Friday, 21 December 2018

चुनाव 2019 - भाजपा की वृद्धि और विकास बनाम काँग्रेस की कर्ज़ माफ़ी


 


भाजपा ने चुनावों  में 3 प्रमुख राज्यों को गवाँ दिया है और काँग्रेस ने अचानक-से थोड़ी नई गति हासिल की है। आइए देखते हैं कि लोकसभा चुनाव के अगले दौर से पहले महत्वपूर्ण चुनौतियों से किस तरह से रूबरू होने की आवश्यकता है।

क्या अगला चुनाव देश की आर्थिक सफलताओं को लेकर होगा? क्या वह जीएसटी को लेकर होगा? क्या वह विमुद्रीकरण को लेकर होगा या वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की अविश्वसनीय सफलता पर होगा, जिस पर बहुत बड़ी संख्या में भारतीयों को गर्व है?

जहाँ तक आर्थिक सफलता का सवाल है विपक्षी दल और ख़ासकर राहुल गाँधी जानते हैं कि उनके पास प्रधानमंत्री और भाजपा से प्रतिस्पर्धा करने का कोई मार्ग नहीं है और न ही वे पिछले 4 वर्षों की तमाम उपलब्धियों पर सवाल उठा सकते हैं।

इसलिए, एकमात्र बात जो वे कर सकते हैं, वह है कि किसी भी तरह से पूरी कहानी ही बदल दी जाएँ और यह कहानी कैसे बदली जाएगी? गुजरात दंगों के पिछले सभी आरोपों से काम नहीं बना। श्री मोदी का नाम बदनाम करने और उन पर लाँछन लगाने से भी मतदाताओं का मानस बदलता नहीं दिखा है। प्रधानमंत्री के ख़िलाफ व्यक्तिगत आरोप और वक्रोक्तियाँ भी काम न आ पाईं।

वे चाहते थे कि किसी भी तरह से भ्रष्टाचार के आरोप उन पर लग जाएँ। राफेल सौदे से काँग्रेस को बड़ी उम्मीदें थीं, हालाँकि विपक्षी नेताओं ने इस पर ‘मिले सुर मेरा-तुम्हारा’ नहीं कहा था और वैसे भी देश के उच्चतम न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया है। राहुल गाँधी और उनके करीबी माने जाते लोग इस सरकार के किसी भी कैबिनेट मंत्री के खिलाफ़ भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं खोज पाए हैं,

इसलिए, उन्होंने उसी बात का सहारा लिया है जिसे काँग्रेस ने हमेशा बख़ूबी किया है।

कृषि ऋण माफ़ कर देना और उसके लिए राज्य के राजकोष का प्रयोग करना।

कृषि ऋण माफ़ कर देना बहुत अच्छी किस्सागोई है और यह बड़ा एजेंडा बनने जा रहा है जिसका अगले कुछ महीनों में राहुल गाँधी जोर-शोर से प्रचार करने वाले हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने पहला निर्णय यह लिया कि ऋण माफ़ करने की घोषणा की जाए। यह दीगर बात है कि कर्नाटक राज्य में 44,000 करोड़ रुपए के ऋण माफ़ किए गए लेकिन केवल 800 किसानों को उसका फायदा हुआ जबकि 2.50 लाख रुपए वाले बड़ी संख्या में गरीब किसान श्री गाँधी की योजनाओं से अमीर किसानों को मिलने वाले बड़े पैमाने के फायदे के बाद अपनी बारी आने का धैर्यपूर्वक इंतजार कर रहे हैं। इन अन्य 3 राज्यों की कहानी भी कुछ अलग नहीं होगी और अमीर किसान सारा पैसा उड़ा लेंगे।

श्री गाँधी समझ नहीं सकते हैं, ही वे इस बात की परवाह करते हैं कि कर्ज़ माफ़ी के बाद उन राज्यों की आर्थिक स्थिति वे किस तरह सुधार पाएँगे। वे जानते हैं कि जब काँग्रेस शासित इन राज्यों में भारी ऋण छूट की वजह से वित्तीय संकट गहराएगा, तो वे केजरीवाल वाले तरीके से उसका दोष प्रधानमंत्री के सिर मढ़ देंगे।

वे बड़े शहीदाना तरीके से यह कहने तक में नहीं सकुचाएँगे कि मैं तो किसानों की मदद करना चाहता था, लेकिन केंद्र सरकार को ही परवाह नहीं है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि ऋण माफ़ी बार-बार करते रहना होगी और हर थोड़े वर्षों में इन ऋणों को माफ करते रहना पड़ेगा। ऋण माफ़ी की उनकी घोषणा के बाद, साधन-संपन्न किसानों ने भी बैंकों का ऋण चुकाना बंद कर दिया है। इस ऋण छूट की बात करें तो इसका अनुमान लगभग 1.64 लाख करोड़ रुपए या लगभग 25 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर लगाया जा है! मुझे हैरानी नहीं होगी यदि वे किसी निश्चित सीमा से नीचे सभी आवास ऋण और वाहन ऋण भी माफ़ कर दें! आखिरकार जो परिवार ऋण लेते हैं उनसे उन्हें जो परेशानी होती है,वह भी इससे कुछ अलग नहीं है।

देश की सबसे शक्तिशाली शीर्ष नौकरी के दरवाजे तक पहुँचने के लिए श्री गांधी इतने बेताब हैं कि वे कुछ भी कर देने पर आमदा हैं। उनके आस-पास के सभी वरिष्ठ नेता इस समस्या को समझते हैं, लेकिन गाँधी घराने के युवा की अपरिपक्व महत्वाकांक्षा के सामने झुक गए हैं।

श्री गांधी अधिक नौकरियाँ ईज़ाद करने की किसी भी योजना के बारे में बात नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें पता ही नहीं है कि उनकी पार्टी सत्ता में आने के बाद नौकरियाँ कैसे दिलाएगी? अमेठी और रायबरेली की सारी परिस्थितियाँ और विकास की दयनीय स्थिति सभी देख चुके हैं। वे यह भी जानते हैं कि नई नौकरियाँ एक झटके में खड़ी नहीं हो सकती है।

राहुल गांधी की रणनीति काफ़ी सरल है। यदि वे जीत जाते हैं, तो उनके पास इन ऋण छूटों से होने वाले नुकसान की भरपाई करने उसे ठीक करने की कोशिश के लिए 5 साल हैं। यदि वे हार जाते हैं, तो समस्या का हल विजेता द्वारा किया जाएगा! राहुल गाँधी किसी भी कीमत पर चुनाव में जीत हासिल करना चाहते हैं भले ही उसके लिए बड़े परिश्रम से अर्जित देश के भंडार को ही क्यों न दाँव पर लगाना पड़ जाए।

राहुल गाँधी के लिए जीत के मायने यदि वे अपने महागठबंधन को समझाने में सक्षम हो जाते हैं तो केवल देश की शीर्ष नौकरी को पाने की संभावना भर नहीं है बल्कि अपने और अपने परिवार की आत्मरक्षा का एकमात्र अवसर भी है, जो लंबे समय से भ्रष्टाचार से जुड़े हर तरह के विवादों में फँसा हुआ है।

लोगों की याददाश्त बहुत कम होती है और अगर भाजपा के नेता अतीत की बात करना छोड़ दें तो चार राज्यों (कर्नाटक सहित) में इस साल हुई भाजपा की हार लोकसभा चुनावों में बहुत आसानी से जीत में बदल सकती है, उन्हें आगे देखना होगा और कर्जमाफी होते हुए भी विकास की बातें करना होंगी।

भाजपा को भी पूरी तरह से पता होना चाहिए कि लोकसभा चुनावों में श्री मोदी की वापसी थोड़ी कठिन है,सो उन्हें विकास और लंबे दौर तक प्रभावी स्थायी वृद्धि के एजेंडे को जारी रखना चाहिए।

  1. भाजपा को राहुल गाँधी की पहल को हथिया लेने की आवश्यकता है और यदि ज़रूरी हो, तो ऋण माफी की भी घोषणा कर देना चाहिए। यदि मतदाताओं को लुभाने का यही एकमात्र तरीका है, तो ऐसा भी किया जा सकता है। राहुल गाँधी कर्जमाफी का पूरा श्रेय लेने की हर संभव कोशिश करेंगे और बहुत मजबूती से उसका जवाब देने की ज़रूरत है। 
  2. मध्यम वर्ग के लिए आने वाले बजट में आयकर में छूट को लागू किया जाना चाहिए।
  3. एमएसएमई क्षेत्र के लिए ऋण की आसान शर्तों की आवश्यकता है और इसे देर-सबेर जल्द से जल्द उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
  4. कॉरपोरेट क्षेत्र को अपनी ओर आकर्षित करने की जरूरत है और इसके लिए कॉरपोरेट करों में कमी से मदद मिलेगी। जीएसटी को स्वीकार कर लिया गया है और कॉर्पोरेट क्षेत्र में यह अच्छे परिणाम दे रहा है।
  5. भाजपा के वरिष्ठ मंत्रियों का खुलकर सामने आना और अपनी उपलब्धियों के बारे में बात करते हुए देखना अच्छा  लग रहा है। पहले 4 वर्षों तक सरकार और अंग्रेजी भाषी प्रेस के एक बहुत बड़े वर्ग के बीच लगभग कोई संवाद नहीं था। अब यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि प्रेस से जुड़े सभी सदस्य अपनी व्यक्तिगत निष्ठा, पसंद-नापसंद के बावजूद भाजपा द्वारा लुभाये जाएँ।
  6. भाजपा के लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि वह शिवसेना की तरह अन्य प्रमुख गठबंधन सहयोगियों को अपने साथ वापस ला सकें। उन्हें इसे लेकर भी आशवस्त होना होगा कि अकाली दल, श्री पासवान और श्री नीतीश कुमार का समर्थन उन्हें मिलता रखना चाहिए। तमिलनाडु में राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं और इसलिए भाजपा को रजनीकांत के साथ गठबंधन करने की आवश्यकता है क्योंकि दूसरे सुपरस्टार कमल हासन काँग्रेस में चले गए हैं। आंध्र प्रदेश में केसीआर का दबदबा है और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि भाजपा इस राज्य के चुनाव से पूर्व गठबंधन में शामिल हो जाए।
  7. अंत में, सभी संबद्ध संगठनों को चुनाव जीतने की आवश्यकता को समझना होगा और इसलिए किसी भी तरह के पथांतरित मुद्दों फिर भले ही वह अति सतर्कता से जुड़ा हो, बचना होगा। इन नेताओं को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि वे किसी भी तरह का विवादास्पद वक्तव्य न दें और श्री मोदी के नेतृत्व में हुए सभी अतुलनीय विकासकार्यों के बारे में बात करने के एकल बिंदु एजेंडे पर ध्यान केंद्रित करें। अनावश्यक बयानबाजी बंद की जानी चाहिए।
बीजेपी के प्रबुद्ध मंडल (थिंक टैंक्स) को याद रखना होगा कि जैसे-जैसे हम चुनावों के करीब पहुँच रहे हैं धारणाएँ बहुत ज़्यादा महत्वपूर्ण होती चली जाती हैं।

ये उपाय भाजपा सरकार की सोच के खिलाफ हो सकते हैं, लेकिन जीतने के लिए ये जरूरी हैं और इसके लिए कठिन निर्णय लेने की जरूरत है।


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लेखक कार्यकारी कोच और एंजेल निवेशक हैं। राजनीतिक समीक्षक के साथ वे गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। वे 6 बेस्ट सेलर पुस्तकों – द ब्रांड कॉल्ड यू- The Brand Called You रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and द बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम अ मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं।

                                                       

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