Monday, 6 May 2019

राष्ट्रवादी होना और ऐसा कहने में गर्व होना



चुनाव अपने लंबे वृत्त को पूरा करते हुए समापन पर आ गए हैं। इन चुनावों को सबसे अधिक दोषारोपण करने वाले चुनावों के रूप में देखा जा सकता है और बीते कुछ दशकों में मैंने तो हर राजनेता को इतनी व्यंग्य उक्तियों से भरे हुए भाषण देते पहले कभी नहीं देखा था,जितना इस बार देखा।
इसके अलावा अभी तक जितना "राष्ट्रवाद" या "राष्ट्रवादी"  वाक प्रचार इन चुनावों का हिस्सा बना वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। भाजपा के सभी विरोधी दल, पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार इस शब्द को भाजपा और उसके सभी अनुयायियों पर आरोप के रूप में फेंक रहे हैं जैसे कि राष्ट्रवादी होना कोई अपराध है और जिसे हर हाल में लताड़ा जाना चाहिए, अपमानित करना, ताने मारना, उपहास करना और दंड दिया जाना चाहिए।
राष्ट्रवाद आधुनिक आंदोलन है। पूरे इतिहास में हम देखते हैं कि लोग अपनी पैदाइशी मिट्टी, अपने माता-पिता की परंपराओं, और स्थापित क्षेत्रीय प्राधिकारी से जुड़े होते हैं। अमूमन 18 वीं शताब्दी के अंत तक राष्ट्रवाद सार्वजनिक और निजी गठन की भावना के रूप में पहचाना जाने लगा। राष्ट्रवाद को कई बार ग़लती से राजनीतिक व्यवहार का कारक माना जाता है।                                                                                            
राष्ट्रवादी व्यक्ति वह होता है जिसकी उसके राष्ट्र के साथ पहचान दृढ़ होती है और जो राष्ट्र के हितों का दृढ़ता से समर्थन करता है।
दुनिया भर में राष्ट्रवादी आंदोलनों ने व्यक्ति को उसकी पहचान बनाने और राष्ट्रीय हित को बनाए रखने में मदद की है। राष्ट्रवादी आंदोलनों की पहली लहर उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में यूरोप में क्रांतियाँ लेकर आईं, जिनके चलते जर्मनी और इटली का एकीकरण हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में पूर्वी और उत्तरी यूरोप के साथ ही जापान, भारत, आर्मेनिया और मिस्र में इसकी दूसरी लहर उठी। भारत का स्वतंत्रता आंदोलन भी राष्ट्रवादी आंदोलन था जैसे दुनिया के अधिकांश अन्य हिस्सों का उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन।
पूरे विश्व में राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादी आंदोलन तेजी से बढ़ रहे हैं।
यह डोनाल्ड ट्रम्प के चुनाव से हुआ, जिसमें उन्होंने कहा कि वे निश्चित रुप से फिलीपींस के राष्ट्रपति डुटर्टे के राष्ट्रवादी हैं। तुर्की में राष्ट्रपति एर्दोगन से लेकर इंडोनेशिया में राष्ट्रपति जोकोवी तक, जापान में प्रधान मंत्री शिंजो आबे से लेकर इज़राइल में प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू तक। दुनिया भर के और भी कई देशों में और अधिक राष्ट्रवादी नेता चुने जाएँगे। चीनी और रूसी नेता अपने कम्युनिस्ट देशों में अपने लोगों की रैली निकालने के लिए राष्ट्रवाद के रूप का उपयोग करते हैं।
महत्वपूर्ण कारक जिसे समझा जाना चाहिए और जिसका अध्ययन होना चाहिए वह यह है कि ऐसा क्या है, जो इस तरह के राष्ट्रवादी आंदोलन लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई प्रक्रियाओं के माध्यम से दुनिया भर में हो रहे हैं। ये आंदोलन फासीवादी या तानाशाही आंदोलन नहीं हैं जो बंदूक की ताकत पर हुए हैं।
क्या यह बदलाव इसलिए हो रहा है क्योंकि शासन के अन्य सभी प्रकारों ने उन लोगों को कुछ नहीं दिया है जिसका उन्होंने आम लोगों से वादा किया था जो कि बड़े पैमाने पर दुनिया भर के अधिकांश देशों में थे। उनकी पैदाइशी भूमि के साथ पहचान उनकी निश्चितता है जिससे कोई भी राजनेता आम आदमी को दूर नहीं कर सकता है और इसलिए यह नागरिकों की राष्ट्रवादी मानसिकता का हर संभव कारण है।
द इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने 4 मई 2019 के अंक में "राष्ट्रवादी जोश की वजह से नरेंद्र मोदी का दूसरा कार्यकाल सुरक्षित रहने की संभावना है" शीर्षक से लेख छापा है। लेख के लेखक को मोदी सरकार के प्रदर्शन या उनके द्वारा शुरू की गई अन्य तमाम सामाजिक विकास योजनाओं में कोई दिलचस्पी नहीं है। उनके पास दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना आयुष्मान भारत की सराहना करने का कोई कारण नहीं है, जिससे 500 मिलियन लोग कवर होने वाले हैं। भारत ने विश्व में जो प्रगति की है, न तो उनकी रुचि उसमें है न ही अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में भारत की सफलताओं को लेकर है।
द इकोनॉमिस्ट की तरह कई अन्य उदारवादी पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार खुद को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि भाजपा की जीत का कारण और कुछ नहीं, केवल राष्ट्रवाद होगा। राष्ट्रवाद की उनकी सुविधाजनक व्याख्या संरक्षणवाद, अलगाववाद, विदेशी लोगों को पसंद न करना (जेनोफोबिया) और कुलीन विरोधी भाषणबाजी है। इन पत्रकारों के लिए कुछ मायने रखता है तो यह कि उनके और उनकी दुलारी जनजाति को क्या मिलता है। भारत की जनता को ध्यान में रखकर संधारित किए गए अभूतपूर्व कार्यक्रम इन पत्रकारों और राजनीतिक टिप्पणीकारों के लिए कोई मायने नहीं रखते है क्योंकि ऐसे कार्यक्रमों से उन्हें कोई सीधा लाभ नहीं होता है।
राष्ट्रवाद की सदियों पुरानी नकारात्मक परिभाषाओं और धारणाओं को बदलना होगा। राष्ट्रवादी होने की सकारात्मकताओं को स्वीकार करने की ज़रूरत आन पड़ी है और देश को मजबूत बनाने में राष्ट्रवाद की भूमिका को मान्यता दी जानी चाहिए।
जो राष्ट्र से संबंधित है वह सब राष्ट्रवाद है और इसका राष्ट्र के किसी धर्म या आर्थिक समूह से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए। इसे इससे भी कोई मतलब नहीं है कि कौन बहुसंख्यक है या कौन अल्पसंख्यक है। मुझे तब हैरानी होती है जब ऐसे पत्रकारों और राजनीतिक टीकाकारों द्वारा भारत में राष्ट्रवाद को एक धर्म से जोड़ा जाता है।                                                                                                  
ये पत्रकार और राजनीतिक टीकाकार बड़ी आसानी से निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि इन चुनावों में राष्ट्रवादी जोश चाबुक की मार की तरह लोगों पर पड़ेगा और नरेंद्र मोदी को फिर दूसरी बार सत्ता में लाने में मददगार होगा। चूँकि यह राष्ट्रवादी आंदोलन श्री मोदी और भाजपा को शानदार जीत के साथ सत्ता में वापसी दिलाने में मदद करेगा, इसलिए इसे ग़लत और अस्वीकार्य के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। क्या कुछ राजनीतिक दलों की जरूरतों के कारण उनका एजेंडा संचालित किया जा रहा है या वे वास्तव में शक्तिशाली चौथे स्तंभ के जिम्मेदार सदस्यों के रूप में कार्य कर रहे हैं?
अधिकांश भारतीयों की मूक सहमति उन विचारों (और संभवतः उनके वोटों के रूप में भी) उन लोगों के खिलाफ मजबूत हो रही है जो देश में अस्थिरता लाने की कोशिश कर रहे हैं। यह सोच सीमा पार के उन आतंकवादियों के खिलाफ हो सकती है जो समय-समय पर भारत चोट पहुँचाते हैं और पहली बार भारतीयों को ऐसा कोई मजबूत नेता दिख रहा है जिसे पछाड़ना मुश्किल है। यह उन लोगों के खिलाफ भी हो सकता है जो “टुकडे - टुकडे” नारे का उपयोग कर भारत को तोड़ने की बात करते हैं। या यह उन लोगों के खिलाफ हो सकता है जो राजद्रोह करने को तैयार हैं और जो इतना कहकर नहीं रुकते बल्कि यह भी कह रहे हैं कि वे देशद्रोह के खिलाफ कानून को हटा देंगे।
जो साफ़ दिख रहा है वह यह कि भारत के नागरिक कह रहे हैं कि उन्होंने पिछले सात दशकों में राजनेताओं की दोगली बातें बहुत सुन ली है। वे इस तरह के कथनों से भी आज़ीज आ गए हैं, जैसे
"हम इस तरह के घृणित कार्य की कड़ी निंदा करते हैं" या "हम नागरिकों के लचीलेपन का सम्मान करते हैं।"
इन सभी पत्रकारों और राजनीतिक टीकाकारों से मेरा एक ही सवाल है कि राष्ट्रवादी होने में क्या गलत है?
मैं एक राष्ट्रवादी हूँ और ऐसा कहते हुए मुझे गर्व होता है।
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लेखक कार्यकारी कोच और एंजेल निवेशक हैं। राजनीतिक समीक्षक और टीकाकार के साथ वे गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। वे 6 बेस्ट सेलर पुस्तकों – द ब्रांड कॉल्ड यू- The Brand Called You रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and द बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम अ मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं।
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