Friday, 24 May 2019

भाजपा की लोकसभा 2019 में जीत के 12 कारण



चुनाव हो गए और परिणाम भी आ गए हैं। ज़ाहिरन श्री मोदी के नेतृत्व ने नए दम से खड़ी भाजपा को रिकॉर्ड तोड़ जीत दिलाई है। यह ऐसा चुनाव था, जिसमें मतदाताओं ने घरों से निकलकर श्री मोदी के लिए मतदान किया, श्री मोदी के उन कामों के लिए मतदान किया, जो उन्होंने किए या जिनका शुभारंभ वे वर्ष 2014 में कर चुके थे और अब मतदाताओं ने उन कामों को पूरा करने के लिए समय दिया है।
कुछ पत्रकारों द्वारा फैलाए गए झूठ और बेबुनियाद ख़बरों को मतदाताओं ने सिरे से खारिज कर दिया है। विपक्ष का संदेश "मोदी हटाओ" खारिज किया जा चुका है। राजद्रोह के लिए कानून बनाने का काँग्रेस का वादा स्वीकार नहीं किया गया है। उनके भगवा आतंक के दावे को खारिज कर दिया गया है। विपक्षी नेताओं का यह दावा कि राष्ट्रीय संस्थानों के साथ समझौता किया गया, उसे भी दृढ़ता से खारिज किया जा चुका है। लोकतंत्र पर मंडराते तथाकथित खतरे को अस्वीकार कर दिया गया है।
दूसरी ओर, श्री मोदी के कथन "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" पर भरोसा और विश्वास जताकर उसे गले से लगाया गया है।                                                                          
इन चुनावों से स्पष्ट है कि मुख्य रूप औसत भारतीय मतदाता अपने लिए क्या चाहता है:
  1. स्वच्छ प्रशासन: विभिन्न गैर-भाजपा सरकारों के पिछले 70 वर्षों के अति भ्रष्टाचार की अविश्वसनीय चरम सीमा से हम सब नाराज और क्षुब्ध हो चुके हैं।
  1. देश का मजबूत आर्थिक विकास जिससे संपदा और रोजगार का सृजन होगा।
  1. सुरक्षित वातावरण, न कि लगातार संभावित खतरों की आशंकाएँ, जो हमें और हमारे परिवारों को शारीरिक रूप से नुकसान पहुँचा सकती है। हमें अपने कंधों पर कोई बोझ होने का डर न हो। न हम किसी अज्ञात बैग की आशंका से मेज और कुर्सियों के नीचे बैठने से पहले देखना चाहते हैं।                                                    
  1. जीवन की सभी आवश्यकताओं के साथ स्वच्छ वातावरण ताकि हम अपने परिवारों के साथ सामान्य जीवन जी सकें।                                                  
आइए हम उन कारणों की पड़ताल और जाँच करें जिनसे व्यक्तिगत रूप से श्री मोदी के खिलाफ विपक्षी नेताओं की इतनी नकारात्मकता के बावजूद भाजपा ने चुनावों की लहर को अपनी ओर कर लिया।
  1. सकारात्मक रिपोर्ट कार्ड: पिछले चुनावों के दौरान वर्ष 2014 में श्री मोदी ने वादा किया था कि वे वर्ष 2019 में अपने रिपोर्ट कार्ड के साथ निर्वाचन क्षेत्र में वापस आएँगे। पहले पाँच साल के कार्यकाल की महत्वपूर्ण उपलब्धियों के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। कुल मिलाकर, मतदाता श्री मोदी के शासन और भारत के लिए निर्धारित दिशा से संतुष्ट थे। मतदाताओं ने सरकार की सभी योजनाओं का जोरदार समर्थन किया। उन्होंने अपने जीवन में इन योजनाओं के प्रभाव का अनुभव किया है। उन्होंने उन नीतियों की निरंतरता के लिए मतदान किया है। मतदाताओं ने श्री मोदी को एक मौका और दिया है।
  1. अर्थव्यवस्था: अब भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और क्रय शक्ति समानता के मामले में दूसरी सबसे बड़ी ताकत है। श्री मोदी भारत को अगले दशक के त्वरित विकास के लिए पटरी पर ले आए हैं। यह ऐसा नेता है जो हर संभव मजबूत निर्णय लेने में संकोच नहीं करता है चाहे वे निर्णय अर्थव्यवस्था से संबंधित हों या मौलिक संहिता सुधार के जैसे कि दिवालियापन संहिता। इन सुधारों का प्रभाव अब आने वाले 5 वर्षों में पूरी तरह से महसूस किया जा सकेगा।
  1. स्वच्छ सरकार: श्री मोदी ने अपने बाधकों के मन में भी स्पष्ट रूप से स्थापित कर दिया है कि वे साफ-सुथरे हैं। उन्होंने यह सुनिश्चित करने का हर संभव प्रयास किया है कि उनकी सरकार में कोई भ्रष्टाचार न हो। पिछले पाँच वर्षों में छोटा- बड़ा कोई घोटाला नहीं हुआ है। राफेल सौदे की चर्चाओं ने मतदाताओं पर कोई प्रभाव नहीं डाला और श्री मोदी के खिलाफ़ श्री गाँधी के भ्रष्टाचार के आरोपों ने काम नहीं किया। जितना अधिक श्री गाँधी ने श्री मोदी के बारे में दुष्प्रचार किया, उतना ही उन्होंने मतदाताओं को श्री मोदी के करीब कर दिया।
  1. विदेश नीति: भारत अब राष्ट्र मंडली में कद्दावर हुआ है। पाकिस्तान को छोड़ दे तो भारत सभी पड़ोसी देशों के साथ बहुत अच्छे संबंध विकसित करने में कामयाब रहा है। साथ ही भारत संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस तथा उसी तरह ईरान और इजरायल के साथ स्वतंत्र और मजबूत एवं चीन के साथ आर्थिक संबंधों को मजबूत रखने में सफल रहा है। मतदाता ने भारत के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते सम्मान को माना है। इन नीतियों का प्रभाव भारतीय पासपोर्ट के प्रति बढ़ते सम्मान में देखा जा सकता है। 
  1. महागठबंधन: महागठबंधन काम न आ सका। निश्चित रूप से उस तरीके से नहीं, जिस तरह राहुल गांधी ने खुद ही सभी के एक नेता के रूप में खुद को ताज पहनाया था। क्षेत्रीय नेताओं के इस अभिप्रेरक समूह के किसी भी घटक के पास कोई सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम नहीं था और न ही उन्होंने मतदाताओं के सामने समान मूल्यों के मानक समुच्चय को प्रस्तुत करता प्रतिनिधित्व दिया था। महागठबंधन के युद्धरत नेताओं ने अपने असली रंग दिखाए क्योंकि वे नुकीली ज़ुबान से बात करते रहे। एक ही रौ में वे अपने गठबंधन सहयोगियों की आलोचना भी करते रहे और प्रशंसा भी। इन राजनीतिक दलों के नेताओं को जितना लगता है कि मतदाता उन पर विश्वास करता है उससे कहीं अधिक भारतीय मतदाता चाणाक्ष हैं।
  1. राहुल गाँधी: जब यह लेख छपने के लिए तैयार था तभी, श्री गाँधी अमेठी में 17,000 से अधिक वोटों से पीछे चल रहे थे। यह नुकसान इसे भी स्थापित करेगा कि कैसे वे कोई भी परिणाम दिलवाने में सक्षम नहीं है। यद्यपि वे यह मानना चाहते हैं कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों में उनकी जीत केवल उनके खाते में थी, अगर कोई लोकसभा चुनाव में पड़े मतों को देखे, तो वह संख्या अलग कहानी बताती है। श्री गाँधी ने भारत के लिए कोई भी स्पष्ट दृष्टिकोण या नए मार्ग की घोषणा नहीं की। उनकी न्याय योजना की बिना किसी विचार के घोषणा कर दी गई और उनके सलाहकार सैम पित्रोदा ने उनकी कोई मदद नहीं की, नियमित अंतराल पर उनके मुँह से गोले ही बरसते रहे। प्रियंका गाँधी ने वोटों को तोड़ने में थोड़ी कामयाबी हासिल की, जैसा कि उन्होंने कहा था, लेकिन यह सपा-बसपा गठबंधन के लिए हुआ।
  1. हिंदी के गढ़ और पश्चिमी भारत: हिंदी के गढ़ और महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों की जनता के दिलों में अभी भी श्री मोदी हैं। उन्होंने तीन राज्यों में भाजपा को मत देकर बाहर कर दिया था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में मतदाताओं ने बाहर निकलकर मोदी के लिए बहुत बड़ी संख्या में मतदान किया, जो आज देश के सबसे बड़े नेता हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने भी श्री मोदी का स्वागत किया है। विभाजनकारी राजनीति को मतदाताओं ने नकार दिया है और यह आने वाले वर्षों में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है। 
  1. बुनियादी ढाँचा: भारत के बुनियादी ढाँचे में सुधार दिख रहा है। नई सड़कों के निर्माण से लेकर हवाई अड्डों तक और बेहतर बिजली आपूर्ति से लेकर सुपर-फास्ट ट्रेनों तक, सभी के लिए बेहतर बुनियादी ढाँचे की दिशा का मार्ग दिख रहा है। वर्ष 2014 से पहले, हमने अपने दैनिक जीवन के एक हिस्से के रूप में "लोड शेडिंग" को स्वीकार कर लिया था। जो अब बंद हो गया है। मतदाताओं का मानना है कि अभी और भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है और उन्होंने श्री मोदी को इसके लिए एक और कार्यकाल का समय दिया है ताकि जो काम शुरू हुए थे, उन्हें पूर्णत्व की ओर ले जाया जा सकें। 
  1. मिलियन समर्थन: वर्ष 2019 में पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले 80 मिलियन नए मतदाताओं ने मोदी के पक्ष में भारी मतदान किया। इन युवा भारतीयों का अयोध्या या राम मंदिर से कोई संबंध नहीं है, लेकिन श्री मोदी में, ये मिलियन युवा एक ऐसा नेता देख रहे हैं, जो उनके सपनों का भारत दिलवा सकता है। वे अपनी जीवन शैली में समग्र सुधार देखते हैं, और वे भारत के प्रति वैश्विक रवैये में परिवर्तन देख सकते हैं। 
  1. आतंक पर सख्त: पुलवामा हमले और बालाकोट हवाई हमले का परिणाम सभी के सामने हैं। अगर पुलवामा हमले के बाद विपक्ष ने सरकार की आलोचना नहीं की होती, तो उन्हें बालाकोट हवाई हमलों के बाद धूल चाटनी नहीं पड़ती। मतदाता यह स्वीकार करता है कि केवल श्री मोदी को कड़ी टक्कर देने की हिम्मत थी और वे ऐसा नेता चाहते हैं जो देश की सीमाओं की रक्षा कर सके। 
  1. ग्रामीण अर्थव्यवस्था: हालाँकि विपक्षी दल चाहेंगे कि हम दूसरे तरीके को सही मानें लेकिन तेजी से आगे बढ़ रही उपभोक्ता वस्तुओं की कंपनियों और ऑटोमोबाइल कंपनियों के आँकड़े ग्रामीण भारत में अपनी बिक्री में उल्लेखनीय सुधार दिखाते हैं। कुछ भी हो, श्री मोदी ने गरीबों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। न्याय योजना आसमान में एक कौड़ी भर थी, जबकि किसानों को सीधे लाभ हस्तांतरण ने बदलाव दिखा दिया। अधिक करने की आवश्यकता है और श्री मोदी निश्चित रूप से अपने एजेंडे में शीर्ष पर होंगे। 
  1. राजवंशीय राजनीति खारिज: भले ही काँग्रेस को 2014 के चुनाव के बाद से कोई विकास नहीं दिख रहा है। लेकिन काँग्रेस नेताओं को इस बारे में गंभीर आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है कि क्या उन्हें "परिवार" के सदस्य को नेता बनाये रखा जाना चाहिए या फिर स्वयंसेवकों को फिर से सक्रिय करने के लिए नए खून का संचार करना चाहिए। 22 विपक्षी दलों के नेता जो अपनी पार्टियों पर अपने परिवार की पकड़ को बनाए रखने के लिए दृढ़ थे, उन्हें भी खारिज कर दिया गया है। क्या अब ये नेता अपने काँटेदार पैतरे दिखाना शुरू कर देंगे क्योंकि उनके मतभेद खुलकर सामने आएँगे या फिर भी वे एक मंच पर हाथ से हाथ मिला रहने में सक्षम होंगे, यह दिखाने के लिए कि वे एक दूसरे से कितना प्यार करते हैं!
विपक्षी नेता चुनाव प्राधिकरण बदलने की माँग, पक्षपातपूर्ण चुनाव आयोग, नकारात्मक चुनाव और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की वापसी जैसे बहाने बनाते रहेंगे, लेकिन वे भी थोड़े समय में ही महसूस करेंगे कि ये खुद को समझाने के बहाने हैं। कोई भी मतदाता उनके किसी भी बहाने पर विश्वास नहीं करता। विपक्षी नेताओं के लिए, आत्मनिरीक्षण का समय आ गया है।
श्री मोदी के नेतृत्व में भारत को सर्वोत्कृष्ट मिलना अभी शेष है।
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लेखक कार्यकारी कोच और एंजेल निवेशक हैं। राजनीतिक समीक्षक और टीकाकार के साथ वे गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। वे 6 बेस्ट सेलर पुस्तकों – द ब्रांड कॉल्ड यू- The Brand Called You रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and द बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम अ मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं। 
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  • अनुवादक- स्वरांगी साने – अनुवादक होने के साथ कवि, पत्रकार, कथक नृत्यांगना, साहित्य-संस्कृति-कला समीक्षक, भारतीय भाषाओं के काव्य के ऑनलाइन विश्वकोष-कविता कोश में रचनाएँ शामिल। दो काव्य संग्रह- काव्य संग्रह “शहर की छोटी-सी छत पर” मध्य प्रदेश साहित्य परिषद, भोपाल द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित और काव्य संग्रह “वह हँसती बहुत है” महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित।

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