Tuesday, 2 April 2019

10 कारण जिनकी वजह से हमें गठबंधन सरकार को वोट नहीं देना चाहिए



चुनावों में भाजपा की लोकप्रियता में वृद्धि के आवेग को देखते हुए, इसे समझना आसान है कि किस तरह विपक्षी नेताओं को चिंता हो रही होगी, जो अपने राजवंशों और उनकी प्रासंगिकता को बचाने की जद्दोजहद में हैं। वहीं यह भी काफ़ी आश्चर्यजनक है कि लेखकों ने ऐसे लेखों को लिखना शुरू कर दिया है, जिसमें गठबंधन को महिमामंडित किया जा रहा है और केंद्र में गठबंधन सरकार के आने की उम्मीदें की जा रही हैं।
गठबंधन को व्यक्तियों के ऐसे समूह के अधिनियम के रूप में परिभाषित किया जाता है जो समान मूल्यों पर चलते या सामान्य दृष्टि साझा करते हैं। राजनीतिक गठबंधन ने गठबंधन के अर्थ को किसी संयुक्त कार्य को पूरा करने के अस्थायी गठबंधन की तरह अनुकूलित कर लिया है, लेकिन तब भी अपने घटकों के बड़े हित हासिल करने के साझे लक्ष्यों के साथ।
आगामी चुनावों में निष्क्रिय महागठबंधन का अब एकल बिंदु एजेंडा केंद्र में भाजपा को हटाना है। बस इतना ही। इसके पूर्व के गठबंधनों के विपरीत, इस बार महागठबंधन के घटक एक सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम के साथ भी नहीं आ पाए हैं। गठबंधन का नेतृत्व कौन करेगा, इस पर भी कोई सहमत नहीं हो सका है। वे राज्यों में आर-पार लड़ते हैं और केंद्र में सहयोग करते हैं।                                                                          
दुनिया भर में गठबंधन सरकारें हमेशा कमजोर और कम निर्णायक रही हैं। लगभग सभी गठबंधन सरकारों का सामान्य धर्म समझौता और सहिष्णुता है, जहाँ समायोजन और पारिश्रमिक जरूरतों को स्वीकार करना राष्ट्रीय आवश्यकताओं पर प्राथमिकता है। सबसे अधिक गठबंधन सरकारों का सामान्य धर्म है, जहाँ राष्ट्रीय आवश्यकताओं से ऊपर समायोजन और संकुचित जरूरतों को स्वीकारना प्राथमिकता होती है।
आइए हम गठबंधन सरकार की खामियों को परखते हैं क्योंकि इसके साक्ष्य न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में स्पष्ट दिखते हैं और उसके बाद अपना आकलन कर मतदान के लिए कदम बढ़ाते हैं।                                               
  1. यह संघीय संरचना के साथ समझौता है: गठबंधन सरकारें अपनी परिभाषा के अनुसार छोटी पार्टियों का समूह है जो साथ आता है क्योंकि कोई भी अकेली पार्टी सरकार नहीं बना सकती है। इसकी सबसे बड़ी चुनौती होती है कि नेतृत्व कौन करेगा। हमने मुख्यमंत्रियों को चक्रीय क्रम में देखा है ताकि उनके व्यक्तिगत एजेंडे पूरे किए जा सकें। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम व्यक्तिगत क्षेत्रीय पार्टी एजेंडा को अपने राष्ट्र का मार्ग निर्धारित करने की अनुमति न दें।
  1. मजबूत बनाम लंगड़ा घोड़ा प्रधान मंत्री: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने टेलीकॉम घोटाले के बारे में पूछे जाने पर प्रसिद्ध टिप्पणी की थी कि उन्होंने गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था और इसलिए वे कुछ भी कर पाने में असमर्थ थे। नेता के पास तब समझौता करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है, जब उसका सामना ऐसी चुनौती से होता है जो किसी एक पार्टी के लिए हो, पर देश के लिए नहीं। जीएसटी, दिवालियापन संहिता, जन हित योजनाएँ जैसे आधार, जन धन योजना, स्वच्छ भारत, राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना और अन्य ऐसी योजनाएँ जो पिछले 2 दशकों से सरकार के एजेंडे में थीं, लेकिन गठबंधन सरकारों की वजह से उन्हें लागू नहीं किया जा सका था।                            
  1. भारत का संविधान: संविधान ने उन 100 क्षेत्रों को निर्धारित है जिन्हें केवल संसद द्वारा तय किया जा सकता है, राज्यों द्वारा नहीं; इनमें रक्षा, विदेश नीति, सामान्य मुद्रा, न्यायपालिका, संघीय कर, वायुमार्ग और कई अन्य शामिल हैं। इनमें से अधिकांश मामलों में गठबंधन सरकारों के निहित हित होते हैं। उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों में बदलाव लाने की आवश्यकता होती है और वे हमेशा इन क्षेत्रों को अपने हिसाब से मोड़ने के तरीके खोजते रहते हैं।
  1. राजकोषीय विवेक से समझौता होना: अपने गठबंधन सहयोगियों की अलग-अलग वित्तीय माँगों को पूरा करने के लिए ऐसी सरकारों का राजकोषीय विवेक के साथ समझौता करना देखा गया है। क्षेत्रीय और राज्य की आवश्यकताएँ अग्रता क्रम में आ जाती हैं। मुद्रास्फीति की उच्च दर और उच्च राजकोषीय घाटे को देखना आम है जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के गंभीर संरचनात्मक दोषों को जन्म देता है।
  1. वादे पूरा करने के इरादे से नहीं किए जाते: मतदाताओं के सामने स्पष्ट जवाबदेही होना चाहिए ताकि वे अपने नेताओं से उनके द्वारा किए चुनावी वादों को पूरा करने के लिए कह सकें। गठबंधन सहयोगियों के पास हमेशा अपने किए वादों को पूरा न करने का कोई न कोई विश्वसनीय बहाना अवश्य होता है। भ्रष्टाचार को विभिन्न राजनीतिक दलों की जरूरतों को पूरा करने के स्वीकार्य अभ्यास के रूप में भी देखा जाता है जो अपने उसमें से अपने हिस्से माँग करते हैं। किसी को कोई लेना-देना नहीं है।
  1. स्वास्थ्य और शिक्षा: राज्य नियंत्रित विषय जैसे स्वास्थ्य और शिक्षा भी एक मामला है। हर कोई सर्वसम्मति से स्वीकार करता है कि स्वास्थ्य और शिक्षा पर सभी को ध्यान देने की आवश्यकता है। हम राज्यों में मौजूद भारी असमानताओं को देख सकते हैं। हमारे राजनेता ऐसा क्यों मानते हैं कि सभी लोग समान नहीं हैं, और कुछ राज्यों में बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा है और अन्य राज्यों में नहीं? यही बात उन अधिकांश अन्य क्षेत्रों पर लागू होती है जिन्हें राज्य स्तर पर शासन के लिए सौंपा गया है।
  1. व्यक्तिगत एजेंडा निर्णय लेने की प्रबल प्रेरणा: संसद की 5 साल की अवधि और उससे भी कम गठबंधन के आपसी तालमेल की छोटी अवधि को देखते हुए, राजनीतिक दलों को पता है कि उनके पास अपने संबंधित समूहों के वित्तीय लाभों को अधिकतम कर सकने के का लघु गवाक्ष है। यह हमने यूपीए सरकार के वर्ष 2004 से वर्ष 2014 तक के कार्यकाल में देखा है और मुझे ज़रा भी भरोसा नहीं है कि वर्ष 2019 में सत्ता में आने पर यह सोच बदल जाएगी।
  1. विदेश नीति: विश्व राजनीति सीमाहीन दुनिया से ऐसी दुनिया में बदल रही है जहाँ फिर से सीमाएँ खींची जाने लगी हैं। मजबूत नेताओं के मजबूत देश ही इस नई दुनिया में ऐसी जगह बना पाएँगे जहाँ मजबूत अर्थव्यवस्थाओं और मजबूत रक्षा क्षमताओं का सम्मान होगा। हमने उरी और बालाकोट की आलोचना होते देखी है। अगर कश्मीर में धारा 370 को लेकर कोई कार्रवाई की जाती है, तो उससे पहले ही हम तोड़-फोड़ की घटनाओं के बारे में सुन चुके हैं। गठबंधन सरकार, अपनी परिभाषा से ही हमेशा कमजोर रहेगी और इसलिए राष्ट्रीय पटल पर देश के हितों के साथ समझौता करेगी।
  1. निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी: ज़ाहिरन जब ऐसे दर्जनों लोग होंगे जो मानते हो कि वे गठबंधन में दूसरों की तुलना में राष्ट्र का बेहतर नेतृत्व कर सकते हैं, तो हर विषय पर उनके विचार अलग-अलग होंगे। इसलिए सबसे सरलतम मामलों पर भी निर्णय लेने के लिए सभी के समर्थन की आवश्यकता होती है और इस प्रकार निर्णय लेने की गति धीमी हो जाती है।
  1. कोई भी दल पल्ला झाड़ सकता है: गठबंधन सरकारें कमजोर होती हैं और हमेशा बर्फ की महीन सिल्ली पर चलती हैं, जिसमें जाने कब दरारें दिखाई देने लगे। वे ऐसे व्यक्तियों के समूह द्वारा समर्थित होते हैं जिनकी कोई सर्वसामान्य विचारधारा नहीं होती है। पहला कदम गठबंधन के खिलाफ बयान देने लगता है, फिर रूठना-मनाना शुरू होता है और अंतिम चरण इस तरह समर्थन खींचना होता है जिससे सुनिश्चित हो जाए कि ताश के पत्तों का महल बिखर जाएगा। सरकारों के ऐसे कई उदाहरण देखे जा सकते हैं जब सरकार खुद या उसके मूल्यों के साथ समझौता किया गया है और आगे भी ऐसे कई मामले देखे जा सकेंगे।
क्या भारत गठबंधन के नेताओं की कमजोर, अस्थिर और स्वार्थी जोड़-तोड़ को स्वीकार कर सकता है जिनके अपने निजी और व्यक्तिगत एजेंडा हैं और पिछले 5 वर्षों में हमारे हिस्से आई सभी महत्वपूर्ण उपलब्धियों का दरकिनार हो जाना बर्दाश्त कर सकता है?
पुरातन बात याद रखें कि "बहुत सारे रसोइए शोरबा खराब कर देते हैं?" क्या हम प्रधान मंत्री की कुर्सी के लिए संगीतमय कुर्सी का खेल देखना चाहते हैं? क्या हम हर 6 महीने में एक नया प्रधान मंत्री देखने को तैयार हैं?
अधिकांश सरकारें 40% से कम वोटों से चुनी जाती हैं। हालाँकि, सरल गणित काम नहीं करता है। यदि पिछले चुनावों में युद्धरत दो दल अपने वोटों की साँठ-गाँठ करते हैं, तो वे अपने आप यह मान लेंगे कि वे अगले चुनावों में जीत हासिल कर कर लेंगे। वे यह भी मानते हैं कि उनका मतदाता इतना नासमझ है कि संयुक्त पार्टी के लिए मतदान कर देगा और अतीत में एक दूसरे के खिलाफ उनके बाहुबली नेताओं द्वारा कही गई सारी बातों को भूला चुका होगा।                                                                                                    
हमें एक ऐसी पार्टी की आवश्यकता है जिसके पास संसद में आवश्यक 272 सीटें हों। इससे सुनिश्चित होगा कि नेताओं को निर्णय लेने के लिए समझौता नहीं करना पड़ेगा जो छोटे क्षेत्रों के लिए तो चल सकता है लेकिन जरूरी नहीं कि राष्ट्र हित में हो।
हमें अपने दिमाग का उपयोग कर वोट करने की ज़रूरत है जिससे सुनिश्चित हों कि हम एक मजबूत नेता के साथ एक ही पार्टी को वोट दें, जो लाखों युवाओं को उनके सपने सच में बदलने में मदद कर सकता है।
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लेखक कार्यकारी कोच और एंजेल निवेशक हैं। राजनीतिक समीक्षक और टीकाकार के साथ वे गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। वे 6 बेस्ट सेलर पुस्तकों – द ब्रांड कॉल्ड यू- The Brand Called You रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and द बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम अ मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं।
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  • अनुवादक- स्वरांगी साने – अनुवादक होने के साथ कवि, पत्रकार, कथक नृत्यांगना, साहित्य-संस्कृति-कला समीक्षक, भारतीय भाषाओं के काव्य के ऑनलाइन विश्वकोष-कविता कोश में रचनाएँ शामिल। दो काव्य संग्रह- काव्य संग्रह “शहर की छोटी-सी छत पर” मध्य प्रदेश साहित्य परिषद, भोपाल द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित और काव्य संग्रह “वह हँसती बहुत है” महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित।

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