सैकड़ों सालों से इंसान यह सोचकर विस्मित होता रहा है कि अंतरिक्ष में चल क्या रहा है।
खगोलविद कई नए खगोलीय पिंडों की खोज कर यह समझने की कोशिश करते रहे हैं कि ब्रह्मांड कैसे बना है। ज्योतिषियों का अंतरिक्ष को देखने का अलग दृष्टिकोण है, वे आकाश में स्थित खगोलीय पिंडों की उस भूमिका की खोज करते आ रहे हैं जिसके चलते उनके होने से पृथ्वी ग्रह पर हमारे दैनिक जीवन पर असर पड़ता है। चाँद पर हजारों कविताएँ लिखी गई हैं। चाँद की पूजा-अर्चना की जाती है। चँद्रमा आधारित कैलेंडर का पालन हममें से कई लोग करते हैं। अज्ञात उड़न खटोले (यूएफओ), अंतरिक्ष गेलेक्टिक मूवीज और कार्टून और वह सब, जो अंतरिक्ष के साथ जुड़ा है, हमें हमेशा रोमांचित करता है।
लेकिन तब भी जब वर्ष 1969 में नील आर्मस्ट्रांग चाँद पर उतरे थे, क्या अंतरिक्ष के प्रति आधुनिक मानव की रुचि वास्तव में शांत हो पाई थी। उनका कहा प्रसिद्ध वाक्य “मनुष्य का एक छोटा कदम, मानव जाति का एक विशाल कदम ” संभवत: अंतरिक्ष से संबंधित विश्व का सबसे अधिक याद किया जाने वाला उद्धरण होगा। मुझे याद है मैंने माँ से वर्ष 1969 की करवा चौथ पर पूछा था कि क्या चाँद इसके बाद भी पहले की तरह ही पवित्र रहेगा जबकि उस व्यक्ति ने 16 जुलाई 1969 को उस पर कदम रखा था!
जब प्रधान मंत्री मोदी ने 27 मार्च 2019 को मिशन शक्ति के सफल परीक्षण के बारे में भारत की घोषणा की और संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के साथ चार के चुनिंदा क्लब में भारत को शामिल करवाया तो यह वास्तव में भारत का एक विशाल कदम था, अंतरिक्ष में हमारे अधिकारों और हमारी सीमाओं की रक्षा करने का।
हर सही सोच वाले भारतीय को इस पर बहुत गर्व होना चाहिए। मैं ऐसे किसी भी भारतीय से मिलने पर दंग हो जाऊँगा जो देश की सर्वोत्तम संभव सुरक्षा नहीं चाहता है या यह नहीं चाहता है कि भारत को सुपर पावर के रूप में उसका सही स्थान मिले। केवल वे ही इस तरह नहीं सोच पाएँगे जो इस सरकार द्वारा उठाए हर कदम को आगामी चुनाव के निकटवर्ती चश्मा पहन देख रहे हैं।
कई विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रियाएँ चौंका देने वाली और आश्चर्यजनक थीं। इन लोगों ने प्रक्षेपण की लागत की तुलना हमारे देश की भूखमरी को कम करने से की और बड़े कुटील तरीके से सफल परीक्षण की घोषणा को विमुद्रीकरण से जोड़ दिया, विपक्षी राजनेता और इन राजनेताओं से सहानुभूति रखने वाले पत्रकारों ने अपनी किताब में ऐसा कोई भी नकारात्मक विशेषण नहीं छोड़ा, जिसका उपयोग वे सरकार द्वारा उठाए गए किसी कदम से तुलना करने के लिए कर सकें। "केवल 300 किलोमीटर" या "केवल एक उपग्रह" जैसी टिप्पणियों से इन व्यक्तियों ने अपनी पूर्ण अज्ञानता का ही प्रदर्शन किया।
फिर निश्चित रूप से ऐसे लोग भी हैं जो हमारे देश में उठाए गए हर सकारात्मक कदम का श्रेय भारत के "प्रथम परिवार" को देते हैं। ये हमारे पहले प्रधानमंत्री द्वारा किए गए भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम और उनके द्वारा स्थापित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के बारे में बातें करने से कभी नहीं अघाते।
आइए हम समझने की कोशिश करते हैं कि मिशन (लक्ष्य) शक्ति हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है।
- वर्ष बीतने के साथ हमने अंतर्राष्ट्रीय समुद्र के क्षेत्रीय अधिकारों वाले देशों को स्वीकार करना सीखा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा क्षेत्रीय समुद्र को तटीय राज्य की आधार रेखा से 12 समुद्री मील या 22.2 किलोमीटर के रूप में परिभाषित किया गया है। ऐसी कोई परिभाषा अंतरिक्ष के लिए मौजूद नहीं है और संयुक्त राष्ट्र ने यह भी निर्दिष्ट किया है कि कोई भी देश हमारे चंद्रमा और हमारे ग्रहों सहित किसी भी खगोलीय निकाय पर क्षेत्रीय अधिकारों का दावा नहीं कर सकता है।
- अंतरिक्ष का निरीक्षण संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के बाह्य अंतरिक्ष मामलों द्वारा किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की बाह्य अंतरिक्ष संधि के अनुसार, उस पर हस्ताक्षर किए 102 देशों में से कोई भी देश चंद्रमा पर संप्रभुता का दावा नहीं कर सकता है। शुरुआती खोजकर्ताओं जैसे क्रिस्टोफर कोलंबस और आदि जिन्होंने सदियों उनका अनुसरण किया और अपने देशों के लिए नए महाद्वीपों और व्यापारिक ठिकानों और उपनिवेशों की स्थापना की। इसलिए, न केवल चंद्रमा पर बल्कि अब मंगल पर भी पहुँचने और वहाँ स्थापित होने की हौड़ लगी है।
- बहुत कम देशों ने उपग्रहों के निर्माण और प्रक्षेपण की क्षमता विकसित की है और भारत इन चुनिंदा देशों में से एक है। यहाँ तक कि केवल कुछ ही देशों ने मनुष्य को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता विकसित करने में कामयाबी हासिल की है और भारत इस क्षमता को भी तेजी से विकसित कर रहा है।
- निरंतर माँग रखने वाली मानव जाति के लिए अंतरिक्ष अगला मोर्चा है जहाँ लगातार अधिक चुनौतियों की तलाश है। भारत के लिए, अंतरिक्ष में अपनी उपस्थिति के प्रबंधन की मजबूत क्षमता विकसित करना महत्वपूर्ण है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन विश्व के प्रमुख अंतरिक्ष निकायों में से एक है।
- यह भी समझने योग्य है कि रॉकेट का विकास राष्ट्र की रक्षा के लिए क्यों महत्वपूर्ण है। रॉकेट को इस तरह समझा जा सकता है कि वह कुछ और न होकर एक विशाल "निर्देशित मिसाइल" है और यह तकनीक नाटकीय रूप से अपनी सीमाओं को मजबूत करने के लिए भारत के पास उपलब्ध है। मिशन शक्ति हमें भविष्य में दुष्ट उपग्रहों को लक्षित करने की बहुत आवश्यक क्षमता प्रदान करती है।
- जो पहले जीत लेगा उसे अंतरिक्ष बहुत बड़ी संपत्ति का वादा दे सकता है। यही कारण है कि एलोन मस्क और रिचर्ड ब्रैनसन बड़ी रकम का निवेश कर रहे हैं। यदि कोई किन्हीं खगोलीय पिंडों तक पहुँचने और वहाँ से पृथ्वी पर लौटने का किफायती तरीका विकसित कर सकता है, तो उन अविश्वसनीय खनन अवसरों के बारे में सोचिए जिन्हें उत्पन्न किया जा सकता है। ये व्यवसायी पहले से ही अंतरिक्ष में मानव बस्तियाँ बसाने की बात कर रहे हैं और ऐसे व्यक्तियों की लंबी कतार है जो मंगल की "एक-तरफ़ा" यात्रा करने के लिए तैयार है।
अंतरिक्ष की खोज करना महँगी प्रक्रिया है जो बहुत अधिक जोखिमों से भी भरी है। चुनाव के संदर्भ में निंदनीय प्रतिक्रियाएँ समझ में आती हैं, लेकिन अंतरिक्ष की खोज की लागत के साथ हमारे ग्रह पर भोजन और आवास की उपलब्धता से उसकी तुलना करना अल्पकालिक और पूरी तरह से संदर्भ रहित है।
अपने अपोलो कार्यक्रम के कुछ असफल प्रक्षेपणों के बाद नासा ने अपना अधिकांश धन खो दिया? राष्ट्रपति ओबामा ने विफलता के डर से नासा का वित्त पोषण कम कर दिया। राष्ट्रपति ट्रम्प ने नासा को फिर से मजबूत किया है और 2024 तक अंतरिक्ष यात्रियों को चाँद पर वापस भेजे जाने का आह्वान किया है।
राष्ट्र ने अंतरिक्ष में हमारे अधिकारों की रक्षा की नई क्षमता विकसित की है और हमें इस पर गर्व होना चाहिए। हमेशा सत्ता में जिसकी सरकार होगी, श्रेय उसे ही जाएगा और विपक्षी नेताओं के पास इस कठोर वास्तविकता को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
अंतरिक्ष अनुसंधान में निवेश करना महँगा है। पर यह हमारा भविष्य है और इसके लिए बहुत सरकारी धन की आवश्यकता लाज़मी भी है।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए सरकार की इच्छा शक्ति की आवश्यकता होगी ताकि उसमें उचित निवेश हो। मिशन शक्ति, चँद्रमा और मंगल पर हमारे मिशन, निम्न पृथ्वी कक्षा (लो अर्थ ऑर्बिट-एलईओ) और भू स्थैतिक कक्षा (जियो स्टेशनरी ऑर्बिट- जीईओ) की हमारी सफल प्रक्षेपण क्षमताएँ अंतरिक्ष में बढ़ती उपस्थिति का प्रबंधन करने की हमारी क्षमताओं को दर्शाती हैं। हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के पास ज्ञान और अनुभव है और हमारे हितों की चरम सीमा तक का पता लगा सकते हैं।
केवल कोई मजबूत सरकार ही हमारे अतिआवश्यक अंतरिक्ष कार्यक्रम का समर्थन कर उसके लिए आवश्यक वित्त पोषण जारी रख सकती है।
ऐसी सरकार को हमारे समर्थन की ज़रूरत है।
*******************
लेखक कार्यकारी कोच और एंजेल निवेशक हैं। राजनीतिक समीक्षक और टीकाकार के साथ वे गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। वे 6 बेस्ट सेलर पुस्तकों – द ब्रांड कॉल्ड यू- The Brand Called You रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and द बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम अ मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं।
हमारे पॉडकास्ट देखें यहाँ https://www.equationcoaching.com/podcast
- ट्विटर : @gargashutosh
- इंस्टाग्राम : ashutoshgarg56
- ब्लॉग : ashutoshgargin.wordpress.com | ashutoshgarg56.blogspot.com
- अनुवादक- स्वरांगी साने – अनुवादक होने के साथ कवि, पत्रकार, कथक नृत्यांगना, साहित्य-संस्कृति-कला समीक्षक, भारतीय भाषाओं के काव्य के ऑनलाइन विश्वकोष-कविता कोश में रचनाएँ शामिल। दो काव्य संग्रह- काव्य संग्रह “शहर की छोटी-सी छत पर” मध्य प्रदेश साहित्य परिषद, भोपाल द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित और काव्य संग्रह “वह हँसती बहुत है” महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित।
No comments:
Post a Comment