वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के दो दौर समाप्त हो चुके हैं।
विपक्षी नेताओं की आवाज और अधिक तीखी और तेज होती जा रही है क्योंकि उन्हें शायद दीवार पर लिखा साफ़ दिख रहा है। उनकी हताशा स्पष्ट है क्योंकि वे एक गैर-मुद्दे से दूसरे गैर-मुद्दे पर इस उम्मीद से उछल-कूद कर रहे हैं कि मतदाता मोदी सरकार के खिलाफ़ कुछ आरोप तो सुन लेंगे और स्वीकार कर लेंगे।
राजनेता सपाट चेहरों से झूठ बोल सकते हैं। वे बार-बार अपने झूठ को दोहराते हैं और एक स्तर पर आकर अपने ही झूठ को सच मानने लगते हैं।
आइए हम उन 10 शीर्ष गैर-मुद्दों को देखें और उनका मूल्यांकन करें जिनके बारे में विपक्षी दल बात करते नहीं अघाते हैं।
- भ्रष्टाचार: यह जानते हुए भी कि प्रधानमंत्री मोदी ने सिद्ध कर दिया है कि सरकार में कहीं कोई भ्रष्टाचार नहीं है, विपक्ष भ्रष्टाचार के कुछ विश्वसनीय आरोप लगाने के लिए बेताब है, गोया जिसे मतदाता स्वीकार कर सकते हैं। राहुल गाँधी ने राफेल सौदे में भ्रष्टाचार और खुद पर लगे आरोपों पर रोते हुए कहा कि अनिल अंबानी को विमान के बड़े ऑर्डर दिए गए थे। श्री गाँधी ने राफेल की संख्याओं को बदल दिया है और अपनी इच्छा से श्रोताओं को संबोधित करते हुए हर बार इन "राफेल" निधियों का उपयोग अलग तरीके से करते हैं, बिना यह समझे कि उनके भाषण रिकॉर्ड किए जा रहे हैं और जिनकी तुलना की जाती है, और कुछ नहीं तो कम से कम एक-जैसा तो कुछ कहे। ऐसे में ज़रा भी आश्चर्य नहीं है कि अन्य विपक्षी दलों में से किसी एक ने भी इस मुद्दे को या मोदी सरकार के किसी अन्य भ्रष्टाचार के मुद्दे को नहीं उठाया है।
- 15 लाख रु: कई विपक्षी नेताओं की एक सामान्य टिप्पणी मतदाताओं को यह याद दिलाने की कोशिश है कि श्री मोदी ने वर्ष 2014 के चुनावों में प्रत्येक मतदाता को 15 लाख रुपये देने का वादा किया था। जब छोटे पर्दे पर पक्षपाती पत्रकार साउंड बाइट्स के लिए पूछते हैं तो वे इस माँग के लिए कुछ मतदाताओं को प्रेरित कर प्राप्त करने का प्रबंधन कर लेते हैं। यह तथ्य कि विपक्षी दल श्री मोदी का वह भाषण नहीं खोज पाए हैं, जहाँ ऐसा वादा किया गया था, जो पर्याप्त सबूत होता। अगर इस तरह का वास्तव में कोई भाषण होता, तो वर्ष 2019 के चुनावों के लिए यह एकल बिंदु एजेंडा होता।
- किसान संकट: किसान संकट पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है। यह ऐसी समस्या है जो पिछले 70 वर्षों में बिना किसी खास समाधान के चली आ रही है। हमें विश्वसनीय नीति की आवश्यकता है जो यह सुनिश्चित करे कि किसानों को उनकी उपज का उचित पारिश्रमिक मूल्य मिले, उन्हें अच्छी गुणवत्ता के बीज, पर्याप्त उर्वरक, उचित भंडारण सुविधाएँ और भरपूर पानी मिले। केवल मोदी सरकार ने कृषि की इन पाँच बुनियादी आवश्यकताओं को संबोधित किया है। कृषि संकट एक चुनौती है जिसे संभालने में समय लगेगा। काँग्रेस की बार-बार ऋण माफी की परिपाटी, हमारे किसानों के लिए स्थायी वित्तीय कल्याण का निर्माण करने में मदद नहीं करती है। वे पैसा कमाने का अवसर चाहते हैं और शासकीय सूचना पर निर्भर बन जाते हैं। शरद पवार और देवेगौड़ा जैसे वरिष्ठ कृषि नेताओं ने अपने नेतृत्व में अपने राज्यों में किसान संकट और किसान आत्महत्याएँ देखी हैं। जब वे सत्ता में थे तबकी उनकी टिप्पणियों को देखना दिलचस्प होगा कि कैसे उन्होंने किसान संकट को संभाला था।
- रोजगार निर्माण: काँग्रेस पिछले 5 वर्षों में रोजगार सृजन की कमी से जूझ रही है। वे इसे मतदान का महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं बना पाई है क्योंकि वे इससे हज़ारों साल नहीं खरीद रहे हैं। सरकार में पर्याप्त नौकरियों का सृजन नहीं हुआ है, लेकिन विशाल बुनियादी ढाँचे पर खर्च के साथ बढ़ती अर्थव्यवस्था निजी क्षेत्र में बहुत सारी नौकरियाँ पैदा कर रही है। भविष्य निधि लेने वालों की संख्या दोगुनी हो गई है। स्टार्टअप उच्च स्तर पर हैं। परिवहन क्षेत्र में अब जैसी तेजी पहले कभी नहीं देखी गई है। ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों से तेजी से आगे बढ़ रही उपभोक्ता वस्तुओं की कंपनियों को माँग में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिल रही है। सरकार को भविष्य में इसी तरह के आरोपों का सामना करने के लिए निजी और असंगठित क्षेत्र में रोजगार सृजन के अधिक विश्वसनीय डेटा को जल्दी से विकसित करने की आवश्यकता है।
- रसायन पर अंकगणित: कुछ राज्यों में चुनाव लड़ने के लिए विपक्षी नेता साथ आ रहे हैं तो दूसरे राज्यों में वे एक-दूसरे से ही लड़ रहे हैं। मायावती और अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में साथ हैं और काँग्रेस से लड़ रहे हैं और तब भी सभी पार्टियाँ साझा विपक्षी मंच पर साथ आ रही हैं। केजरीवाल और काँग्रेस दिल्ली में अपने रास्ते जाने का फैसला कर रहे हैं लेकिन हरियाणा में वे एक साथ आना चाहते हैं। इन नेताओं का मानना है कि साथ आना वर्ष 2014 के चुनावों में मतदाताओं को जोड़ने का सरल अंकगणित होगा। वे मानते हैं कि मतदाता उनके गैर-गठबंधनों और निहित विरोधाभासों के आर-पार देख नहीं सकता है और वे भूल जाते हैं कि नेता के साथ मतदाता का रसायन संख्याओं के अंकगणित से अधिक महत्वपूर्ण है।
- पुलवामा और बालाकोट: दुनिया भर के युद्धों का राजनेताओं पर सीधा प्रभाव पड़ता है। हर विपक्षी नेता पुलवामा और बालाकोट मामले में सत्तारूढ़ दल की स्थिति में रहना चाहेगा। श्री मोदी ने सशस्त्र बलों को आगे बढ़ने की अनुमति देने का निर्णय लिया और वे इस निर्णय का श्रेय लेने का अधिकार रखते हैं। इंदिरा गाँधी ने वर्ष 1971 के युद्ध का श्रेय तब लिया जब बांग्लादेश बनाया गया था। कारगिल युद्ध का श्रेय श्री वाजपेयी को मिला। श्री मोदी को बालाकोट का श्रेय लेने का पूरा अधिकार है। पुलवामा हमले और श्री मोदी की तत्काल विश्वसनीय प्रतिक्रिया न देने की कमी के बाद विपक्षी नेता अपनी टिप्पणी भूल जाते हैं। जब कार्रवाई की गई, तो वे बेईमानी से रोने लगे। इसके विपरीत, यदि ऑपरेशन सफल नहीं होता, तो क्या विपक्षी नेता भूल जाते और विफलता को चुनावी मुद्दा नहीं बनाते?
- विमुद्रीकरण और जीएसटी: विपक्षी नेता समझते हैं कि विमुद्रीकरण का शुरुआती दर्द भुला दिया गया है। जीएसटी ने आम आदमी के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाया है। विमुद्रीकरण और जीएसटी अब चुनावी मुद्दा नहीं रह गया है और राहुल गाँधी इस विषय पर ढोल पीटना चाहते हैं, मतदाता के पास इन विषयों पर अधिक झूठ और असत्य सुनने का समय नहीं है।
- लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता बचाओ: ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल लोकतंत्र को बचाने और भारतीय जनता पार्टी को वोट देकर बाहर करने की आवश्यकता के बारे में चिल्लाते रहते हैं। ममता बनर्जी तानाशाही सरकार चलाती हैं, जो विपक्ष को स्वीकार नहीं करती, केजरीवाल इन चुनावों में कोई महत्व नहीं रखते हैं। विपक्षी नेता जो धार्मिक मतों के आधार पर मतदाताओं को वोट देने के लिए प्रोत्साहित करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, वे उसी रौ में धर्मनिरपेक्षता का सहारा ले रहे हैं। ये विपक्षी नेता चुनावों के ठीक मध्य भारत के लोकतंत्र को बचाने की चिल्ला-चोट कर रहे हैं और दुनिया सबसे बड़े लोकतांत्रिक चुनावों की साक्षी होने जा रही है!
- कोई विकास नहीं: व्यापक बयानों में कहा गया है कि पिछले 5 वर्षों में भारत में कोई विकास नहीं हुआ है जबकि सभी सूचकांकों से संकेत मिलता है कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है। सड़कों और बिजली में हुए सुधार हर कोई देख और अनुभव कर सकता है। भारत की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा और बढ़ा हुआ कद हर भारतीय को गर्वित करेगा।
- कमजोर नेता: प्रियंका गाँधी तार सप्तक की आवाज में कहती जा रही हैं कि मोदी अब तक के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री मोदी रहे हैं। जबकि सार्वजनिक जीवन में उनकी इस तथ्य के अलावा लगभग कोई विश्वसनीयता नहीं है कि वे अपनी दादी की तरह दिखती है, कोई भी मतदाता कभी भी इस हास्यास्पद टिप्पणी पर विश्वास नहीं कर सकता है कि जिसे वे बार-बार फैलाने की कोशिश कर रही है।उदार पत्रकारों की सेनाएँ अपने पुराने आकाओं को कुछ गोला-बारूद मुहैया कराने की उम्मीद में डेटा और पिछले भाषणों को हवा दे रही हैं। मतदाताओं को साधने की कोशिश करने में बोलबाला करते हुए साक्ष्य का निर्माण किया जा रहा है, लेकिन सत्तारूढ़ दल द्वारा उनका जल्दी और प्रभावी तरीके से खंडन किया जा रहा है।
विपक्षी नेता खुद इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि उन्हें किस बारे में बात करनी चाहिए। तथ्य तो यही है कि एक भी विश्वसनीय मुद्दा नहीं है और यही वजह है कि विपक्षी दल साझा मंच पर एक साथ नहीं आ पा रहे हैं। सभी विपक्षी दलों का एकमात्र साझा एजेंडा प्रधानमंत्री मोदी को हटाना है। मतदाताओं को समझाने के लिए इतना भर पर्याप्त नहीं है जो अपने जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव देख सकते हैं और यह जानते हैं कि आने वाले वर्षों में वे और अधिक विकास की उम्मीद कर सकते हैं।
श्री मोदी द्वारा वर्ष 2014 में निर्धारित एजेंडा फिर वर्ष 2019 में स्पष्ट रूप से हासिल किया जा रहा है। बहुत कुछ पूरा हो चुका है और आने वाले 5 वर्षों में बहुत कुछ किया जाना है।
भारतीय हमेशा एक मजबूत नेता चाहते रहे हैं और अब हम हमारे पास वह है।
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लेखक कार्यकारी कोच और एंजेल निवेशक हैं। राजनीतिक समीक्षक और टीकाकार के साथ वे गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। वे 6 बेस्ट सेलर पुस्तकों – द ब्रांड कॉल्ड यू- The Brand Called You रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and द बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम अ मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं।
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- अनुवादक- स्वरांगी साने – अनुवादक होने के साथ कवि, पत्रकार, कथक नृत्यांगना, साहित्य-संस्कृति-कला समीक्षक, भारतीय भाषाओं के काव्य के ऑनलाइन विश्वकोष-कविता कोश में रचनाएँ शामिल। दो काव्य संग्रह- काव्य संग्रह “शहर की छोटी-सी छत पर” मध्य प्रदेश साहित्य परिषद, भोपाल द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित और काव्य संग्रह “वह हँसती बहुत है” महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित।