Thursday 8 February 2018

1/30 को # पीओटीयूएस का # एसओटीयू भाषण


                                               
इस लेख के शीर्षक से उलझ गए न ?

यह लेख हाल ही में 30 जनवरी 2018 को संपन्न हुए "संयुक्त राज्य अमेरिका " के राष्ट्रपति के "स्टेट ऑफ़ द यूनियन" अभिभाषण, उसके प्रभाव और भारत में उसी तरह की जिन चुनौतियों का हम सामना कर रहे हैं, उन समानताओं के बारे में है।

राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने व्याख्यान में सारे सही तार छेड़े। मैंने सितंबर 2016 में एक लेख लिखा था, जिसकी रूपरेखा में मैंने कहा था कि क्यों मेरा विश्वास है कि ट्रम्प चुनाव जीतेंगे और मुझे अभी भी विश्वास है कि वे हर वह चीज़ मुहैया कराएँगे जिसका उन्होंने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था। अतीत में हमने जिस ट्रम्प को देखा था उससे यह अलग था। अब वह कम आक्रामक और अधिक समावेशी था। यह पूरी तरह साफ़ है कि उनके लिए वह सब जो मायने रखता है, वह उनका देश है।

उन्होंने अमेरिका में बड़े निवेशों के बारे में बात की (ऐप्पल, क्रिसलर और माज़दा जैसी कंपनियों को एक-एक कर बाहर कर दिया), करों में कमी, बुनियादी ढाँचे के लिए अमेरिकी डॉलर $ 1.3 ट्रिलियन का निवेश, आप्रवासन और रक्षा बलों तथा अन्य सेवाओं जैसे सीमा रक्षक, पुलिस बलों और अग्निशमन सेवा को मजबूत करने के बारे में कहा। उन्होंने अपने लंबे अभिभाषण में कई ऐसे लोगों का स्थान-स्थान पर उदाहरणों के साथ बहुत अच्छी तरह से जिक्र किया, जिन्हें ध्यानपूर्वक चुना गया था और इस व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया गया था। उन्होंने देश के नागरिकों की सुरक्षा की आवश्यकता पर पर्याप्त समय चर्चा की। उन्होंने अमेरिकी युवाओं की अगली पीढ़ी को प्रशिक्षित करने के लिए व्यावसायिक स्कूलों की स्थापना करने की बात की।

उन्होंने विस्तार से दवाइयों की लागत और इन लागतों को जल्द ही कम करने की अपनी योजना के बारे में बताया। उन्होंने उनके राष्ट्रगान और उनके राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करने की आवश्यकता का भी उल्लेख किया। उनकी बातों को रिपब्लिकन बेंच द्वारा लगातार और कई बार, हालाँकि, अनिच्छा से डेमोक्रेटिक बैंच द्वारा सराहा गया। उन्होंने देश से कई चुनौतियों का सामना करने के लिए द्विपक्षीय दृष्टिकोण की मांग की।

जैसे-जैसे वे कहते गए, मैं उसे भारतीय संसद के साथ समानांतर रूप से देखने की कोशिश करता गया। क्या हमारे प्रधानमंत्री संसद में ऐसा लंबा भाषण दे सकेंगे, जिसमें विपक्षी दलों की भारी चुनौतियाँ और हड़बड़ी कर अचानक किसी भी निर्णय पर पहुँचने वाले या वॉक आउट (बाहर चले जाना) करने वालों का झुंड आड़े न आएँ? क्या विपक्षी, इतनी सारे उपलब्धियों के लिए भले ही अनिच्छा से लेकिन प्रधानमंत्री और इस सरकार की कभी सराहना करते हैं?

विश्लेषक लगभग सभी चैनलों पर उनके भाषण को खंगालने में लगे थे और मुझे पूरा यकीन था कि सुबह के समाचार पत्रों में के पन्ने भी उनके भाषण पर अलग-अलग लोगों के पक्ष और प्रतिपक्ष के विचारों से भरे होंगे। आलोचक उस बारे में बात करेंगे जो उन्होंने कहा ही नहीं, बजाए इसके कि जो कहा गया, उस पर बात करें। यहाँ ऐसा राष्ट्रपति है जो अपने देश के लिए अपनी पूरी ऊर्जा लगाने पर एकाग्र हो रहा है और विश्व को नेतृत्व प्रदान करने से दूर जा रहा है। उनका "मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (अमेरिका को फिर से महान बनाओ)" नारा अपने मतदाताओं से अपील करता है लेकिन बाकी पूरी दुनिया के लोगों को हिला देता है, जो पहले नेतृत्व प्रदान करने के लिए अमेरिका की ओर देखने और यदि घटनाएँ योजनाओं के मुताबिक न हो, तो बाद में उसे कोसने के आदी हो गए हैं।

भारत में हम जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, वे बहुत अलग नहीं है। हमारे प्रधानमंत्री को भी इस तरह के उच्च अभिमानी नेताओं और पत्रकारों के छोटे समूह का सामना करना पड़ता है, जिनका एकमात्र उद्देश्य प्रधानमंत्री द्वारा किए गए हर कार्य और उनके द्वारा उच्चारित हर शब्द की आलोचना करना है। मोदी की चुनौतियाँ बहुत अधिक हैं। न केवल उनके सामने विपक्षी दलों के आक्रामक समूह हैं, जिनसे उनकी व्यापक असमानताओं के चलते द्विदलीय चेहरे को प्रस्तुत करने की उम्मीद नहीं कर सकते, वे व्यवसायों के समर्थन या नामकरण के बारे में कभी सोच भी नहीं सकते क्योंकि उन्हें कभी भी किसी व्यवसाय समूह के साथ नहीं पहचाना जा सकता है।

भारत को भी अपनी अर्थव्यवस्था में बुनियादी ढाँचे के लिए भारी निवेश की आवश्यकता है। हमें अधिक और बेहतर सड़कों और बेहतर सार्वजनिक यातायात व्यवस्था की आवश्यकता है। हमें और अधिक हवाई अड्डों और नदी परिवहन की आवश्यकता है। हमें स्वच्छ ऊर्जा और साफ़ हवा की जरूरत है। हमें बेहतर स्वास्थ्य देखभाल और सस्ती दवाइयों और बेहतर शैक्षिक सुविधाओं की जरूरत है। हमें आम जनता के लिए सस्ते आवास की ज़रूरत है। हमें अपनी सीमाओं पर अधिक नियंत्रण की आवश्यकता है (जी, हमारे यहाँ पूर्व दिशा के पड़ोसी देश से हमारे देश में अवैध आप्रवासियों की एक बड़ी समस्या है)। हमारे देश में हर साल 27 मिलियन बच्चों की संख्या जुड़ जाती है, ऐसे में हमें और अधिक नौकरियों के निर्माण के लिए मजबूत और अवधारित नीतियाँ चाहिए। मेक इन इंडिया के दर्शन के समर्थन और उसे प्रेरित करने की जरूरत है क्योंकि केवल तब ही हम अपने लोगों के लिए वर्धित मूल्य की नौकरियों को पैदा कर पाएँगे।

हमें अपने रक्षा बलों के लिए अधिक सम्मान की आवश्यकता है साथ ही हमें भारतीय सेना के खिलाफ़ दर्ज होने वाले बेहूदा एफ़आईआर को रोकना होगा। पश्चिमी सीमा के  हमारे अति आक्रामक पड़ोसी पर लगाम कसने के लिए हमें एक मज़बूत नीति बनाने की आवश्यकता है और इसके लिए हमें अपने शस्त्रों और सशस्त्र बलों को अधिक सुविधाएँ मुहैया कराने की ज़रूरत है। हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रमों का केवल इसलिए समर्थन नहीं करना है कि हम “मंगल ग्रह पर पहुँचना” चाहते हैं बल्कि इसलिए समर्थन देना है क्योंकि इस तकनीक से अधिक विश्वसनीय रक्षा क्षमताओं को विकसित करने में मदद मिलती है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हर आने वाले राजनेता ने "रोटी, कपड़ा, मकान" का वादा किया और अमीरों और गरीबों के बीच का अंतर बढ़ता चला गया। रोज़गार देने की आड़ में कतिपय लोगों के लिए बहुत कुछ किया गया, जिन्होंने विशाल धन जमा कर लिया। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हमारे देश के " वंचितों" जिनमें कृषि मजदूर, कारख़ानों में काम करने वाले श्रमिक, भारत के ग्रामीण और अर्ध शहरी इलाकों में रहने वाले लोग और वे लोग जिन्हें पिछली सरकारों की उदारता का कभी कोई लाभ न मिला हो, ऐसे  लोग आते हैं, उन्हें भी इस देश में अवसर उपलब्ध हो सकें क्योंकि यह देश हम सबका है।

हमें अपनी सहस्त्राब्दियों और उससे परे तक के लिए अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है, जो लोग अगले कुछ दशकों में हमारे देश को शक्ति देंगे। यह सब केवल मजबूत और प्रतिबद्ध नेतृत्व द्वारा ही संभव हो सकता है, जिसकी भले ही आलोचना हो, लेकिन वह तब भी तमाम कठिन सुधारों का पालन करवा सके।

हमें आवश्यकता है कि राष्ट्रों की मंडली में भारत को उसकी सही जगह मिल सकें। हमें दक्षिण एशिया और विश्व में नेतृत्व प्रदान करने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें एक मजबूत और स्थायी विदेश नीति की आवश्यकता है।

जैसा कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपना भाषण "भगवान भगवान भला करे अमेरिका का" के साथ समाप्त किया था,मुझे विस्मय होगा अगर प्रधान मंत्री मोदी ने ऐसा कोई कथन कहा तो क्या होगा! अगर उन्होंने ऐसा कहा तो उपद्रव मच जाएगा कि वे "कौन-से भगवान" का उल्लेख कर रहे थे और किन चुनिंदा श्रोताओं के लिए उन्होंने "आशीर्वाद" माँगा था।

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लेखक गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष हैं. वे ५ बेस्ट सेलर पुस्तकों – रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and द बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम अ मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं.

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