संयुक्त राष्ट्र महासभा सप्ताह समाप्त हो चुका है, और अब पाकिस्तान के चयनित प्रधानमंत्री, इमरान खान की नाट्य तकनीक (थियेट्रिक्स) का विश्लेषण किया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में इमरान खान के भाषण में दिखाई दी मायूसी, शेखी और परमाणु खतरे की खुली धमकी बेमिसाल है, जिसकी हर कोई निंदा कर रहा है।
इमरान खान का असली एजेंडा क्या था और वे किस बारे में बात करना चाह रहे थे? वे अपने प्रलापमय भाषण में किसे संबोधित कर रहे थे? वाक्पटुता का नमूना देता उनका भाषण गंदगी से भरा था, वे बेहद हताशा और गुस्से में गालियाँ बक रहे थे। किसी ने श्री खान के भाषण का सार प्रस्तुत किया तो उसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी का नाम 12 बार लिया था, कश्मीर का 25 बार, आतंकवाद का 28 बार और इस्लाम का 71 बार उल्लेख किया था! हत्याकांड जैसे शब्दों का प्रयोग तो पूरी तरह अस्वीकार्य है।
पाकिस्तान के नेताओं और काँग्रेस दल ने अनुभव किया है कि जब कुछ भी काम नहीं करता हो, तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) पर दोष मढ़ दो। चूँकि श्री खान और उनके आगे-पीछे घूमने वाले आरएसएस द्वारा किए जा रहे कामों के बारे में कुछ नहीं जानते-समझते, ऐसे में उनके द्वारा संयुक्त राष्ट्र में आरएसएस का मामला उठाना बहुत ही हास्यास्पद था। भारत में काँग्रेस दल के नेताओं से वे जो सुनते हैं वे केवल उसे ही तोता ज़ुबानी उगल देते हैं।
हिटलर और मुसोलिनी की बात करना और उनकी तुलना आरएसएस से करना और उनका संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रभामंडल वाले मंच से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इसके बारे में चेतावनी देना, विश्व के अधिकांश नेताओं पर इसका बहुत दीन प्रभाव पड़ा। सभी को इसका बहुत आश्चर्य हुआ कि किसी देश का प्रधानमंत्री उसे दिए समय में उन्मत्त होकर अनर्गल प्रलाप कर रहा था और दुनिया को धमकाते हुए मदद की गुहार लगा रहा था!
जिहाद में लिप्त आतंकवादियों को पाकिस्तान में सेना के समर्थन को खान सरेआम प्रोत्साहित करते हैं और उसे सही भी बताते हैं, इतना ही नहीं आतंकवादी संगठनों को अनुमति देने और बढ़ावा देने की बात करते हैं और इसलिए पाकिस्तानी सेना भारत में आतंकवादी भेजना शुरु करती है। साथ ही वे निष्पक्ष अपील भी करते हैं कि कैसे इस्लाम शांति वाला धर्म है और कैसे आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का सबसे बड़ा पीड़ित पाकिस्तान है।
अरबी भाषा के शब्द जिहाद का शाब्दिक अर्थ है प्रयास करना या संघर्ष करना, खासकर उत्तम लक्ष्य के लिए कोशिश करना, लेकिन वही कब आतंकवाद, विनाश, बदला और मृत्यु का पर्यायवाची शब्द हो गया?
रोचक बात यह है कि जिस तरीके से श्री खान ने इस्लाम के विश्व नेता पद को अपनी ओर करने की कोशिश की और जब वे उसे समझा रहे थे, उनका स्वर बड़ा हताश था कि कैसे इस्लाम का पालन करने वाला तब अपमानित महसूस करता है जब दुनिया उनके धर्म के ख़िलाफ़ कुछ कहती है। यह दीगर बात है कि जो उनकी बात में विश्वास नहीं करता उसे वे काफ़िर कह देते हैं। उन्होंने एक भी बार यह नहीं कहा कि जो धर्म का पालन करते हैं उन्हें अपने में कोई बदलाव लाना चाहिए। उन्होंने बड़ी आसानी से 9/11 की समस्या का पूरा दोष अन्य समस्याओं और उसके बाद पूरी दुनिया पर डाल दिया। उन्होंने कट्टर इस्लामिक आतंकवाद जैसे शब्दों के इस्तेमाल की कड़ी निंदा की, लेकिन एक बार भी यह नहीं कहा कि जिहादियों पर लगाम कसने की जवाबदारी उनके जैसे नेताओं पर ही है।
एक दिन पहले उन्होंने एशियाटिक सोसाइटी में बिलकुल ऐसा ही भाषण दिया था जैसा उन्होंने महासभा में दिया और उनके प्रति निष्पक्ष रहकर कहा जाए तो उन्होंने ही बताया कि एशियाटिक सोसाइटी का उनका भाषण अभ्यास भाषण था। कश्मीर, इस्लाम को छोड़ दिया जाए तो उनके पास कहने और दुनिया को धर्म के प्रति कितना कुछ करने की आवश्यकता है, इस बारे में बताने के लिए नया कुछ नहीं था।
उससे पहले की इमरान खान की अपनी तस्बीह (सुमिरनी माला) के साथ राष्ट्रपति ट्रम्प से बात करते हुए की तस्वीर बड़ी विचारणीय है। उनकी देहयष्टि, उनके हाव-भाव में घबराहट बड़ी दूर थी। वे सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना करते हुए दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति से यह उम्मीद लगाए थे कि कोई चमत्कार होगा। राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ उनकी पहली मुलाकात, जो सऊदी अरब के युवराज की अनुशंसा पर हुई थी, के बाद वे ऐसी कोई सकारात्मक टिप्पणी सुनने के लिए बेताब थे, जिसे वे "विश्व कप जीतने" की तरह अपने घर ले जा सके।
उन्होंने एक भी बार पाकिस्तान की अविश्वसनीय गरीबी, बिजली, पानी, ईंधन और खाद्य आपूर्ति की भारी कमी के बारे में बात नहीं की। उन्होंने अपने देश की अशिक्षा और बहुत खराब स्वास्थ्य रिकॉर्ड के बारे में बोलना उचित नहीं समझा। उन्होंने बलूचिस्तान की निर्लज्ज दलीलों और पाकिस्तान में अन्य दमित अल्पसंख्यकों की बात की उपेक्षा की। उन्होंने भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के चलते अपने देश के दिवालिएपन की बात नहीं की और ऐसे जताया जैसे भारत के वित्तीय कार्रवाई टास्क फोर्स (एफएटीएफ) द्वारा पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट किए जाने की संभावना ही दोषी हो।
इमरान खान खाली हाथ पाकिस्तान लौट गए। उनके समर्थक और बड़ी संख्या में पत्रकार उनकी भारत यात्रा से चमत्कार की उम्मीद कर रहे थे। उन्होंने उन्हें विश्वास दिलाया था कि धारा 370 रद्द करवाने के अलावा उन्हें अन्य कुछ भी स्वीकार्य नहीं होगा! न केवल उन्हें विश्व के नेताओं से कुछ मिला, जिनमें से कोई भी उनके एक शब्द तक पर विश्वास नहीं करता, इतना ही नहीं सऊदी अरब के जिस उधार के विमान पर सवार होकर वे गए थे उसने भी तकनीकी ख़राबी का हवाला देकर वापस ले जाने से इनकार कर दिया और उन्हें व्यावसायिक विमान से घर जाना पड़ा।
श्री खान को विमान उधार देते समय, सऊदी अरब ने भारत को आश्वासन दिया कि वे यह सुनिश्चित करेंगे कि भारत को तेल की किसी भी तरह की कमी का सामना नहीं करना पड़ेगा। सऊदी अरब ने चोट के साथ अपमान को और जोड़ दिया है जिसके तहत हाल ही में उसने भारत में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश पैकेज की घोषणा की है। (श्री खान इसकी केवल 25% राशि पाने के लिए बड़ी राजी-ख़ुशी पूरा पाकिस्तान सऊदी अरब को बेच सकते हैं।)
इमरान खान को एक ही बार में पूरी तरह से आतंकवाद का खात्मा करने की ज़रूरत है लेकिन ऐसा करना अब कठिन है क्योंकि उन्होंने अपनी ताकतों के ही पर कतर दिए हैं। उन्हें अपनी सेना से सौदा करने की ज़रूरत है, जो अभी भी भुट्टो की भारत को "हजार घावों" से आहत करने की धमकी से प्रेरित लगती है। यदि सेना उनकी तरफ़ है तो उन्हें आतंकवाद के अपने कारखाने बंद करने की आवश्यकता है। इससे न केवल विश्व, बल्कि उनके अपने लोग भी राहत की साँस लेंगे, जो उनके ही द्वारा दिए जा रहे इन प्रवेशों से सबसे ज़्यादा पीड़ित है।
इमरान खान, अगर वास्तव में विश्व नेता के रूप में कद हासिल करना चाहते हैं तो उन्हें पाकिस्तान के लोगों के लिए काम करना चाहिए। उन्हें अपने देश के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और उस विश्वसनीयता को वापस लाना चाहिए, जिसमें तीन दशक पहले उनका देश, विश्व के साथ आनंद लेता था।
उन्हें भारत के साथ प्रतिस्पर्धा करने और धमकी देने के बजाय भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। मददगार भारत उनके टूटे और दुर्बल देश के लिए बहुत कुछ कर सकता है। व्यापार फिर से शुरू किया जाना चाहिए, और लोगों के बीच आपसी बातचीत में सुधार लाना चाहिए। सुरक्षित पाकिस्तान उन लाखों पर्यटकों के लिए दरवाजे खोल सकता है जो पाकिस्तान में घूमना पसंद करेंगे। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना होगा।
केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर पाकिस्तान ही राष्ट्रों के बीच सम्मानजनक स्थान पाने की उम्मीद कर सकता है।
क्या चुने गए प्रधानमंत्री इमरान खान को सेना द्वारा नचाया जा रहा है? या मुस्लिम विश्व के नेता उन्हें नचा रहे हैं? या कट्टरपंथी इस्लामी आंदोलन के नेता? या वे ऐसा प्लेबॉय है, जिसने क्रिकेट विश्व कप जीता और कैंसर अस्पताल बनाया? या तहरीक-ए-इंसाफ के नेता, जिनके बारे में पाकिस्तान ने सोचा था कि वह उन्हें पिछले नेताओं से मिली सभी चुनौतियों से मुक्ति दिलाएगा? या क्या वे केवल " डूबो देने वाले (इम द डिम)" हैं , जैसाकि कुछ राजनीतिक टिप्पणीकारों द्वारा उन्हें आमतौर से कहा जाता है?
क्या असली इमरान खान कृपा कर गिने जाने के लिए खड़े होंगे?
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लेखक कार्यकारी कोच, कथा वाचक (स्टोरी टेलर) और एंजेल निवेशक हैं। वे अत्यधिक सफल पॉडकास्ट के मेजबान हैं जिसका शीर्षक है - द ब्रांड कॉल्ड यू- The Brand Called You, राजनीतिक समीक्षक और टीकाकार के साथ वे गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। वे 6 बेस्ट सेलर पुस्तकों के लेखक हैं और कई ऑनलाइन समाचार पत्रों के लिए लिखते हैं।
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- अनुवादक- स्वरांगी साने – अनुवादक होने के साथ कवि, पत्रकार, कथक नृत्यांगना, साहित्य-संस्कृति-कला समीक्षक, भारतीय भाषाओं के काव्य के ऑनलाइन विश्वकोष-कविता कोश में रचनाएँ शामिल। दो काव्य संग्रह- काव्य संग्रह “शहर की छोटी-सी छत पर” मध्य प्रदेश साहित्य परिषद, भोपाल द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित और काव्य संग्रह “वह हँसती बहुत है” महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित।
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