके बाद उनके अपने ही झूठ से पलट जाने की जाँच करें।
  1. राफेल: राफेल विमान खरीद पर राहुल गाँधी के तर्क उदात्त से हास्यास्पद की ओर बढ़ रहे हैं। उन्हें अगस्ता वेस्टलैंड एक्सपोज़र पर किसी पलटवार की आवश्यकता है जो कि जल्द ही सामने आ सकता है और बोफोर्स मामला भी अब तक मतदाताओं के दिमाग में गहरे पैठा है। नकी उकताहट भरी टिप्पणियों को शेष वरिष्ठ काँग्रेस नेता पूरी वफ़ादारी से तोता पढंत की तरह दुहरा रहे हैं, क्योंकि एक बार उनके "राजकुमार" ने बात कह दी, तो उनके पास उसके अनुपालन और बचाव के अलावा अन्य कोई विकल्प बचता नहीं है। उनके पास अपने आरोपों को स्थापित करने के लिए कुछ भी ठोस नहीं है।
  1. घोर पूंजीवाद (क्रोनी कैपिटलिज्म): श्री गाँधी और उनका परिवार वर्षों से कई कॉरपोरेट घरानों का लाभार्थी रहा है। अपने स्वयं के मुद्दों को छिपाने के लिए, उन्होंने प्रधान मंत्री पर घोर पूंजीवाद का इलज़ाम लगाने का मार्ग चुना है। जबकि श्री अनिल अंबानी की कंपनी की हाल ही में दिवालिएपन के लिए दायरा वाली जानकारी को श्री गाँधी ने अपनी सुविधा से नजरअंदाज कर दिया है, क्योंकि यह उनके कथन उनके खिलाफ़ है।            
  1. श्री पर्रिकर: वे खुद गोवा के मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य की जानकारी लेने व्यक्तिगत दौरे पर गए थे और फिर बाद में एक चुनावी रैली में श्री पर्रिकर को गलत ठहरा दिया। जब श्री पर्रिकर ने उनके झूठ पर सवाल किया, तो उन्होंने बिना किसी मलाल के श्री मोदी पर दोष मढ़ देने की कोशिश की।
  1. ईवीएम: जब उनकी पार्टी चुनाव हार जाती है, तब राहुल गाँधी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को दोष देते हैं और जब उनकी पार्टी चुनाव जीतती है तो वे चुप रहने का मार्ग अपनाते हैं। उनके लिए, ईवीएम और चुनाव आयोग केवल सुविधा की बात है – जिसे अपनी सुविधा से, जब उनके और उनकी पार्टी के खिलाफ़ काम हो तो गाली दे देना और तब नज़रअंदाज़ कर देना जब उनके पक्ष में काम हो रहा हो!
  1. ऋण माफी: राहुल गाँधी ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव अभियानों में ऋण माफी की घोषणा की। नई सरकारों को श्रेय मिल सकें इसलिए तुरंत ऋण माफ भी कर दिए गए थे। हालाँकि, वादे का मज़ाक उड़ाते हुए गरीब किसानों के आम तौर पर 1,000 रुपए से कम के ऋण माफ किए गए थे। जो वादे किए गएँ उन पर फिर से विचार करने की जहमत किसी ने नहीं उठाई। ये चुनाव खत्म बीत गए और 5 साल बाद नए वादे करने होंगे।
  1. नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स: राहुल गाँधी गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स) के लिए प्रधानमंत्री को दोषी ठहराते रहे हैं, बिना यह समझे कि वे बकाया होने पर ऋण ही गैर-निष्पादित हो जाते हैं। ऋण आम तौर पर 5 साल के लिए दिए जाते हैं और उसके बाद चुकौती होती है। एक बार जब ऋण देय होता है और यदि पुनर्भुगतान शुरू नहीं होता है, तो ऋण को गैर-निष्पादित श्रेणी में वर्गीकृत कर दिया जाता है। इस तरह वे अनर्जक परिसंपत्ति (एनपीए) जो एनडीए के कार्यकाल के दौरान दिख रही हैं वे यूपीए के कार्यकाल के दौरान दिए गए ऋण थे।
  1. रोजगार निर्माण: उनका कोरा दावा है कि उन्होंने अगले 5 वर्षों में 70 मिलियन नौकरियों के निर्माण की योजना विकसित की है। लेकिन इसे कैसे हासिल किया जाएगा और इन नौकरियों का निर्माण किस क्षेत्र में होगा, इस बारे में कोई योजना नहीं बताई है। हालांकि, वे जो भी कहते हैं, उस पर उनसे किसी जवाबदेही की माँग नहीं की जाती है। यह तथ्य भी देखा जाना चाहिए कि यूपीए के 10 साल के कार्यकाल में 17 मिलियन से भी कम नौकरियाँ ईज़ाद हुई थीं।
  1. शारदा घोटाला: राहुल गाँधी को गंभीरता से चिंतन कर इस मामले में अपना और अपनी पार्टी का पक्ष रखने की ज़रूरत है। वर्ष 2014 के नुकसान के बारे में बात करने से लेकर घोटाले पर कार्रवाई न करने के लिए ममता बनर्जी को फटकारने से लेकर अब पूरा समर्थन देने तक वास्तव में कोई नहीं जानता कि उनका पक्ष क्या होगा और उनका अगला यू-टर्न क्या होगा। ज़ाहिर है, उनकी स्थिति इस बात पर निर्धारित होती है कि उनका क्या मानना उन्हें कहाँ और कब कुछ सुर्खियाँ दिला सकता है। अतीत की गाथा उनके कृपापात्रों द्वारा गाई जाती रहेगी और उन्हें हर हाल में संरक्षित किया जाएगा।
  1. अन्य विपक्षी दलों से संबंध: यह देखना दिलचस्प है कि राहुल गाँधी कितनी आसानी से अपनी भूमिका बदल लेते हैं। किसी अन्य विपक्षी पार्टी के नेता को कोसने और गाली देने से लेकर निर्विवाद रूप से समर्थन देने तक उनकी भूमिका बिना किसी स्पष्टीकरण के निर्बाध होती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कोई ऐसा नेता है, जिसके साथ उन्होंने दुर्व्यवहार नहीं किया है और बाद में उसी के साथ साझेदारी करने की माँग न की हो। क्या किसी भी विपक्षी दल का कोई भी नेता वे जो कुछ भी कहते हैं उस पर विश्वास करता है, या यह चुनाव खत्म होने तक चुप रहने की सुविधा और समझदारी की बात है?
बचाव का सबसे अच्छा तरीका अपराध है।
जब कुछ और काम नहीं करता है और झूठ भी कारगर नहीं होता दिखता है, तो राहुल गाँधी बहुत आसानी से इसका-उसका नाम लेने लगते हैं। पिछले सालभर में उन्होंने  कई बार श्री मोदी को एकतरफा बहस की धमकी दी लेकिन लोकसभा में वे आश्चर्यजनक रूप से चुप रहते दिखे। उन्होंने अपनी पुस्तक में श्री मोदी के लिए जर्मन शब्द फ्यूहरर जिसका अर्थ है "लीडर" या "गाइड" से लेकर चोर से लेकर असुरक्षित तानाशाह तक हर संभव नकारात्मक विशेषण का इस्तेमाल किया है। दुर्भाग्यवश कोई भी उनकी कथा नहीं खरीद रहा और यह उन्हें और भी निराश कर रहा है।
तो क्या माननीय काँग्रेस अध्यक्ष पैदाइशी झूठे हैं जैसा कि स्मृति ईरानी कहती हैं या वे केवल भ्रम हैं?
शब्द "भ्रमजनक- डिल्यूजनल" लैटिन शब्द से बना है जिसका अर्थ है "धोखा देना।" इसलिए भ्रमपूर्ण सोच मतलब अपमानजनक बातों पर विश्वास करके खुद को धोखा देने जैसा है। भ्रम गलत विचार है। यह ऐसा विश्वास है जिसका कोई प्रमाण नहीं है। भ्रमित व्यक्ति विश्वास करता है और चाहता है कि कुछ ऐसा हो जाए, जो वास्तव में सत्य नहीं है। यह और अधिक मजबूत आशा में बदलता है कि कुछ ऐसा चमत्कारी घटित होगा जो उसकी मान्यताओं को सच कर देगा।
इस लेख के विषय के संदर्भ में यह विशेष रूप से परिचित लगता है?
जाहिर है, राहुल गांधी का एकमात्र उद्देश्य हर मुद्दे का राजनीतिकरण करना है, बजाय इसके तार्किक निष्कर्ष पर कोई मुद्दा देखना। उनसे अक्सर उन विभिन्न आरोपों के सबूत दिखाने के लिए कहा जाता है जो वे लगाते रहते हैं और राफेल पर उनकी अपनी स्वीकारोक्ति थी लेकिन वे अभी तक सबूत नहीं दिखा पाए हैं। उनका स्वयं का भ्रम उन्हें ऐसा दिखाता है कि यह साबित करने के लिए कि वे सही थे, प्रमाण स्वयं प्रकट होंगे। तब तक, वह अपनी "दागो और भागो" राजनीति अनायास ही जारी रखेंगे।
उन्हें यह विश्वास नहीं है कि वे आगामी चुनावों में शानदार जीत हासिल कर पाएँगे। मतदाताओं ने भी उन पर विश्वास करना बंद कर दिया है। यह कुछ ही समय की बात है और फिर यह भी होगा कि जब उनकी पार्टी के कार्यकर्ता भी उन पर विश्वास करना बंद कर देंगे। वह दिन दूर नहीं जब भीड़ में से कोई यह कहता दिखेगा कि "राजकुमार के पास कपड़े नहीं है!
श्री गाँधी कब तक "भेड़िया आया-भेड़िया आया" चिल्लाते रहेंगे?
जैसा कि राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने प्रसिद्ध रूप से कहा था, "आप सभी लोगों को कुछ समय तक और कुछ लोगों को हर समय मूर्ख बना सकते हैं, लेकिन आप सभी लोगों को हर समय मूर्ख नहीं बना सकते हैं।"
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लेखक कार्यकारी कोच और एंजेल निवेशक हैं। राजनीतिक समीक्षक और टीकाकार के साथ वे गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। वे 6 बेस्ट सेलर पुस्तकों – द ब्रांड कॉल्ड यू- The Brand Called You रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and द बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम अ मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं।                                               
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