Saturday 3 February 2018

दावोस, पद्मावत, करनी सेना और आसियान शिखर सम्मेलन




हमारे देश में कोई भी क्षण जड़वत नहीं होता है। गौर से देखिए, पिछले कुछ दिनों में कितनी विविधता वाली रोचक और चौंका देने वाली घटनाएँ हुई हैं।
                                                               
दावोस में प्रधानमंत्री मोदी के बहुत प्रशंसनीय भाषण के बाद गड़बड़ी केवल दो बातों से हुई- काँग्रेस अध्यक्ष की बेजा ट्वीट, जो उन्होंने वाम पक्ष के प्रकाशन का हवाला देते हुए की और काँग्रेस नेताओं की वह माँग, जिसमें उन्होंने दावोस में किसानों और गरीबों की दुर्दशा पर चर्चा करने के लिए कहा, जबकि मैं आसियान देशों के दस नेताओं के पहली बार भारत में एक साथ मिलने के अवसर को भारत के लिए एक नई ऊँचाई की तरह देखना चाह रहा था।

आसियान के सारे नेता भारत -आसियान साझेदारी की 25 वीं वर्षगांठ मनाने के लिए भारत आये थे। पहली बार हमने गणतंत्र दिवस की परेड में 10 देशों के प्रमुखों को देखा था और भारत के लिए यह आसियान में आर्थिक और राजनीतिक दोनों तरह की महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाने का प्रमुख अवसर था। दावोस की सफलता के बाद, यह प्रधानमंत्री की एक और बड़ी सफलता है।

इसी समय, विवादास्पद फिल्म पद्मावत प्रदर्शित हुई जो करनी सेना के गुंडों (कुछ लोग उन्हें आतंकवादी कह रहे हैं और मुझे यह स्वीकार है) के लिए अधिक खुशी की बात थी, जो खुद को पूरे देश के विवेक के रखवाले मानते हैं और इसलिए उनके रास्ते में जो कुछ भी आता है उसे नष्ट करना शुरू कर देते हैं। इस वजह से भारी मात्रा में सार्वजनिक और निजी संपत्ति नष्ट हो गई और कई लोग घायल हो गए। कारों, बसों और दो पहिया वाहनों को आग लगा दी गई, सिनेमा थिएटर क्षतिग्रस्त कर दिये गये और इन परिसंपत्तियों के मालिकों के बारे में ज़रा कुछ सोचे बिना अनियंत्रित भीड़ ने दुकानों में तोड़-फोड़ कर दी।

विरोध निम्नतम स्तर पर चला गया जब उन लोगों ने गुरुग्राम में एक स्कूल बस पर हमला कर दिया। छोटे बच्चों की उन तस्वीरों ने जिसमें वे अपने स्कूल शिक्षकों की सुरक्षा में बस की ज़मीन पर डरे-सहमे नज़र रहे थे, पहले से ही राजनेताओं की चुप्पी से तंग, त्रस्त देश को चौंका दिया। क्या कोई यह सोचने से ख़ुद को रोक सकेगा कि इस तरह के हमले इन बच्चों के दिलो-दिमाग पर कैसा असर डालेंगे? क्या माता-पिता सोच पाएँगे कि भविष्य में उनके बच्चे जब भी स्कूल जाएँगे या स्कूल से लौटेंगे, सुरक्षित रह पाएँगे?
                                                               
करनी सेना के दंभी नेता इस तरह चिल्लम-पौ मचा रहे हैं कि उन्हें लग रहा है कि उन्हें महत्व मिल गया है (उम्मीद है कि यह बहुत कम समय का हो) और टीवी चैनलों पर इस बारे में उन्हें कोई मलाल हो, ऐसा भी नहीं दिख रहा है। वे लफ़फाज़ी करते हुए बड़े-बड़े भाषण दे रहे हैं कि वे किस तरह से राजपूतों और देश के भी रक्षक हैं और चूँकि उन्हें फिल्म पसंद नहीं आई इसलिए वे इसी तरह जन-जीवन को बाधित करते रहेंगे। करनी सेना के नेताओं से मैं पूछना चाहता हूँ कि उन्हें यह अधिकार किसने दिया कि वे मेरी ओर से बात करें?

और जले पर नमक छिटकने के लिए, काँग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह सवाल करते हैं कि पद्मावत जैसी फिल्में बनती ही क्यों हैं, जबकि भाजपा के कुछ विधायक इसे "राजनीतिक तिकड़म" करार देते हैं कि जिस वजह से करनी सेना के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हो रही! विरोधी दल के नेता प्रधान मंत्री से प्रतिक्रिया की अपनी एक ही कर्कश माँग लिए बैठे हैं, जबकि वे जानते हैं कि वे अभी दावोस से लौटे हैं और गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान वे आसियान नेताओं के साथ व्यस्त रहेंगे।  

टेलीविजन के सभी चैनल करनी सेना से जुड़ी ख़बरों को कवर कर रहे हैं और भूल गए हैं कि इन दिनों आसियान देशों के 10 नेता भारत में हैं। हमारी सोच बहुत कुछ शुतुरमुर्ग की तरह है, हम केवल अपने इलाके में क्या हो रहा है, इसे लेकर ही चिंतित रहते हैं। किसे परवाह है देश की और विश्व के नेताओं के सामने हमारी कैसी दयनीय तस्वीर उभर रही है, इस बात की। जब वे अपने देश लौटकर जाएँगे तो वे उनके यहाँ के व्यापारियों को वे भारत में निवेश करने के बारे में क्या बताएँगे? आसियान भारत के लिए केवल व्यापारिक अवसर है, बल्कि इन देशों से भारत के मज़बूत रिश्ते हमें चीन के साथ एक वैकल्पिक स्थान दिलाने में मददगार हो सकते हैं, उन देशों के सामने जो एशियाई प्रशांत क्षेत्र में कोई बड़ी शुरुआत करने जा रहे हैं।

केवल भारत में हम अपने देश के लिए खड़े रहने और विभिन्न देशों के दलों के सामने अपने देश के सम्मान की भावना का अभाव देखते है। अगर हम विपक्ष में हैं या यदि हम अपने लिए महत्ता हासिल करने का कोई अवसर देखते हैं तो हमारे सामने स्व-हित हमेशा पहले आता है। हमारे पत्रकारों को इस तरह की ख़बरों को लगातार "ब्रेकिंग न्यूज़"  की तरह चलाने से पहले यह भी सोचना चाहिए कि इस तरह की घटनाओं का बहुत अधिक कवरेज उन्मादी भीड़ को और अधिक बढ़ावा देता है। कई बार इस तरह के मूर्खतापूर्ण आंदोलनों को नजरअंदाज़ कर देने से यह सुनिश्चित हो जाता है कि ऐसे आंदोलन बहुत जल्दी बेजान हो जाएँगे। 

इस आघात से गुज़रे बच्चों के लिए यह भयावह अनुभव भूला पाना बहुत कठिन होगा। उनका डर समय के साथ कम होता जाएगा, संपत्ति को जो नुकसान हुआ है उससे भी किसी तरह उबरा जा सकेगा और जीवन फिर यथावत हो जाएगा, लेकिन तब तक गुंडों का कोई दूसरा दल किसी और वजह से,कि फलाँ कोई चीज़ उन्हें पसंद नहीं आई, लोहे के दस्ताने चढ़ा लेगा और बेहूदा तरीके से पूरी तरह अनुचित विनाश करने लगेगा।

आसियान नेता भी राजनेता हैं और उनके देशों के नेता हैं, उन्होंने भी बहुत अस्थिरता देखी है। वे रजत जयंती शिखर सम्मेलन में अपना अनुभव बता सकते हैं। लेकिन उनके पत्रकार अपने निर्वाचक में जो प्रभाव लेकर लौटेंगे उसे वे आसानी से भूला नहीं पाएँगे।

जब तक सभी राजनैतिक दल एक साथ नहीं आते और इन गुंडों को ताकत दिखाकर अपने आप को "अभिव्यक्त" करने से रोकने का निर्णय नहीं लेते तब तक पुलिस बल को दूसरे रास्ते तलाशने होंगे, अन्यथा भारत हमेशा बारूद के ढेर पर होगा जो कभी भी ज़रा-सी चिंगारी से फट सकता है, ज़रा किसी को ऐसा कुछ पसंद नहीं आया, जो राजनीतिक रूप से उसके लिए सुविधाजनक हो तो वह तीली लगा देगा।

आज काँग्रेस, भाजपा की आलोचना कर रही है। कल पाला बदल जाएगा और कोई और होगा। राजनीतिक दल सत्ता में आएँगे और सत्ता से बाहर हो जाएँगे, लेकिन हमारे राष्ट्र की सर्वोच्चता के साथ कभी भी समझौता नहीं होना चाहिए।

भारत केवल तभी सफल होगा जब देश के प्रत्येक नागरिक का विकास होगा और वह समृद्ध होगा।


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लेखक गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष हैं. वे बेस्ट सेलर पुस्तकोंरीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं.

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