Thursday, 22 February 2018

नीरव मोदी - राजनीति बंद करे और जवाबदेही तलाशे



नीरव मोदी घोटाला की ख़बर बने लगभग एक हफ़्ता हो गया है।
                                
छोटे पर्दे पर इसे लेकर सैकड़ों बार बहस हो गई। प्रिंट मीडिया पर इस बारे में हज़ारों स्तंभ छप गए। विशेषज्ञों के इस मुद्दे पर अपने विचार थे जिसे लेकर उन्होंने अपनी राय भी दी और अंगुलियाँ भी उठीं। मुख़बिरों ने दोहराया “मैंने तो पहले ही कहा था”। राजनेताओं और पत्रकारों ने पिछले दस सालों का भंडा फोड़ा, हर किसी के पास सूचनाओं के ऐसे तीर-कमान थे जो किसी ओर की पहुँच से दूर थे। अंतत: गुस्साए टीवी एंकरों ने “देश यह जानना चाहता है” के नाम से चिल्लाना शुरू कर दिया, उन्हें लग रहा था कि ऐसा करने से उन्हें अपने चैनल के लिए ज़्यादा दर्शक मिल जाएँगे।

इन सारी बहसों का मुख्य मुद्दा क्या है? काँग्रेस, भाजपा को दोषी मानती है और भाजपा, काँग्रेस को दोष देती है कि उसने अपराधी के साथ “मिली भगत” कर उसे 11,000  करोड़ रुपए चुराकर रफूचक्कर होने में मदद की। वे यह सब केवल इस उम्मीद में कर रहे हैं कि इससे मतदाताओं के दिलोदिमाग पर अपनी कुछ जगह बना सकें और उन्हें आने वाले कई चुनावों के लिए लुभा सकें, जो कि वर्ष 2018 में होने वाले हैं, जो लोकसभा चुनावों की ओर ले जाएँगे। क्षेत्रीय दलों ने भी इस उम्मीद में प्राइम टाइम का कुछ हिस्सा अपनी झोली में डालने की कोशिश की है कि वे भी अपने नाम थोड़े "मतदाता अंक"  दर्ज कर सकें।

मोदी के नाम का दुरुपयोग करने और आरोप मढ़ने से इस गंभीर मामले को सुलझाने में कोई मदद नहीं मिलेगी। यह केवल भाजपा को कठोर शब्दों में प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर करने जैसा है। राजनीतिज्ञों में से कोई भी इसके नतीजों और अन्य घोटालों से हमारी अर्थव्यवस्था की विश्वसनीयता और स्वास्थ्य पर होने वाले दीर्घकालिक प्रभावों पर विचार नहीं कर रहा है।

हर कोई यह भी जानता है कि आने वाले कुछ दिनों में इसका गुबार उतर जाएगा क्योंकि और कोई “ब्रेकिंग न्यूज़” ऊपर आ जाएगी और नीरव मोदी और उसका घोटाला पिछले पन्नों पर चला जाएगा या फिर भूला दिया जाएगा। इस सारे शोर में प्रभावित बैंक, लेखा परीक्षक, इन बैंकों के सतर्कता विभाग और नियामकों से उम्मीद की जाना चाहिए कि वे निगरानी, विनियमन और शासन के लिए जो काम सबसे पहले करना ज़रूरी है, उसे जारी रखेंगे। घोटाला करने वाला अपराधी नीरव मोदी और उसकी थैली के चट्टे-बट्टे इस बीच बड़े आराम से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में आलीशान होटलों में विराजमान हैं।

पर क्या कोई उन चुनौतियों को देख पा रहा है जिनका सामना बैकिंग प्रणाली कर रही है? 

यह हमारे राजनैतिक दलों के सामने इस तरह के गंभीर मुद्दों पर आपसी संकीर्ण मतभेदों को अलग रखने और देश हित में निम्नलिखित प्रश्नों पर एक साथ आने का समय है। उन्हें जवाबदेही तय करने और यदि कुछ बैंकों में लगता है कि कुछ सड़ा-गला है तो उसे कुचलने की आवश्यकता है।

1.    बैंक आधिकारिक की जवाबदेही- कोई अधिकारी कई पासवर्ड बनाकर उनके ज़रिए कैसे काम करता रहा और समझ पत्र (लैटर ऑफ़ अंडरस्टेंडिंग) की तारीख़ आगे कैसे बढ़ाता रहा? बैंक के ऐसे विनियमित वातावरण में वरिष्ठ अधिकारी कहाँ ग़ायब थे और कनिष्ठ कर्मचारी तब क्या कर रहे थे जब उन्हें दस्तावेज तैयार करने और अपलोड करने के लिए कहा गया? किसी के लिए यह कैसे संभव हुआ कि वह बनते कोशिश हर जांच और बैलेंस को बाईपास करता रहे, जिसे निश्चित ही सही जगह पर होना था? बैंक अधिकारी पहली बार पर्याप्त जमानत न होने पर भी एलओयू (लैटर ऑफ़ अंडरटेकिंग) जारी करने के लिए कैसे सहमत हो सकता है और नियमित अंतराल के बाद लगातार बिना किसी की नज़र में आए कोई इनका नवीकरण कैसे करता चला गया? अधिकारी इस तमाम लेन-देन को स्विफ़्ट (एसडब्ल्यूआईएफटी- सोसाइटी फ़ॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फ़ाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन) से कैसे छिपा पाएँ?

2.   बैंक प्रबंधन की जवाबदेही- पंजाब नेशनल बैंक भारत का दूसरा सबसे बड़ा पीएसयू (पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग- सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम) बैंक है। यह समझना मुश्किल है कि इन एलओयू की कोई रिपोर्ट नहीं बनी और कोर बैंकिंग प्रणाली में ये ऑर्डर (आदेश) नहीं दिख पाए? क्या अन्य बैंक कर्मचारियों के साथ भी साँठ-गाँठ थी जो पूरे रास्ते को एकदम सही तरीके से ढँकते चले जा रहे थे? बैंक के शीर्ष पर बैठे बड़े-बड़े  महानुभव क्या कर रहे थे? क्या निदेशकों के बोर्ड स्तर पर इतने बड़े जोखिम का प्रबंधन करने की कोई व्यवस्था नहीं थी? जमानत के साथ देनदारियों का मिलान करने की क्या कोई प्रणाली नहीं है?

3.    अन्य बैंकों के बैंक प्रबंधन की जवाबदेही- कई अन्य बैंक भी इन बड़ी रकमों की पुनर्वित्त में शामिल थे जो खुद होकर इस भंडाफोड का हिस्सा बने थे। ये बैंक उनकी अपनी आंतरिक नियंत्रण प्रणालियाँ का क्या कर रहे थे? उनकी नियंत्रण प्रणालियों के लिए कौन जिम्मेदार था? या कि इन सारी बैंकों ने पीएसयू के अपने दूसरे भाई बैंक के “रबर के मोहरे” पर आँख मूँदकर विश्वास कर लिया और कोई सवाल नहीं पूछा?

4.    आंतरिक लेखा परीक्षकों की जवाबदेही- हर बैंक का अपना वृहत आंतरिक लेखा परीक्षा विभाग होता है जो आवधिक लेखा परीक्षा का संचालन करता है और  उसकी सीधी रिपोर्ट अध्यक्ष या उससे भी बढ़कर बोर्ड के निदेशक को करता है। यह विभाग 7 वर्षों तक क्या कर रहा था? क्या उस विभाग के लोग भी इसमें शामिल थे या क्या वे अपनी नौकरी ठीक से बजाने में पूरी तरह अक्षम थे?

5.   बाह्य लेखा परीक्षकों की जवाबदेही- तिमाही, छमाही और वार्षिक लेखापरीक्षा बाह्य लेखा परीक्षकों द्वारा आयोजित की जाती हैं जो खातों के वास्तविक चित्र को "सही और निष्पक्ष" तरीके से बताते हुए हस्ताक्षर करते हैं। वे क्या कर रहे थे? संभवतः वे सबसे ज्यादा दोषी हैं क्योंकि उनके लिए पुस्तकों में गहरे उतरकर हर छोटे-बड़े विवरण को देखना अनिवार्य था।      एक अन्य मामले में, एक प्रमुख लेखा फर्म को सीमा तक खदेड़ा गया जिसके लिए अधिकारियों को निंदा तक झेलनी पड़ी। क्या ऐसा ही पंजाब नेशनल बैंक के बाहरी लेखा परीक्षकों के लिए नहीं किया जाना चाहिए था?

6.   भारतीय रिज़र्व बैंक की जवाबदेही- हमारे देश में बैंकिंग के अंतिम प्राधिकरण के रूप में, विश्व के सबसे अच्छे प्रबंधित सेंट्रल बैंकों में से एक भी चूक गया। बैंकों से सेंट्रल बैंक को रिपोर्टिंग की क्या आवश्यकताएँ हैं और ऐसे मामलों में, यदि कोई कार्रवाई होती है, तो वह क्या की जाती है?

जाहिर है, किसी एक बैंक के एक विभाग में नहीं बल्कि कई बैंकों के कई विभागों में प्रणालीगत विफलता रही है। ऐसे लोगों की लंबी श्रृंखला है जो मिलीभगत से अपराध को अंजाम देते हैं और इस श्रृंखला की बघिया को कहीं न कहीं उधेड़नी ही होगी, स्पष्ट जवाबदेही तय कर अपराधियों के खिलाफ सख़्त से सख़्त कार्रवाई करनी होगी। जहाँ कमज़ोरियाँ नज़र आ रही है और बैंकिंग प्रणाली में जहाँ विश्वास भुरभुरा हो गया है, वहाँ स्पष्ट और ठोस जवाब स्थापित करने होंगे, यह बेहद महत्वपूर्ण है कि जितनी जल्दी हो सके इससे निपटा जाएँ।

जबकि बैंकों को संख्या की सुभीता है, क्योंकि इतने सारे लोग शामिल हैं, यह भी सोचना होगा कि क्या नीरव मोदी हिमखंड का केवल सिरा है और इस तरह के या दूसरे कई घोटाले पहले से ही सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों की बैलेंस शीट के "दबाव में" छिपे हुए हैं। हमारे सामने पहले से ही रोटोमैक और विक्रम कोठारी की एक अलग कहानी तैयार हो रही है, जहाँ डिफ़ॉल्ट (अप्राप्य) राशि 2,900 करोड़ रुपए से अधिक तक पहुंच गई है!

निष्कर्ष जो भी हो, कार्रवाई बहुत तेज होनी चाहिेए ताकि जो लोग भविष्य में भी कभी बैंकों को धोखा देने के बारे में सोचे तो वे एक बारगी इसे गंभीर निवारक के रूप में अवश्य देख लें। इस बारे में किसी भी तरह का विलंब टालमटोल या कमज़ोर पड़ जाना जाँच के उद्देश्य को परास्त कर देगा और पहले से ही निंदक मतदाता जाँच एजेंसियों पर विश्वास करना बंद कर देगा। यदि ऐसा न हुआ तो जो आम धारणा है कि हमारे देश में धनी किसी भी चीज से बच निकलता है, वह बड़ी आसानी से और भी प्रबलित होती रहेगी।
                                                  
और इसके बाद यदि  यह पाया गया कि कुछ राजनीतिक दल इसमें शामिल थे,  तो हमें अपने दोषी राजनेताओं को नहीं बख़्शना चाहिए। तब तक, मेरा राजनेताओं से अनुरोध है कि पेशेवरों को अपना काम करने देना चाहिए। एक दूसरे पर दबाव डालते रहने से बैंकों और जाँचकर्ताओं पर दबाव कम हो जाता है। यदि इस घोटाले के ज़रिए किसी राजनीतिक लाभ की आवश्यकता है, तो उन्हें जाँच एजेंसियों को अपना कार्य पूरा करने देना चाहिए और अगली चुनावों से पहले अपराधियों को गिरफ़्तार करना चाहिए।
                               
इसके जवाब तत्काल मिलने की आवश्यकता है, इससे पहले कि नीरव मोदी एक और माल्या बन जाएँ। देरी केवल कानूनी लड़ाई में जांच एजेंसियों को बांधे रखने का काम कर सकती है जबकि वह व्यक्ति दुनिया की परवाह किए बिना अपनी शानदार जीवन शैली को बनाए रखना जारी रखेगा।

जब मैं यह लेख लिख रहा था, समाचार पत्रों में एक समाचार छपा देखा, जिसमें कहा गया है कि नीरव मोदी ने यह कहते हुए पंजाब नेशनल बैंक को लिखा है कि उनकी जल्दबाजी और आतंक ने बैंक की वसूली की किसी भी संभावना को खतरे में डाल दिया है। उसने पहले ही 11,000 करोड़ रुपए में से 5,000 करोड़ रुपए की राशि लौटा दी है। उसका दावा है कि बैंक ने निरंजन मोदी ब्रांड को नष्ट कर दिया है। उसके वकील का दावा है कि अब तक कुछ भी साबित नहीं हुआ है। नीरव मोदी ने कहा है कि "पीएनबी ने हर बात सार्वजनिक कर देने से बकाया राशि के सभी विकल्पों को बंद कर दिया है।"

यह जले पर नमक छिड़कने जैसा होगा यदि पंजाब नेशनल बैंक को नीरव मोदी ब्रांड के विनाश के लिए 11,000 करोड़ रुपए के नुकसान के दावे का कोई कानूनी नोटिस मिल जाता है! मुझे हैरत तो तब होगी अगर ऐसी कानूनी नोटिस पहले से ही मेल में नहीं हो!!



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लेखक गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष हैं. वे ५ बेस्ट सेलर पुस्तकों – रीबूट- Reboot. रीइंवेन्ट Reinvent. रीवाईर Rewire: 21वीं सदी में सेवानिवृत्ति का प्रबंधन, Managing Retirement in the 21st Century; द कॉर्नर ऑफ़िस, The Corner Office; एन आई फ़ार एन आई An Eye for an Eye; द बक स्टॉप्स हीयर- The Buck Stops Here – लर्निंग ऑफ़ अ # स्टार्टअप आंतरप्रेनर और Learnings of a #Startup Entrepreneur and द बक स्टॉप्स हीयर- माय जर्नी फ़्राम अ मैनेजर टू ऐन आंतरप्रेनर, The Buck Stops Here – My Journey from a Manager to an Entrepreneur. के लेखक हैं.

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