Wednesday, 10 April 2019

चुनावी घोषणापत्र - भाजपा बनाम काँग्रेस



चुनाव समीप आ गए हैं। इसी के साथ आ गए हैं चुनावी घोषणापत्र, जिनमें कई वादें और सपने हैं, बिना ये देखें-समझें कि पिछले चुनावों में क्या वादे किए गए थे और तब से अब तक उनमें से कितने पूरे हुए। इन सालों में राजनीतिक दलों ने इसे रोजनामचा जैसा बना लिया है गोया जिसे हर चुनाव से पहले पूरा करना पड़ता है। उनसे कोई नहीं पूछता कि वे ऐसा क्यों करते हैं और निर्वाचित अधिकारियों के एक बार सत्ता में आ जाने के बाद कोई उनके किए चुनावी वादों को भी नहीं देखता।
इसलिए हमें कौन-सा घोषणापत्र हमारी पसंद के अनुरूप है यह तय करने से पहले गौर से देखना होगा कि राजनीतिक दलों ने अपने घोषणापत्र में जो वादे किए थे उनमें से उन्होंने कितने पूरे किए, साथ ही जिसने घोषणापत्र जारी किया उस दल के नेता की विश्वसनीयता को भी परखना होगा। इसका बाकायदा ट्रैक रिकॉर्ड रखना होगा।                                                                              
आइए हम उन मुख्य मुद्दों की जाँच करें जिनका सामना हमारा राष्ट्र कर रहा है और देखें कि भाजपा और काँग्रेस उन पर किस तरह ध्यान दे रही है। हमें सारी बयानबाजी पर कैंची चलाकर प्रत्येक बिंदु को आर्थिक विवेक के लेंस से तौलना होगा।
  1. रोजगार: हमारे देश की आबादी में हर साल 28 मिलियन से अधिक लोग जुड़ते हैं, इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि सत्ता में जिसकी सरकार है उसे रोजगार पैदा करने हैं। लेकिन क्या यह केवल सरकारी नौकरियों से साध्य होगा? या सरकार को ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करना चाहिए जो उद्यमिता के माध्यम से रोजगार पैदा करने के लिए अनुकूल हो। काँग्रेस अधिक सरकारी नौकरियों का वादा कर रही है तो भाजपा अधिक उद्यमी अवसर प्रदान कर रही है। यदि हम प्रभावी नौकरशाही चाहते हैं तो सरकारी नौकरियों की संख्या हमेशा परिमित होगी।
  1. स्वास्थ्य: हमारी बढ़ती जनसंख्या की स्वास्थ्य आवश्यकताओं के आगे कोई तर्क नहीं हो सकता है। यह तथ्य है कि हमारी स्वास्थ्य प्रणाली की वस्तुस्थिति भयावह है और कोई भी इससे इनकार नहीं कर सकता या इसे चुनौती नहीं दे सकता है। भाजपा ने अपनी आयुष्मान भारत योजना के माध्यम से जो किया है, वह विचारणीय है, जिसने हमारे देश के लगभग 40% लोगों को चिकित्सा बीमा प्रदान की है। काँग्रेस के घोषणापत्र में राइट टू हेल्थकेयर एक्ट (स्वास्थ्य सुरक्षा अधिनियम का अधिकार) की बात की गई है, लेकिन यह सोचा जाना चाहिए कि पहले से क्या लागू किया गया है जबकि उसके सामने किसका वादा किया जा रहा है।
  1. शिक्षा: काँग्रेस के घोषणापत्र में शिक्षा के लिए वार्षिक बजट का 6% आरक्षित करने का वादा किया गया है, जबकि भाजपा के घोषणापत्र में शिक्षण संस्थानों में वृद्धि की बात की गई है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भाजपा अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए हमारे शैक्षिक संस्थानों को विकसित करना चाहती है, यहाँ एक बार फिर भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश पर ध्यान केंद्रित करने की बात है।
  1. किसान: आजादी के बाद से अब तक किसानों की दुर्दशा को लेकर बहुत बातें हुई लेकिन उनके लिए काम बहुत कम हुआ है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि कोई भी किसान खैरात में भोजन नहीं चाहता है। वह कड़ी मेहनत कर अपनी जमीन से आजीविका अर्जित करना चाहता है। काँग्रेस, अपनी सामान्य शैली में अधिक विज्ञप्ति पत्रक देने का वादा करती है जबकि भाजपा 2024 तक खेत की आय दुगुना करने और खेती के लिए अधिक पानी उपलब्ध कराने की बात करती है। इसी के साथ भाजपा ने पहले ही नीम लगे उर्वरक और बढ़ी हुई न्यूनतम समर्थन मूल्य (मिनिमम सपोर्ट प्राइज़- एमएसपी) योजना लागू कर दी है।
  1. सुरक्षा: राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में किसी स्पष्टीकरण या चर्चा की आवश्यकता नहीं है। जाहिर है, हर भारतीय (शायद कुछ अपवादों को छोड़कर) अपने और अपने परिवार के लिए सुरक्षा चाहता है। इसमें हमारी सीमाओं की सुरक्षा, हमारे घरों की सुरक्षा और हमारी व्यक्तिगत सुरक्षा शामिल है। काँग्रेस आतंकवाद की समस्या को हल किए बिना सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) को शिथिल करना चाहती है। भाजपा का स्पष्ट रूप से विपरीत दृष्टिकोण है और हमने देखा है कि किस नेता ने बीते वर्षों में क्या कार्रवाई की है। भाजपा ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी शून्य सहनशीलता (जीरो टॉलरेंस) पर जोर दिया है। क्या हम आतंकवाद पर केवल "कड़ी निंदा" करने का जोखिम उठा सकते हैं जैसा कि हमने हमेशा हमला होने के बाद किया है या हमें पूर्ण निवारण के लिए मुँह-तोड़ जवाब देना चाहिए?
  1. राजकोषीय विवेक: काँग्रेस का घोषणापत्र स्पष्ट रूप से मजबूत अर्थव्यवस्था दिए जाने की संभावनाओं का लालच दे रहा है, जहाँ मुद्रास्फीति नियंत्रण में हो, चालू खाता घाटा अपने सबसे निचले स्तर पर है और जीडीपी में लगातार मजबूत वृद्धि देखी गई है। वे न्यूनतम आमदनी योजना (एनवाईएवाई) जैसी अपनी लोकलुभावन योजनाओं के साथ खजाने पर छापा मारने का एक शानदार अवसर देखते हैं। दूसरी ओर, भाजपा ने हमेशा राजकोषीय विवेक का प्रदर्शन किया है और कठिन निर्णय लेने में संकोच नहीं किया है जब हमारे देश के लिए दीर्घकालिक राजकोषीय नीतियों को प्रभावित करने वाली चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  1. समान नागरिक संहिता: दुनिया में शायद कोई देश ऐसा नहीं है जो अपने नागरिकों के धर्म के आधार पर लागू कानूनों की बहुलता रखता हो। सभी नागरिकों के लिए कानून समान होने चाहिए। हमारी आजादी के बाद के विकास के चलते समान नागरिक संहिता के कड़े फैसले को टालते रहना तब से चली आ रही सरकारों को अनुकूल लगा है। इससे धार्मिक समूहों के बीच बहुत सारी चुनौतियाँ आई हैं। यह समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन शुरू होने वाली एक स्वस्थ बहस शुरू करने का समय है और भाजपा ने इस मुद्दे को संबोधित किया है, जबकि काँग्रेस समझदारी से चुप है।                                              
  1. आधारिक संरचना : स्वतंत्रता के बाद हमसे क्रमिक सरकारों ने हमेशा अच्छे बुनियादी ढाँचे का वादा किया है। "अच्छे" की परिभाषा को कभी स्पष्ट नहीं किया गया है। क्या गड्ढेदार सड़कों को अच्छा या स्वीकार्य माना जाता है? क्या शुष्क और बिजली कटौती को स्वीकार्य माना जा सकता है? आज के युवा भारतीय अच्छी सड़कें, 100% बिजली और ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी की सुविधा को स्वीकार मानते हैं। भाजपा के घोषणापत्र में वर्ष 2022 तक सभी के लिए बुनियादी ढाँचे और आवास में महत्वपूर्ण निवेश के बारे में बात की गई है।
राजद जैसे क्षेत्रीय दलों का घोषणापत्र निजी क्षेत्र और न्यायपालिका में नौकरियों के आरक्षण का वादा करता है, उसे किसी चर्चा की आवश्यकता नहीं है। कई और हास्यास्पद वादे होंगे जो अन्य क्षेत्रीय दलों द्वारा किए जाएँगे। ये अभी अभी पैदा हुए वादे हैं जिन्हें सभी जानते हैं कि इन्हें कभी लागू नहीं किया जा सकता है।
जैसे-जैसे विकसित दुनिया की आबादी सिकुड़ती जाएगी, अधिक से अधिक भारतीयों को इन विकसित राष्ट्रों में प्रवास करने का अवसर मिलेगा। क्या हमें एक ऐसे नेता की आवश्यकता नहीं है जो भारत को को ऊँचाई प्रदान करे और यह सुनिश्चित करे कि हमारा पासपोर्ट अधिक शक्तिशाली हो या हमें ऐसे नेताओं के समूह की आवश्यकता है जो अपनी आवक देख रहे हों और यह सुनिश्चित करने में लगे रहे कि विश्व भविष्य के भारतीयों का स्वागत नहीं कर पाए?
भाजपा का घोषणापत्र भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और विकसित राष्ट्र बनाने की बात करता है। काँग्रेस हमारे देश को गरीबी और अशिक्षा में रखना पसंद करेगी क्योंकि इसी तरह वे चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं। लेकिन भारत बदल गया है, और युवा भारतीय जानते हैं कि उन्हें क्या चाहिए।
पर मिलियन डॉलर का सवाल बना हुआ है। क्या चुनावी घोषणापत्र का मतदाता से कोई मतलब होता है या वह विभिन्न नेताओं के अहंकार को फुगाने में अधिक उचित होता है? क्या हम ऐसा घोषणापत्र चाहते हैं, जिसे लागू करने पर कुछ राजनेताओं के अल्पकालिक व्यक्तिगत लक्ष्यों को पूरा करने के लिए देश के खजाने पर छापा पड़ेगा?
हमें अपने स्थानीय राजनेता और हमारे राजनीतिक नेताओं के प्रदर्शन का मूल्यांकन "लोकतंत्र के त्योहार" की प्रतीक्षा करने के बजाय 5 साल तक करना चाहिए। यह एक आकलन है जो सत्ता में जो पार्टी है और जो विपक्ष में पार्टी है उसका होना चाहिए। एक नेता को अपने वादों को पूरा करने के लिए सरकार में रहने की आवश्यकता नहीं होती है।
जिम्मेदार मतदाताओं के रूप में, यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि एक सरकार को कम से कम 2 मौके देने की आवश्यकता होती है  ताकि जो उसने शुरू किया है वह लागू हो। अगर 10 साल के अंत तक भी वादे नहीं निभाए गए, तो मतदाता को बदलने का पूरा अधिकार है। यूपीए को 10 साल दिए गए थे। एनडीए भी इसका हकदार है।
अंत में, जैसी कि पुरानी कहावत है, एक आदमी को मछली दें तो उसके एक दिन के लिए पर्याप्त होगी। एक आदमी को मछली पकड़ना सिखाया तो वह अपने सारे जीवन (सभी शाकाहारियों से माफी के साथ) खा सकेगा। हम देख सकते हैं कि कौन सा घोषणापत्र हमें खाने के लिए मछली दे रहा है और कौन सा घोषणापत्र हमें मछली पकड़ना सिखाने का वादा कर रहा है!
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लेखक कार्यकारी कोच और एंजेल निवेशक हैं। राजनीतिक समीक्षक और टीकाकार के साथ वे गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। वे 6 बेस्ट सेलर पुस्तकों – द ब्रांड कॉल्ड यू- The Brand Called You रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and द बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम अ मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं।
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  • अनुवादक- स्वरांगी साने – अनुवादक होने के साथ कवि, पत्रकार, कथक नृत्यांगना, साहित्य-संस्कृति-कला समीक्षक, भारतीय भाषाओं के काव्य के ऑनलाइन विश्वकोष-कविता कोश में रचनाएँ शामिल। दो काव्य संग्रह- काव्य संग्रह “शहर की छोटी-सी छत पर” मध्य प्रदेश साहित्य परिषद, भोपाल द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित और काव्य संग्रह “वह हँसती बहुत है” महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित।
                                                                                                                                       
                                                                                                                                       

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